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Tuesday, August 6, 2024

कुत्ते की आवाज निकाल कर मिला काम, शराबी के रोल ने दिलाई जबरदस्त पहचान- पहचाना क्या?

बॉलीवुड मूवीज में कभी भी किसी शराबी कैरेक्टर के बारे में बात होगी तो एक एक्टर जरूर याद आएगा. ये एक्टर हैं केष्टो मुखर्जी. जिन्होंने तकरीबन हर फिल्म में शराबी का रोल अदा किया. इसी अंदाज में कॉमेडी की और हमेशा के लिए यादगार बन गए. केष्टो मुखर्जी ने अपने फिल्मी करियर में तकरीबन 90 फिल्मों में काम किया. लेकिन उन का नाम जब भी सुनेंगे या उन्हें जब भी याद करेंगे. एक ही चेहरा जेहन में आएगा. जिसे देखकर कोई भी आसानी से कह सकता था कि ये कैरेक्टर नशे में टुन्न है. केष्टो मुखर्जी ने अपने इसी खास अंदाज से अपनी खास पहचान बनाई. केष्टो मुखर्जी क जन्म 7 अगस्त 1925 को हुआ था. उनका निधन 3 मार्च 1982 को हुआ था.

कुत्ते की आवाज निकालकर मिला काम

केष्टो मुखर्जी को बॉलीवुड में जो काम हासिल हुआ. उसके लिए उन्हें बहुत पापड़ बेलने पड़े. केष्टो मुखर्जी एक बार बिमल दा से काम मांगने गए. फिल्म मेकर बिमल दा काफी बिजी चल रहे थे. केष्टो उनसे मिलने का इंतजार करते रहे. बिमल दा बार बार उन्हें अपने आसपास देखकर झल्ला गए और कहा कि मुझे कुत्ते की आवाज की जरूरत है. क्या तुम भौंक सकते हो. केष्टो मुखर्जी ने कुछ सेकंड सोचा और फिर भौंकने लगे. उनका ये अंदाज देखकर बिमल दा पहले तो चौंके. लेकिन फिर उनसे इंप्रेस हो गए. इसके बाद बिमल दा ने केष्टो मुखर्जी को फिल्मों में ब्रेक दिया.

पापड़ वाले की नकल

केष्टो मुखर्जी कॉमेडियन तो थे ही उन्हें असल पहचान मिली शराबी के रोल से. जिसे पर्दे पर निभाने का मौका उन्हें डायरेक्टर असित सेन ने दिया था. बताया जाता है कि असल में केष्टो मुखर्जी के घर के पास एक पापड़ वाला आता था. वो पापड़ वाला नशे में रहता था. केष्टो मुखर्जी अक्सर उसको नोटिस करते थे. जब पहली बार उन्हें मां और ममता फिल्म में शराबी का रोल करने का मौका मिला. तब उन्होंने उसी पापड़ वाले की स्टाइल को अपनाया. और, आगे चलकर वही उनका सिग्नेचर स्टाइल भी बन गया.

सही में पीते थे दारू या सिर्फ एक्टिंग?

केष्टो मुखर्जी ने पूरी जिंदगी कभी शराब को हाथ नहीं लगाया था. लेकिन 1981 में स्टारडस्ट को दिए एक इंटरव्यू में केष्टो मुखर्जी ने बताया था, 'मैं बहुत शराब पीता था. मैंने उस समय शराब पीना शुरू किया जब मैं घर से मुंबई हीरो बनने के लिए निकला. मैं एक रेलवे क्वार्टर में रहता था, जहां खाने को कुछ नहीं होता था, लेकिन पीने को शराब मिल जाती थी. मैं इसलिए पीता था क्योंकि मैं हताश था. मेरे पास काम नहीं था. मैं सोने के लिए पीता था. मैं पीता था ताकि ये भूल सकूं कि कमरे में यहां-वहां चूहे दौड़ते हैं, और मेरे पास ही कुत्ते सोते हैं. मैं तनाव भगाने के लिए शराब पीता था. सिर्फ दारू ही मेरी सच्ची दोस्त थी. और फिर ये दारू ही थी जिसकी वजह से मैं पॉपुलर हुआ. आज कोई भी मेरा नाम लेता है तो मेरे बेवड़े वाली इमेज उसके जेहन में आती है. अब मैं अपने दोस्त को छोड़ नहीं सकता. मैं अब भी पीता हूं. जिस दिन मैंने शराब को हाथ नहीं लगाया था तो दिन था मेरी शादी का.'



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