कोरोनावायरस दिमाग के उस हिस्से को संक्रमित कर सकता है जो सांस लेने की क्षमता को कंट्रोल करता है। इस हिस्से को रेस्पिरेट्री सेंटर ऑफ ब्रेन कहते हैं। यह दावा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ केमिकल बायोलॉजी (IICB), कोलकाता के शोधकर्ताओं ने किया है। शोधकर्ताओं का कहना है नर्वस सिस्टम के इस हिस्से पर नजर रखने की जरूरत है क्योंकि इससे पता चल सकता है कि कोरोनावायरस से मौत का खतरा कितना है।
मस्तिष्क की ऑलफैक्ट्री बल्ब तक पहुंच सकता है वायरस
शोधकर्ताओं का कहना कि कोरोनावायरस नाक के जरिए दिमाग की ऑलफैक्ट्री बल्ब तक पहुंच सकता है। यह ब्रेन का ऐसा हिस्सा है जो सांसों की लय को कंट्रोल करता है। अगर ब्रेन का ये हिस्सा डैमेज होता है तो कोरोना के मरीज की मौत हो सकती है।
यह अपनी तरह की पहली रिसर्च
शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना के मरीजों में दूसरे अंगों के मुताबिक, फेफड़े सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। मरीजों में कोरोना ब्रेन को भी प्रभावित कर रहा है। उनका दावा है कि यह पहली रिपोर्ट है जो कोरोना और ब्रेन से सांसों के कनेक्शन के बारे में बताती है।
ब्रेन के पोस्टमॉर्टम से कोरोना का रूट पता चल सकता है
शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोना पीड़ितों में सेरेब्रोस्पाइनल फ्लुइड और मौत के बाद ब्रेन का पोस्टमॉर्टम करके कई बातों का पता लगाया जा सकता है। इससे ये बात सामने आ सकती है कि ब्रेन में कोरोना किस रास्ते से पहुंचा और कैसे ब्रेन के रेस्पिरेट्री सिस्टम तक फैला।
ब्रेन से जुड़े लक्षण दिखने पर मरीजों को अलग करने की जरूरत
रिसर्च रिपोर्ट का कहना है कि कोरोनावायरस दिमाग के रेस्पिरेट्री सेंटर ऑफ ब्रेन को पूरी तरह बंद कर सकता है। अगर कोरोना के मरीजों में दिमाग से जुड़े लक्षण दिखाई दें तो उन्हें अलग करें ताकि नजर रखी जा सके।
ब्रेन कोरोना से होने वाली मौत की पहली वजह नहीं है लेकिन इलाज के दौरान मस्तिष्क के रेस्पिरेट्री सिस्टम पर नजर रखने की जरूरत है।शोधकर्ताओं की टीम में डॉ. प्रेम त्रिपाठी, डॉ. उपासना रे, डॉ. अमित श्रीवास्तव और डॉ. सोनू गांधी शामिल हैं।
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