कोरोना महामारी सेपहले भी भारत में महिलाएं रोजगार, वेतन और शिक्षा जैसे मुद्दे को लेकरलैंगिकअसनामता झेल रहीं थीं।ऐसे मेंकोविड-19 के प्रभाव ने भारत की आर्थिक स्थिति को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
ब्यूटी सैलून में काम करना पड़ा
अगर हम बात उत्तराखंड की25 साल वर्षीयआशा शर्मा की करें तो आशापांच साल पहले उत्तराखंड से दिल्ली डांस के सहारे अपना कॅरिअर संवारने आईं थीं। उनका ये सपना उस वक्त टूटा जब बेहतरीन डांस करने के बाद भी उन्हें दिल्ली के किसी डांस ट्रूप में जगह नहीं मिली।
उत्तराखंड से यहां आने तक की गई उनकी मेहनत असफल रही। आखिर दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें एक ब्यूटी सैलून में काम करना पड़ा। इस सैलून में आशा को 12,000 रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था। इसमें से कुछ पैसा वो अपनी मां के लिए भेजती थी।
अकेले घर चलाना भी मुश्किल हो गया
जब से आशा के पिता इस दुनिया से चले गए तो उनकी मां के लिए अकेले घर चलाना भी मुश्किल हो गया। आशा की मुश्किलें उस वक्त बढ़ी जब लॉकडाउन की वजह से सैलून बंद हो गए। आशा कहती हैं मेरी मां ने बचपन से हम भाई-बहनों की परवरिश के लिए कड़ी मेहनत की। लेकिन आज मैं इतनी बेबस हूं कि उनकी किसी भी तरह से मदद नहीं कर पा रही हूं।
मैंने ये महसूस किया कि एक महिला के लिए पुरुष की अपेक्षा पैसा कमाना हर हाल में मुश्किल होता है। पुरुष जहां चाहें वहां काम करके अपनी आजीविका चला सकते हैं। लेकिन ऐसा करना महिलाओं के लिए संभव नहीं है। उन्हें हर पल अपनी सुरक्षा का भी इतना ही ध्यान रखना पड़ता है।
काम का सही मेहनताना नहीं पाती हैं
गौरतलब है कि भारत में एक चौथाई से अधिक महिलाएं कड़ी मेहनत करने के बाद भी अपने काम का सही मेहनताना नहीं पाती है। उन्हें पुरुषों की अपेक्षा 35% कम सैलेरी मिलती है। भारत में 49% जनसंख्या महिलाओं की है। इनमें से सिर्फ 18% महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हैं।
लॉकडाउन के बाद देश की बदतर इकोनॉमी का असर उन महिलाओं पर अधिक हुआ है जिनके पास अपनी आजीविका चलाने के लिए भी फिलहाल साधन नहीं है। उन्हें नौकरी से हटा दिया गया है या उनके छोटे-मोटे कामकाम कोरोना की वजह से बंद हो गए हैं।
वापिस लौटने को मजबूर हो गए हैं
इस महामारी से पहले अपने गांव या शहर से दूर काम कर रहे वर्कर्स बेरोजगार होने की वजह से एक बार फिर वापिस लौटने को मजबूर हो गए हैं। इनमें पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की तादाद भी अधिक है। वे महिलाएं जो माइग्रेंटवर्कर्स के तौर पर एजुकेशन और हेल्थ सेक्टर मेंकाम करती हैं।
इसके अलावा सेक्स वर्कर्स और एग्रीकल्चर के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए न रोजगार है और न नहीं उनकीसुरक्षा की कोई वारंटी है। कोरोना की वजह से अपने घर वापिस लौटने के लिए लंबा सफर करनाभी इनके लिए खतरे से खाली नहीं है।
काम के समान अवसर नहीं मिलते हैं
द वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2020 में विश्व के 153 देशों में भारत की रैकिंग 112 है। यहां बात उन देशों की हो रही है जहां महिलाओं को पुरुषों के बराबर काम के अवसर नहीं मिल पाते हैं। यही हालत हेल्थ केयर और एजुकेशन के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की है। यहां भीमहिलाओं को पुरुषों की तरह काम के समान अवसर नहीं मिलते हैं।
कोरोना वायरस का असर भारत की सामाजिक न्याय व्यवस्था पर भी हुआ है। भारत के कई ऐसे राज्य हैं जहां हर 15 मिनट में महिलाओं के साथ बलात्कारहोता है। इसके अलावा घर के काम काजकी जिम्मेदारी भी हर हाल में उन्हें ही उठाना पड़ती है। लॉकडाउन की वजह से अधिकांश समय घर में रह रही महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले में भी तेजी से बढ़े हैं।
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