आज दुनिया 50वां अर्थ-डे मना रही है। डेनिस हेस अर्थ डे नेटवर्क के चेयरमैन हैं। 22 अप्रैल 1970 को पहले अर्थ-डे का संयोजन हेस ने ही किया था और उस वक्त अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन इसके फाउंडर थे। तब सिर्फ अखबारों की मदद से इस आयोजन में 2 करोड़ लोग जुड़े थे। हेस अमेरिका में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई अधूरी छोड़ धरती बचाने के लिए काम में जुट गए थे। वे इंजीनियर हैं और स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रह चुके हैं। पढ़िए, हेस से दैनिक भास्कर के रितेश शुक्ला की खास बातचीत-
लॉकडाउन के कारण हवा और नदियां साफ हो रही हैं, क्या बिना प्रदूषण के अच्छा जीवन संभव है?
हां, क्लीन एनर्जी का इस्तेमाल किया जाए तो। दुनिया में 750 करोड़ लोग बेहतर जीवन के लिए सहूलियतें चाहते हैं। इसका धरती पर खतरनाक असर हो सकता है। खास तौर पर अगर सब कोयले या कच्चे तेल से बन रही बिजली का इस्तेमाल करते रहे तो। विडंबना ये है कि फॉसिल फ्यूल की कीमत में सिर्फ उसे निकालने और काम का बनाने का खर्च जोड़ा जाता है। उस प्राकृतिक संसाधन की कीमत नहीं जोड़ी जाती, जिनका हम दोहन कर रहे हैं।
क्या फॉसिल फ्यूल की कीमत फिर तय की जाए?
अमेरिका में एक टन कार्बन उत्सर्जन पर 15 डॉलर (1150 रु) टैक्स का प्रस्ताव था। इससे पेट्रोल की कीमत करीब 3 रुपए बढ़ जाती। लेकिन ये प्रस्ताव कभी पास नहीं हो पाया। फ्रांस में ऐसी कोशिश हुई तो येलो वेस्ट मूवमेंट शुरू हो गया। कीमत तय करना काफी नही है।
हमारी धरती कितने लोगों को संभाल सकती है?
अमेरिकी लोग जिन सहूलियतों का इस्तेमाल करते हैं, उस आधार पर धरती पर अभी क्षमता से 10 गुना ज्यादा आबादी है। अमेरिका वेस्टफुल देश है। स्वीडन के लोगों की लाइफस्टाइल के अनुसार धरती पर क्षमता से तीन गुना आबादी है। लेकिन युगांडा के किसानों की जीवनशैली को आधार मानें तो धरती पर 2000 करोड़ लोग अनंत समय तक रह सकते हैं। सही आधार स्वीडन, डेनमार्क या नॉर्वे होने चाहिए। इनकी लाइफस्टाइल के अनुसार 200 करोड़ लोग धरती पर अनंत समय तक रह सकते हैं। भारत इन सबकी मिश्रित लाइफस्टाइल वाला देश है।
भारत नई टेक्नोलॉजी का उपयोग कैसे करे?
भारत में संभावनाएं हैं। सिर्फ प्रतिबद्धता की जरूरत है। चीन दुनियाभर के वॉल्यूम से ज्यादा सोलर मॉड्यूल अकेले बनाता है। टेक्नोलॉजी के मामले में भारत भी बहुत एडवांस है। सौर ऊर्जा की अच्छाई ये है कि अपने घर-ऑफिस में भी आप इसे बना सकते हैं। सौर ऊर्जा भारत के गांवों को स्वावलंबी बनाने का अच्छा तरीका हो सकता है। यानी भारत औद्योगिक क्रांति के दुष्प्रभाव से बचते हुए विकसित देश बन सकता है। कोयला धरती से निकालने, उसे थर्मल पावर स्टेशन पहुंचाने में जितना खर्च आता है, उतने में तो सौर ऊर्जा तैयार हो जाती है।
अगले सालभर में विश्व की रूपरेखा कैसी होगी?
कोरोनावायरस आने के बाद लोगों के व्यवहार में बदलाव आया है। यह आगे भी जारी रहेगा। लोग अब भीड़ में जाने से कतराएंगे। अगर हफ्ते में एक दिन लोग घर से काम करने लगते हैं तो सड़कों का भार कम हो जाएगा, प्रदूषण कम हो जाएगा। लोग ज्यादा से ज्यादा घर का पका खाना खाएंगे, जो हेल्दी होगा।
आपने ‘काउड’ नाम से एक किताब लिखी है। क्या गाय के जीवन और धरती की सेहत में काेई संबंध है?
बहुत बड़ा लिंक है। अमेरिका में 9 करोड़ गायें हैं। उन्हें मक्का खिलाया जाता है। ताकि वे उनका वजन बढ़े, क्योंकि यहां लोग बीफ खाते हैं। मक्के से गाय में बीमारियां पनपती है, जिसे दबाने के लिए एंटीबायोटिक दिया जाता है। कुछ समय बाद बैक्टेरिया एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट हो जाते हैं। बीफ खाकर लोग भी हमेशा के लिए बीमार पड़ जाते हैं। असल में जाे लोग बीफ खा रहे हैं, वे ज्यादा प्रदूषण फैला रहे हैं।
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