ज़ाहिदा हिना
किसी को शायद यक़ीन ना आए कि एक ऐसे वक़्त में जब पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी सरहदों पर इतना तनाव है, दोनों तरफ़ की तोपें एक दूसरे की तरफ रुख़ किए हुए हैं, लाहौर में हिंदुस्तानी ज़ायक़े और नामों वाली मिठाइयां धड़ल्ले से खुलेआम बिक रही हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी तनातनी के दिनों में अमृतसरी हरीसा, जालंधरी मोतीचूर और मुंबई बिरयानी पाकिस्तानी बड़े शौक़ से खाते रहे हैं।
जालंधर से लाहौर पहुंची मिठाई की तरकीबें
एक अंग्रेज़ी अख़बार से जुड़े आसिफ महमूद इस बारे में बहुत मालूमात रखते हैं। कुछ दिनों पहले उन्होंने मिठाई की कुछ दुकानों का सर्वे किया और बताया कि अनारकली में एक दुकान है, जो 1922 में हाजी अब्दुल करीम ने खोली थी। वो जालंधर से लाहौर आए थे और अपने साथ जालंधरी मिठाइयों को बनाने की तरकीबें लाए थे। अब उनकी चौथी नस्लें उन सौ साल पुरानी मिठाइयों को तैयार करके लोगों को खिला रही हैं और लोग दूर-दूर से जालंधरी मोतीचूर के लड्डू खाने और ख़रीदने आते हैं।
लाहौरवालों को पसंद अमृतसरी हरीसा
हाजी अब्दुल करीम के पड़पोतों ने बताया कि जब सिख हज़रात लाहौर आते हैं तो वो ख़ासतौर से उनकी दुकान से मिठाइयां तोहफे में देने के लिए ख़रीदते हैं। उनकी तैयार की हुई मिठाइयां लाहौर के मशहूर भोलू पहलवान और झारा पहलवान बहुत शौक़ से खाते थे। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री शहबाज़ शरीफ और कई मंत्री भी उनकी दुकान पर आ चुके हैं। इसी तरह निसबत रोड पर अमृतसरी हरीसा बनाने वाली दुकान 70 साल पुरानी है। इसके मालिक मुहम्मद सिराज अमृतसर से 1947 में लाहौर आए थे, तभी उन्होंने हरीसे की दुकान खोली थी। यह दुकान आज भी तरक़्क़ी कर रही है।
लाहौर वाले अपने मेहमानों को लेकर उनकी दुकान पर आते हैं और अमृतसरी हरीसा खाकर जाते हैं। जंग के ज़माने में भी ये दुकानें बंद नहीं हुईं और ना ही किसी ने उनके नाम पर ऐतराज़ किया। इसी तरह लोअर मॉल रोड पर मुंबई बिरयानी खाने वालों और घर ले जाने वालों की क़तारें लगी रहती हैं। कराची में भी मेरठ कबाब और दिल्ली नहारी हाउस रोज़ाना लाखों का कारोबार करते हैं।
हिंदुस्तान में भीपाकिस्तानी जायके का खाना
कराची हो या लाहौर या पाकिस्तान के दूसरे शहर, इन दुकानों को चलाने वाले देसी घी और शुद्ध मसालों का इस्तेमाल करते हैं और खाने के स्तर से समझौता नहीं करते। हिंदुस्तान में भी ऐसी कई दुकानें हैं, जिनके नाम पाकिस्तानी शहरों के नाम पर रखे हुए हैं और वहां पाकिस्तानी ज़ायक़े का खाना बिकता है। अगर दोनों मुल्कों के हुक्मरान पाकिस्तानी और हिंदुस्तानी कारोबारियों से दिल जीतने का हुनर सीख लें तो दोनों मुल्कों का बहुत भला हो सकता है। यूं भी कहा जाता है कि किसी का दिल जीतने का रास्ता उसके पेट से होकर जाता है।
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