कोरोना के कारण मैरिज फंक्शंस में शिरकत करने वालों की संख्या जरूर कम हुई है, मगर कस्टमाइज्ड सूट पहनने का अपना अलग ही क्रेज है। एक मास्टर जब आपको हू-ब-हू वह लुक देने की कोशिश करता है, जिसको आपने इमेजिन किया था, तो उस परफेक्शन का मुकाबला कोई रेडिमेड ड्रेसनहीं कर पाती है। सूट हो, कुर्ता-पायजामा या शेरवानी... जितनी कल्चरल और च्वाॅइस की डायवर्सिटी लोगों के बीच है, उतनी ही हर शहर मेंनजर आतीहै। हमने जाना कि, ड्रेसअप होने के शौकीन शहरोंके लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग के समय में कपड़ों की स्टिचिंग और फिटिंग के लिए क्या-कुछ हल ढूंढ़ निकाले हैं।
वीडियो कॉल पर मास्टर्स करते हैं गाइड
सूट एक्सपर्ट प्रदीप सेवानी बताते हैं, सूट कस्टमर कराने किसी को दुकान तक आना ही ना पड़े, इसके लिए फेब्रिक चार्ट बनाया है। कलर स्कीम, शेड और वैरायटी इसमें होती है, ताकि लोग घर पर ही फेब्रिक सिलेक्ट कर सकें। मास्टर्स लोगों को वीडियो कॉल पर गाइड करते हैं कि मेजरमेंट किस तरह से लेना है।डिलीवरी के पहले सूट ड्रायक्लीन किया जाता है।
पिक्टोरियल फॉर्मेट किया गयातैयार
मंत्री और सांसदों के कुर्ते डिजाइन करने वाले बीडी साहू बताते हैं, वे 1997 से आज तक आए हर कस्टमर का डेटा मेंटेन करते हैं। सिटी सेलेब्रिटीज समेत 2 हजार कस्टमर्स का डेटा इनके पास है। अब सिर्फ वो मेजरमेंट नए लिए जाते हैं, जिनका साइजबदल गया है। करीब 90 प्रतिशत मामलों मेंकमर और पेट का मेजरमेंट लेना पड़ता है।
फैब्रिक क्वारेंटाइन रहता है
सूट स्पेशलिस्ट अजय सिंह वर्मा(शानू) बताते हैं किकस्टमर्स हमें घर से ही अपना मेजरमेंट भेज सकें, इसके लिए मेजरमेंट लेने का पिक्टोरियल फॉर्मेट तैयार किया है, जिसमें कस्टमर्स के फैमिली मेम्बर्स ग्राफिक देखकर मेजरमेंट कर सकें। जो कस्टमर्स वॉक-इन करते हैं, उनके टच के बाद फैब्रिकएकदिन के लिए क्वारेंटाइन रहता है।
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