मुम्बई में 4 हेल्थवर्करों में कोरोना के री-इंफेक्शन का मामला सामने आया है। पहली बार संक्रमण से उबरने के 19 से 65 दिन के अंतराल पर उन्हें कोरोना का दोबारा संक्रमण हुआ। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें पहले संक्रमण के बाद एंटीबॉडीज नहीं बनीं। चारों मामलों में पाए गए कोरोना की जीनोम सिक्वेंसिंग रिपोर्ट बताती है, यह वायरस 39 बार म्यूटेट हुआ यानी वायरस ने खुद में बदलाव किया है।
इस पूरे मामले की केस स्टडी लेंसेट मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुई है। चारों मामलों में मिले कोरोना की जीनोम सिक्वेंसिंग दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी ने की है। जांच करने वाली टीम में शामिल डॉ. राजेश पांडे का कहना है, वायरस ने खुद को बांटा है। यह कई बार म्यूटेट हुआ है, ठीक वैसे, जैसे एक ही पेड़ से कई पत्तियां निकलती हैं।
री-इंफेक्शन के मायने क्या हैं और ये कब सामने आए
जब कोरोना से एक बार लड़ने के बाद मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आ जाती है। उसके कुछ समय बाद फिर मरीज में इस वायरस का दोबारा संक्रमण होता है तो इसे री-इंफेक्शन कहते हैं। कोरोना के री-इंफेक्शन का पहला मामला हॉन्गकॉन्ग के 33 वर्षीय आईटी प्रोफेशनल में अगस्त में सामने आया था।
भारत में री-इंफेक्शन का पहला मामला बेंगलुरू में सामने आया। सितम्बर के पहले हफ्ते में 27 वर्षीय महिला में दोबारा कोरोना की पुष्टि हुई
यह देश में री-इंफेक्शन का सबसे बड़ा ग्रुप
रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, मुम्बई में चार हेल्थ वर्करों का एक समूह देश में अब तक के री-इंफेक्शन का सबसे बड़ा ग्रुप है। इनमें से 3 डॉक्टर्स बीएमसी के नायर हॉस्पिटल से हैं और एक हेल्थकेयर वर्कर हिंदुजा अस्पताल से है।
इन चारों को जब पहली बार कोरोना का संक्रमण हुआ तो 2-5 दिन बाद माइल्ड लक्षण ही दिखे, जैसे गला सूखना और खांसी। जब दोबारा संक्रमण हुआ तो लक्षण काफी परेशान करने वाले थे। इनमें 2 से 3 हफ्ते तक बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द के लक्षण दिखे।
इनमें से एक मरीज की हालत इतनी ज्यादा खराब हुई कि उसे प्लाज्मा थैरेपी देने की जरूरत पड़ गई। रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें दोबारा संक्रमण कोरोना के म्यूटेट वर्जन से हुआ।
दो मरीजों में कोरोना का खतरनाक स्ट्रेन
डॉ. राजेश पांडे के मुताबिक, 4 में से 2 मरीजों में कोरोना का D614G स्ट्रेन मिला है। यह खतरनाक स्ट्रेन है जो संक्रमण और लक्षणों को और गंभीर बनाता है। अगर कोरोना का म्यूटेशन और तेज होता है तो ऐसा हो सकता है कि वैक्सीन सभी में एक जैसी असरदार न हों।
हल्के लक्षणों वालों में जरूरी नहीं कि एंटीबॉडी बनें
नायर हॉस्पिटल की माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. जयंती शास्त्री के मुताबिक, सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि चारों मरीजों में पहले संक्रमण के बाद एंटीबॉडी बनी ही नहीं। वह कहती हैं, हल्के लक्षणों वाले मरीजों में जरूरी नहीं कि एंटीबॉडी बनें।
डॉ. जयंती के मुताबिक, जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए पहले और दूसरे संक्रमण के RNA की जरूरत होती है। इसे स्टोर करना सबसे बड़ा चैलेंज है। कई हॉस्पिटल के पास RNA को स्टोरी करने की अच्छी सुविधा नहीं होती। डॉ. जयंती ने इन मरीजों के RNA डाटा को स्टोर कराया है ताकि आगे ये रिसर्च में काम आ सकें। रिसर्च रिपोर्ट कहती है, पहली बार संक्रमण के बाद भी इससे बचाव करने की जरूरत है।
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