वो दौर राजेश खन्ना, जीतेंद्र और धर्मेंद्र जैसे एक्टर्स का था. ये लोग पर्दे पर रोमांस करते पसंद किए जाते थे. एक सेट कहानी थी हीरो-हीरोइन और विलेन की. विलेन की परिभाषा ही कुछ अलग थीय खूंखार सा दिखने वाला, चेहरे पर एक कट का निशान और मूंछ पर ताव देता हुआ! ऐसे समय में विनोद खन्ना ने बतौर विलेन एंट्री मारी और सिल्वर स्क्रीन पर छा गए. इस खलनायक के सब मुरीद हो गए. लोगों की पसंद को फिल्म इंडस्ट्री के हुनरबाजों ने समझा और हीरो का रोल दिया जाने लगा. हिट भी खूब रहे. 1975 के बाद तो सीधे अमिताभ बच्चन को टक्कर देने लगे. कामयाबी के चरम पर थे तभी सब कुछ छोड़ अध्यात्म की दुनिया में रम गए. बिजनेस परिवार से आते थे लेकिन फिल्मी पर्दे पर दिखने की ललक ने एक्टर बना दिया. इनके लिए एक्टिंग मायने रखती थी, किरदार को अहमियत देते थे. हैंडसम इतने कि एक्टर कहते थे ऐसे डील डौल वाले गुंडे के सामने भला हीरो कैसा लगेगा? इसी एक्टर की 6 अक्टूबर को जयंती है.
एक पुराना इंटरव्यू है जिसमें विनोद कहते हैं उनकी तुलना जब अमिताभ से होती थी तो भला वो खुद कैसे किसी और को अपना कॉम्पटीटर मानते? अमिताभ के साथ विनोद खन्ना ने 10 फिल्में की. दोनों के बीच में काफी समानताएं भी थीं. हाइट शानदार और पर्सनालिटी लाजवाब. फाइट सीक्वेंस और रोमांटिक दृश्यों में भी जबरदस्त थे दोनों.
अमिताभ और विनोद दोनों को पर्दे पर एक ही शख्स लेकर आए थे और वो थे सुनील दत्त. बच्चन ने 'रेशमा और शेरा' से एंट्री की तो खन्ना की पहली फिल्म बतौर विलेन थी 'मन का मीत'. दोनों एक्टर्स पहली बार 'रेशमा और शेरा' में साथ दिखे तो आखिरी बार 'मुकद्दर का सिकंदर' में नजर आए. 1978 में साथ काम करने के बाद दोनों की राह जुदा हो गई और इसकी वजह थे विनोद खन्ना की ठुड्डी पर लगे 16 टांके! केबीसी के चौदहवें सीजन में अमिताभ बच्चन ने भी इस पर बात की थी. एक प्रतिभागी के सवाल का जवाब देते हुए माना था कि उनकी कांच की गिलास का निशाना चूक विनोद की ठुड्डी पर जा लगा था. लहूलुहान हो गए और 16 टांके भी लगे. हालांकि बच्चन ने माफी भी मांग ली थी. लेकिन हकीकत ये भी है कि विनोद इतना नाराज हुए कि इसके बाद अमिताभ-विनोद की सफल जोड़ी कभी पर्दे पर दिखी ही नहीं.
एक फिल्म ने विनोद खन्ना को सबसे बड़ा स्टार बना दिया था. ये वो फिल्म थी जिसकी 'कुर्बानी' का अमिताभ को काफी पछतावा हुआ. फिल्म थी 1980 में रिलीज हुई 'कुर्बानी'. फिरोज खान और विनोद खन्ना की जबरदस्त फिल्म. गाने से लेकर एक्नश सीक्वेंस तक सब बेजोड़. 2.5 करोड़ में बनी लेकिन बॉक्स ऑफिस पर 25 करोड़ कमाए. इस एक फिल्म ने अमिताभ के सुपरस्टारडम को तगड़ी चुनौती दी. लेकिन हमेशा से ही कुछ अलग करते दिखे विनोद ने ऐसा फैसला लिया जिसने सबको चौंका दिया. विनोद ने संन्यास का रास्ता चुन लिया. ओशो को गुरु माना और सब कुछ छोड़ छाड़कर अमेरिका के रजनीशपुरम में जा बसे. वहां माली का काम किया, बर्तन धोए. पांच साल रहे लेकिन फिर मन विचलित होने लगा. करियर पर विराम लगा चुका था और दूसरी ओर भारत में परिवार बिखर चुका था. पत्नी ने तलाक ले लिया था.
एक इंटरव्यू में एक्टर ने कहा था कि वो मन से विवश थे, फैसला सही था या नहीं इस बारे में कुछ नहीं कह सकते. खैर जब लौटे तो फिल्मों में भी रमे और दूसरी शादी भी की. 90 का दशक कई नए एक्टर्स का बांहें फैला स्वागत कर रहा था. इस दौर में ही विनोद ने बंटवारा, सीआईडी, जुर्म, क्षत्रिय जैसी फिल्में की. सफर यहीं नहीं रुका. रोमांच की एक और पायदान पर चढ़ना बाकी था. 1997 में एक्टिव पॉलिटिक्स में कदम रखा. एक नहीं बल्कि चार बार गुरदासपुर सीट से सांसद चुने गए. मंत्री भी रहे. लेकिन, फिल्मों से नाता नहीं तोड़ा. सलमान खान की दबंग और दबंग 2 में भी दिखे. करीने से पैशन और प्रोफेशन को बैलेंस किया. हालांकि विनोद खन्ना का एक पैशन क्रिकेट भी था. खुद ही कहते थे कि एक्टिंग से ज्यादा उन्हें क्रिकेट पसंद है मलाल रहा कि करियर स्पोर्ट्स में नहीं बना पाए. 27 अप्रैल 2017 को विनोद एक लंबी बीमारी के बाद दुनिया से रुखसत हो गए. जो विरासत छोड़ गए वो अमर अनंत है. बताती है कि वाकई जीना इसी का नाम है.
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