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दुनियाभर के मरीजों को बचाने में कोरोनावॉरियर यानी डॉक्टर्स जुटे हैं। संक्रमण के बीच वो मरीजों का इलाज भी कर रहे हैं और खुद को बचाने की जद्दोजहद में भी लगे हैं। आज नेशनल डॉक्टर्स डे है, जो देश के प्रसिद्ध चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डॉ. बिधानचंद्र रॉय के सम्मान में मनाया जाता है। केंद्र सरकार ने देश में डॉक्टर्स डे मनाने की शुरुआत 1 जुलाई 1991 में की। 1 जुलाई उनका जन्मदिवस है। जानिए उनकी लाइफ से जुड़े 5 दिलचस्प किस्से...
किस्सा 1 : जब बापू ने बिधान चंद्र से कहा, तुम मुझसे थर्ड क्लास वकील की तरह बहस कर रहे हो
1905 में जब बंगाल का विभाजन हो रहा था जब बिधान चंद्र रॉय कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लेने की जगह अपनी पढ़ाई को प्राथमिकता दी। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े और धीरे-धीरे बंगाल की राजनीति में पैर जमाए। इस दौरान वह बापू महात्मा गांधी के पर्सनल डॉक्टर रहे।
1933 में ‘आत्मशुद्धि’ उपवास के दौरान गांधी जी ने दवाएं लेने से मना कर दिया था। बिधान चंद्र बापू से मिले और दवाएं लेने की गुजारिश की। गांधी जी उनसे बोले, मैं तुम्हारी दवाएं क्यों लूं? क्या तुमने हमारे देश के 40 करोड़ लोगों का मुफ्त इलाज किया है?
इस बिधान चंद्र ने जवाब दिया, नहीं, गांधी जी, मैं सभी मरीजों का मुफ्त इलाज नहीं कर सकता। लेकिन मैं यहां मोहनदास करमचंद गांधी को ठीक करने नहीं आया हूं, मैं उन्हें ठीक करने आया हूं जो मेरे देश के 40 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि हैं।इस पर गांधी जी ने उनसे मजाक करते हुए कहा, तुम मुझसे थर्ड क्लास वकील की तरह बहस कर रहे हो।
दूसरा किस्सा : रॉय इतने बड़े हैं कि नेहरू भी उनके हर मेडिकल ऑर्डर मानते हैं
डॉ. बिधान चंद्र रॉय की तारीफ का सबसे चर्चित किस्सा देश के पहले प्रधाानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से जुड़ा है। बिधानचंद्र देश के उन डॉक्टर्स में से एक थे जिनकी हर सलाह का पालन पंडित जवाहर लाल पूरी सावधानी के साथ करते हैं। इसका जिक्र पंडित जवाहर लाल ने वॉशिग्टन टाइम्स को 1962 में दिए एक इंटरव्यू में किया था। उन्होंने उस दौर की बात अखबार से साझा की जब वो काफी बीमार थे और इलाज के लिए डॉक्टर्स का एक पैनल बनाया गया था, जिसमें रॉय शामिल थे। इंटरव्यू के बाद अखबार ने लिखा था, रॉय इतने बड़े हैं कि नेहरू भी उनके हर मेडिकल ऑर्डर का पालन करते हैं।
तीसरा किस्सा : सामाजिक भेदभाव का शिकार हुए, अमेरिक रेस्तरां ने रॉय को बाहर निकल जाने को कहा
1947 में बिधानचंद्र खाने के लिए अमेरिका के रेस्तरां पहुंचे तो उन्हें देखकर सर्विस देने से मना कर दिया गया। पूरा घटनाक्रम न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुआ। न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, रॉय अपने पांच दोस्तों के साथ रेस्तरां पहुंचे। उनको देखकर रेस्तरां ऑपरेटर ने महिला वेटर से कहा, उनसे कहें, यहां उन्हें सर्विस नहीं जाएगी, वो यहां से खाना लेकर बाहर जा सकते हैं।
यह बात सुनने के बाद रॉय वहां से उठे और चले गए। घटना के बाद इस सामाजिक भेदभाव का पूरा किस्सा रिपोर्टर से साझा किया और भारत लौट आए।
चौथा किस्सा : आर्थिक तंगी से जूझ रहे सत्यजीत रे को आर्थिक मदद उपलब्ध कराई
जाने माने फिल्मकार सत्यजीत रे को अपनी फिल्म पाथेर पंचाली बनाने के लिए आर्थिक संघर्ष से जूझना पड़ा था। कई दिक्कतों के बाद उनकी मां ने उन्हें अपने परिचितों से मिलवाया। रॉय उनमें से एक थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री भी थे। रॉय सत्यजीत रे के इस प्रोजेक्ट से काफी प्रभावित हुए और उन्हें सरकारी आर्थिक मदद देने के लिए राजी हुए। इतना ही नहीं फिल्म पूरी होने के बाद रॉय ने जवाहर लाल नेहरू के लिए इस फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग भी रखवाई। फिल्म में गरीबी से जूझते देश की कहानी दिखाई गई।
पांचवा किस्सा : डीन से 30 मुलाकातों के बाद उन्हें लंदन में मिला एडमिशन
रॉय हायर स्टडी के लिए 1909 में लंदन के सेंट बार्थोलोमिव्स हॉस्पिटल पहुंचे थे। लेकिन यहां उनके लिए एडमिशन लेना आसान नहीं रहा। सेंट बार्थोलोमिव्स हॉस्पिटल के डीन ने रॉय को एडमिशन न देने के लिए काफी कोशिशें की। उन्होंने करीब डेढ़ महीने तक रॉय को रोके रखा ताकि वे वापस लौट जाएं। रॉय ने भी एडमिशन के अपनी कोशिशें जारी रखीं। डीन से एडमिशन के लिए 30 बार मुलाकात की। अंतत: डीन का दिल पिघला और एडमिशन देने के लिए राजी हुए।
आज भारत में डॉक्टर्स डे मनाया जा रहा है। स्वतंत्रता सेनानी और बंगाल के सीएम रहे भारत रत्न डॉ. बिधानचंद्र रॉय की याद में मनाया जाने वाला यह दिन इस बार विशेष भी है। आज का दिन दिन-रात जुटे उन डॉक्टर्स को सलाम करने का है जिनके लिए कोरोनावायरस को हराना ही एकमात्र लक्ष्य है।
दुनिया के हर देश में पहुंचे कोरोना से लड़ने के लिए इन फ्रंटलाइन डॉक्टर्स की हजारों कहानियां है। त्याग, समर्पण और संघर्ष की इन कहानियों में ही जिंदगी की उम्मीदे जगमगा रही हैं क्योंकि इस 2020 के डॉक्टर्स डे पर ऐसा लगता है कि हमारा हर दिन डॉक्टर्स की मेहरबानी पर है।
आज इस दिन के मौके परफोटो में देखते हैं फिलीपींस के दो डॉक्टर की कहानी जो बताती है कि हालात कितने मुश्किल हैं और डॉक्टर कितनी हिम्मत के साथ डटे हैं। (सभी फोटो रायटर्सएजेंसी के सौजन्य से)
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महामारी के छह महीने बीत चुके हैं लेकिन न तो वैक्सीन तैयार हो पाई है न ही मामले थमते नजर आ रहे हैं। दुनियाभर में कोरोना का आंकड़ा एक करोड़ पार कर चुका है। इन छह महीनों में डॉक्टर्स और अस्पतालों ने कोरोना पीड़ितों के इलाज के दौरान कई नई बातें सीखी और समझी हैं। कोविड-19 के मामले सर्दी, सूखी खांसी और सांस की तकलीफ के साथ शुरू हुए थे लेकिन अब इसके लक्षणों में भी बढ़ोतरी हुई है। ब्रेन स्ट्रोक, पेट में तकलीफ, शरीर में खून के थक्के समेत कई नए लक्षण नजर आ चुके हैं। आज नेशनल डॉक्टर्स डे है। इस मौके परजानिए कोरोना के जरिए विशेषज्ञों को मिली ऐसी पांच सीख जो इलाज में काम आईं...
पहली सीख : कोविड के मरीजों में खून के थक्के जमने पर थिनिंग एजेंट देने से घटे
कोरोना से जूझ रहे मरीजों में खून के थक्के जमने के मामले बेहद आम हो रहे हैं। जो ब्रेन स्ट्रोक की वजह बन सकते हैं। इसका असर दिमाग से लेकर पैर के अंगूठों तक हो रहा है। अमेरिका की ब्रॉउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि पिछले दो महीने से कोरोना संक्रमितों में त्वचा फटने, स्ट्रोक और रक्तधमनियों के डैमेज होने के मामले भी दिख रहे हैं।
खून को पतला करने वालों की दवाओं (थिनिंग एजेंट) से कोरोना पीड़ितों की हालत को 50 फीसदी तक सुधारा जा सकता है। अमेरिकी शोधकर्ताओं के मुताबिक, वेंटिलेटर पर मौजूद मरीजों को अगर ऐसी दवाएं दी जाएं तो उनके बचने की दर 130 फीसदी तक बढ़ जाती है। दवा से गाढ़े खून को पतला करने के इलाज को एंटी-कोएगुलेंट ट्रीटमेंट कहते हैं। शोध करने वाली न्यूयॉर्क के माउंट सिनाई हेल्थ सिस्टम की टीम का कहना है कि यह नई जानकारी कोरोना के मरीजों को बचाने में मदद करेगी।
दूसरी सीख : फेफड़े के अलावा वायरस हार्ट, ब्रेन, किडनी और लिवर पर अटैक कर सकता है
कोरोना वायरस अब सिर्फ फेफड़े ही नहीं हार्ट, ब्रेन, किडनी और लिवर पर भी अटैक कर सकता है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने ब्रेन थैरेपी को कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए मददगार बताया है। केस वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, मस्तिष्क के कुछ जरूरी हिस्से ऐसे होते हैं जो सांसों और रक्तसंचार को कंट्रोल करते हैं।
अगर ऐसे हिस्सों को टार्गेट करने वाली थैरेपी का इस्तेमाल कोरोना मरीजों पर किया जाए तो उन्हें वेंटिलेटर से दूर किया जा सकता है। अब मरीजों में कोरोना शरीर के दूसरे अंगों को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, डॉक्टर्स इसे भी मॉनिटर कर रहे हैं।
तीसरी सीख : एंटीवायरल रेमेडेसिवीर, स्टीरॉयड डेक्सामेथासोन और प्लाज्मा से बेहतर नतीजे मिल रहे
रिसर्च में अब तक एंटीवायरल रेमेडेसिवीर, स्टीरॉयड डेक्सामेथासोन ही दो ऐसी दवाएं हैं जिनका असर कोरोना के मरीजों पर बेहतर असर दिखा है। कई देशों में इसका इस्तेमाल मरीजों पर करने की अनुमति भी मिल चुकी है।
अमेरिकी फार्मा कंपनी गिलीड साइंसेज के पास रेमडेसिवीर का पेटेंट हैं। ग्लेन फार्मा और हेटरो लैब्स के बाद अब सिप्ला ने कोरोना मरीजों के लिए रेमडेसिवीर की जेनरिक मेडिसिन पेश की है। इसका नाम सिप्रिमी रखा गया है। हाल ही में भारत में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने हेटरो लैब्स को रेमेडेसिवीर के जेनरिक वर्जन के मैन्युफैक्चर और सप्लाई की अनुमति दी थी। हेटरो यह दवा भारत में कोविफॉर नाम से बेचेगी जो गेम चेंजर साबित हो सकती है।
कोरोना के मरीजों में कौन सी दवा सटीक काम कर रही है, इस सर गंगाराम हॉस्पिटल की विशेषज्ञ डॉ. माला श्रीवास्तव का कहना है कि कुछ मरीजों में एंटीवायरल, स्टीरॉयड दवाएं बेहतर काम कर रही हैं कुछ में प्लाज्मा थैरेपी। कोरोना के मरीजों के लिए कौन सी एक दवा बेहतर है, यह कहना मुश्किल है।
चौथी सीख : जितनी ज्यादा टेस्टिंग करेंगे उतनी तेजी से हॉस्पिटल में मरीजों का दबाव घटेगा
विशेषज्ञों का कहना मरीजों की संख्या बढ़ने की बड़ी वजह यह नहीं है कि वायरस का संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है बल्कि जांच में तेजी आने से मरीज सामने आ रहे हैं। अधिक से अधिक जांच बेहद जरूरी है। मरीज जितनी जल्दी सामने आएंगे मामले कम होंगे और हॉस्पिटल में बढ़ रहे मरीजों की संख्या घटेगी। उन पर इलाज करने का दबाव कम होगा।
हाल ही में आईसीएमआर ने भी अपनी जांच करने की रणनीति का दायरा बढ़ाया है। एसिम्प्टोमैटिक, सिम्प्टोमैटिक की जांच के अलावा इनसे मिलने वालों का भी आरटी-पीसीआर टेस्ट करने की गाइडलाइन जारी की है।
पांचवी सीख : दुनियाभर में कोरोना से जुड़ी हर नई जानकारी डॉक्टर्स तक पहुंचना जरूरी
विशेषज्ञों के मुताबिक, कोरोना के मरीजों में दिख रहे नए लक्षण, रिसर्च और वैक्सीन से जुड़े हर अपडेट की जानकारी दुनियाभर के विशेषज्ञों तक पहुंचना जरूरी है। जैसे खाने का स्वाद न मिलना और खुश्बू को न पहचान पाना जैसे लक्षण अमेरिका और ब्रिटेन के कोरोना पीड़ितों में देखे गए, बाद में ये हर देशों के मरीजों में दिखे। ऐसे मामले आम होने के बाद इसके लक्षण अमेरिकी स्वास्थ्य संस्था सीडीसी ने अपनी गाइडलाइन में शामिल किया। देश में भी इसे कोरोना का लक्षण माना गया। ऐसे मामलों की जानकारी विशेषज्ञों को कोरोना के मामले समझने में मददगार साबित होती है।
टिक टॉक पर15 सेकेंड वीडियो बनाकर टिक टॉक स्टार कहलाना गर्ल्स के बीच पिछले कुछ सालों में खूबपाॅपुलर हुआ।अपनी क्रिएटिविटी को दर्शाने वाली इन स्टार्सके टिक टॉक परलाखों फॉलोअर्स हैं। टिक टॉक के अलावा ये इंस्टाग्राम और यू ट्यूबपर भी काफी एक्टिव रहती हैं।
जन्नत जुबैर रहमानी
टिकटॉक पर जितनी फेमसजन्नत जुबैर रहमानी हैं, उतने ही उनके भाई अयान भी हैं। अयान सिर्फ11 साल की उम्र में अपनी बहन के साथ टिक टॉक पर छाए रहते हैं।इतनी सी उम्र में ही उनके इंस्टाग्राम पर 7 लाख से भी ज्यादा फॉलोअर्स हैं। जन्नत टीवी सीरियल फुलवा में लीड रोल निभा चुकी हैं।इंस्टाग्राम पर उनके 1.2 करोड़से ज्यादा फॉलोअर्स हैं।
फैन फॉलोइंग : 13 लाख
इनकी कमाई : 20 लाख रुपए प्रति माह
गरिमा चौरसिया
गरिमा ने जब से टिक टॉक पर अपना डांस वीडियो 'बहुत हार्ड'पोस्ट किया है, तब से उन्हें 'बहुत हार्डगर्ल' के नाम से जाना जाता है। इंस्टाग्राम पर उनके 10 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं।गरिमा ने पंजाबी गानों में भी काम किया है। इसके अलावा वेमॉडलिंग भी करती हैं। इंस्टाग्राम पर उन्हें गीमा_आशी के नाम से पहचाना जाता है। वे पंचामृत और ग्लेमिशा के विज्ञापन में मॉडलिंग करती नजर आ चुकी हैं।
फैन फॉलोइंग : 1.58 करोड़
इनकी कमाई : 6 लाख रुपए प्रति माह
अर्शिफा खान
इन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत 2012 में चाइल्ड एक्ट्रेस के तौर पर की थी। धीरे-धीरे अर्शिफाने एक्टिंग में महारत हासिल कर ली। शायरी वीडियो के अलावा यह अपनी आईडी पर लिप सिंक और डांस वीडियो भी अपलोड करती रहती हैं जोदर्शकों को बहुत पसंद आते हैं। इन्होंने कई म्युजिक वीडियो में भी काम किया है।
फैन फॉलोइंग : 2.2 करोड़
इनकी कमाई : 50लाख रुपए सालाना
अवनीत कौर
टीवी एक्ट्रेस अवनीत को रियलिटी शो डांस इंडिया डांस लिटिल मास्टर और अलादीन-नाम तो सुना होगा जैसे टीवी सीरियल से शोहरत मिली। अवनीत फैशन आइकन के तौर पर भी गर्ल्स के बीच खास पहचान रखती हैं। इस एक्ट्रेस ने 2010 में एक डांस रीयलिटी शाेसे अपने कॅरिअर की शुरुआत की थी। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
फैन फॉलोइंग : 2.14करोड़
इनकी कमाई : 16 लाख प्रति माह
समीक्षा सूद
प्रोफेशनल मॉडल और टीवी एक्ट्रेस समीक्षा टिक टॉक पर बेहतरीन वीडियो क्लिप और कॉमेडी के जरिए अपनी खास पहचान रखती हैं। उन्होंनेटीवी सीरियल बाल वीर में अपने एक्टिंग के जौहर दिखाए हैं।इंस्टाग्राम पर उनके फॉलोअर्स की संख्या 0.2 करोड़है।
फैन फॉलोइंग : 2.28कराेड़
इनकी कमाई : 8-10 लाख रुपए प्रति माह
देशमें कोरोना की पहली वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को हैदराबाद की फार्मा कम्पनी भारत बायोटेक तैयार किया है। इसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे के साथ मिलकर बनाया गया है। ‘कोवैक्सीन’ का ट्रायल इंसानों पर करने के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की तरफ से अनुमति मिल गई है। प्री-क्लीनिकल ट्रायल सफल होने के बाद वैक्सीन को अप्रूवल मिला है। देश में इंसानों पर इसका का ट्रायल अगले माहसे शुरू होगा।
कोरोना से मौत का खतरा डॉक्टरों से दोगुना फैक्ट्री के मजदूरों और सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे लोगों को है। यह आंकड़ा ब्रिटेन के विशेषज्ञों ने अलग-अलग क्षेत्र में काम कर रहे 4700 कोविड-19 के मरीजों के डेटाका एनालिसिस करने के बाद जारी किया हैं। रिपोर्ट में 9 मार्च से 25 मई के बीच 20 से 64 साल के कोरोना पीड़ितों को शामिल किया था।
सिक्योरिटी गार्ड बनाम स्वास्थ्यकर्मी
रिसर्च में सामने आया कि एक लाख लोगों पर 74 पुरुष सिक्योरिटी गार्ड और 73 फैक्ट्री वर्कर की कोरोना से मौत हुई। वहीं स्वास्थ्य कर्मियों में यही आंकड़ा अलग रहा है। इनमें 1 लाख लोगों पर 30 स्वास्थ्यकर्मियों की मौत हुई। विशेषज्ञों के मुताबिक, एम्बुलेंस स्टाफ में संक्रमण का खतरा 82.4 फीसदी रहा, जो सबसे ज्यादा था। विशेषज्ञों के मुताबिक, हमारा मकसद यह बताना नहीं है कि डॉक्टरी पेशे के मुकाबले ये नौकरियांखतरनाक हैं बल्कि, लोगों कोअलर्ट रखना है।
गार्ड और मजदूर सबसे ज्यादा सम्पर्क में आए
विशेषज्ञों के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान भी फैक्ट्री वर्करों ने लगातार काम किया। जब कोरोना के मामले तेजी से फैल रहे थे तो वो लोगों के सम्पर्क में भी आए। वहीं, सुपर मार्केट में तैनात सिक्योरिटी गार्ड्स लाइन में लगे कस्टमर को सोशल डिस्टेंसिंग से बचाते हुए सैकड़ों लोगों सम्पर्क में आए।
सबसे अधिक खतरा अश्वेत-एशियाई लोगों को
विशेषज्ञों के मुताबिक, पुरुषों के लिए 17 अलग-अलग क्षेत्रों में मौत का खतरा अधिक रहा। इनमें टैक्सी ड्राइवर (65.3), शेफ (56.8), बस एंड कोच ड्राइवर्स (44.2), सेल्स-रिटेलअसिस्टेंट (34.2) शामिल हैं। जबकि ब्रिटेन में कोविड-19 मौत की दर 19.1 रही है। कोविड-19 से मौत के आंकड़े 1 लाख आबादी के आधार पर है।इनमें भी सबसे अधिक खतरा अश्वेत और एशियाई मूल के लोगों को है।
महिलाओंमें मौत का सर्वाधिक खतरा ग्रूमिंग इंडस्ट्री से
विशेषज्ञों के मुताबिक, महिलाओं में मौत का सबसे अधिक खतरा ग्रूमिंग इंडस्ट्री में काम करने वालीमहिलाओं को है। इनमें एक लाख में 31 महिलाओं की मौत हुई। हेल्थ एनालिस्ट बेन हम्बरस्टोन के मुताबिक, सिर्फ किसी क्षेत्र में मौत का खतरा अंतिम नतीजा नहीं है, इसके लिए यह भी निर्भर करता है कि आप किसउम्र औरकिस मूल के हैं।
कम विकसित देशों में रहने वाली वे महिलाएं जो मोबाइल चलाना जानती हैं, अपने फैसले खुद लेने में अन्य महिलाओं से आगेहैं। हाल ही में हुई स्टडी के अनुसार महिलाओं को आगे बढ़ाने में मोबाइल की पर्याप्त जानकारीकारगर हो रही है।
सोशल डेवलपमेंट की ओर इशारा
मेक गिल यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड और बोकोना यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार कम विकासशील देशों में रहने वाली महिलाएं मोबाइल फोन कोअपने विकास के लिए इस्तेमाल करती हैं। नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार 1993 और 2017 में 209 देशों में की गई रिसर्च के अनुसार महिलाओं के पास मोबाइल होना ग्लोबल सोशल डेवलपमेंट की ओर इशारा करता है।
विकास बढ़ाया जा सकता है
इसी के सहारे बेहतर स्वास्थ्य, लैंगिक समानाता और गरीबी कम करने जैसे महत्वूपर्ण कामों के विकास को बढ़ाया जा सकता है। महिलाओं के पास मोबाइल होने से वे किस तरह सशक्त बन सकतीहैं, ये जानने के लिए लेखक ने 100,000 यूथोपिया, एंग्लो, बरूंडी, मालावी, तंजानिया, यूगांडा और जिम्बाब्वे की महिलाओं पर अध्ययन किया।
हालांकि ये सभी ऐसे स्थान हैं जहां फर्टिलिटी की दर कम है। यहां गर्भवती महिलाओं और शिशु की मृत्यु दर अधिक रहती है। इन देशों में महिलाओं के पास मोबाइल फोन की संख्या तेजी से बढ़ी है।
बीमारी के प्रति जागरूक करती हैं
इन देशों में 1% मोबाइल का नॉलेज रखने वाली महिलाएं गर्भनिरोधक तरीकों से जुड़े फैसले खुद करती हैं। 2% वे महिलाएं हैं जो गर्भनिरोधनके आधुनिक तरीके इस्तेमाल करना पसंद करती हैं। 3% महिलाएं एचआईवी से जुड़ी जानकारी से खुद को अपडेट रखती हैं। वे उन महिलाओं को भी इस तरह की बीमारी के प्रति जागरूक करती हैं जिनके पास मोबाइल नहीं है।
पुरुषों की अपेक्षा पीछे हैं
रिसर्चर्स कहते हैं कि सबसे ज्यादा ये इफेक्ट आइसोलेटेड एरिया और गरीब बस्तियों में रहने वाली महिलाओं के बीच देखा गया।इस रिसर्च से इस बात का खुलासा भी हुआ कि विकासशील देशों में रहने वाली महिलाएं मोबाइल होने के बाद भी इंफोर्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के मामले में पुरुषों की अपेक्षा पीछे हैं।
क्या वायरल : जले हुए हांथ की एक वीभत्स फोटो। दावा किया जा रहा है कि हथेली का ये हाल सैनेटाइजर का अधिक उपयोग करने से हुआ है।
सोशल मीडिया पर इस दावे से जुड़े मैसेज
फैक्ट चेक पड़ताल
सैनिटाइजर से हाथ को होने वाले नुकसान से जुड़े 3 सवाल और WHO के जवाब
पहला सवाल : क्या अल्कोहल युक्त हैंड सैनेटाइजर के अधिक उपयोग का हाथों पर कोई विपरीत असर होगा ?
जवाब - एंटीसेप्टिक और एंटीबायोटिक्स में ऐसा संभव हो सकता है। लेकिन, हैंड सैनेटाइजर से जुड़ी न तो ऐसी कोई रिपोर्ट आई है। न ही ऐसा संभव है। बल्कि जितना ज्यादा इसका इस्तेमाल किया जाएगा, वायरस और बैक्टीरिया का खतरा उतना कम होगा।
दूसरा सवाल : क्या अल्काहल हाथों को सुखाता या जलन पैदा करता है ?
जवाब - इस दौर में बन रहे अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर में स्किन को सॉफ्ट करने वाले तत्व होते हैं। ये तत्व स्किन को रूखा होने से बचाते हैं। यहां तक की कई रिपोर्ट्स में ये बात सामने आई है कि जो नर्स अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर का नियमित उपयोग करती हैं, उनकी त्वचा का रूखापन पहले की तुलना में कम हुआ है। हैंड सैनेटाइजर उस सूरत में ही जलन पैदा करेगा, अगर आपका हांथ जख्मी हो। ऐसे में जख्मी हिस्से को पट्टी से कवर करना चाहिए। सैनेटाइजर से होने वाली एनर्जी के मामले भी दुनिया में बहुत कम (रेयर) हैं।
तीसरा सवाल : अल्कोहल युक्त हैंड सैनेटाइजर का अधिकतर कितनी बार उपयोग किया जा सकता है ?
ऐसी कोई सीमा नहीं है। यह सिर्फ एक भ्रांति है कि सैनेटाइजर के अधिक उपयोग के बाद हर 4 घंटे में हाथ धोने चाहिए। इसका कोई लॉजिकल कारण नहीं है।
WHO की वेबसाइट पर दिए गए यह सवाल और इनके जवाब यहां पढ़ें
निष्कर्ष : अल्कोहल युक्त सैनेटाइजर के अधिक उपयोग से हाथ जलने वाली बात भ्रामक है। दुनिया की शीर्ष स्वास्थ्य संस्था WHO ने ही इसका खंडन किया है।
ब्रिटेन की 12 सप्ताह की गर्भवती महिला के शरीर में दो गर्भाशय का पता चला है। दोनों गर्भाशय में दो-दो बच्चे हैं। 28 वर्षीय केली फेयरहर्स्ट को यह तब पता चला, जब वह सोनोग्राफी के लिए डॉक्टर के पास गई थी। डॉक्टरों के मुताबिक, 5 करोड़ में से 1 महिला के हर गर्भाशय में जुड़वा बच्चे होते हैं। ये ट्विन्स एक जैसे हो सकते हैं। महिला को दो बार प्रसव पीड़ा से भी गुजरना पड़ सकता है। केली की पहले से दो बेटियां हैं, एक की उम्र तीन और दूसरी चार साल की है।
शायद विरासत में मिला जीन
केली कहती हैं कि डॉक्टर्स का कहना है कि बच्चे की प्री-मैच्योर डिलीवरी हो सकती है। इससे पहले मेरी एक बेटी 8 हफ्ते और दूसरी की 6 हफ्ते पहले ही प्री-मैच्योर डिलीवरी हुई थी। अब हमारे परिवार में दो जुड़वा बच्चे होंगे। मेरे नाना भी ट्रिपलेट थे यानी उनके जीन जुड़ावा भाई-बहन थे। मैंने कभी नहीं सोचा था मेरे पास दो कोख होंगी।
कब बनती हैं शरीर में दो कोख
लंदन के सेंट जॉर्ज हॉस्पिटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ प्रो. असमा खलील के मुताबिक, दोहरी कोख की स्थिति को यूट्रस डाईडेल्फिस कहते हैं। यह एबनॉर्मेलिटी जन्मजात होती है। ऐसी महिलाओं में दो कोख होती हैं, कई बार दो वैजाइना भी हो सकती हैं। ऐसे मामले दुर्लभ होते हैं। ये कॉम्प्लिकेशन पैदा कर सकते हैं। ऐसा ही दो मामले सामने आए थे जब एक महिला ने 25वें हफ्ते में जुड़वा बच्चों को जन्म दिया, वहीं दूसरे मामले में डिलीवरी काफी लेट हुई थी।
डबल यूट्रस की स्थिति तब बनती है जब महिला में यूट्रस दो छोटी-छोटी ट्यूब में बंट जाता है। दोनों ही ट्यूब अंदर से खोखली होती हैं। कई बार ये जुड़ी हुई भी हो सकती हैं। दोनों ही ट्यूब सर्विक्स से जुड़ी रहती हैं। यूट्रस के औसत आकार के मुकाबले ये दो गर्भाशय थोड़े छोटे होते हैं। ऐसी स्थिति क्यों बनती हैं इसका अब पता नहीं चला सका है। इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है।
गर्भपात का बड़ा खतरा
ऐसी महिलाओ में गर्भपात और प्री-मैच्योर डिलीवरी होने की आशंका अधिक रहती है। इसके अलावा प्रेग्नेंसी के दौरान अधिक ब्लीडिंग होने का भी खतरा रहता है। ऐसी स्थिति में सिजेरियन डिलीवरी कराई जाती है ताकि जान के जोखिम को कम किया जा सके।
डबल यूट्रसवाली स्थिति की पहचान
ज्यादातर महिलाओं को इस बारे में जानकारी नहीं होती है। लेकिन कुछ लक्षण अगर महसूस होते हैं तो डबल यूट्रस की आशंका रहती है। जैसे अगर महिला को बार-बार गर्भपात हो रहा है, अक्सर ब्लीडिंग होती है, पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक दर्द रहता है तो स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। विशेषज्ञ कुछ जांचों जैसे पेल्विक टेस्ट, गर्भाशय का एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड और एमआरआई की मदद से पता लगाते हैं।
कोरोना महामारी सेपहले भी भारत में महिलाएं रोजगार, वेतन और शिक्षा जैसे मुद्दे को लेकरलैंगिकअसनामता झेल रहीं थीं।ऐसे मेंकोविड-19 के प्रभाव ने भारत की आर्थिक स्थिति को बुरी तरह से प्रभावित किया है।
ब्यूटी सैलून में काम करना पड़ा
अगर हम बात उत्तराखंड की25 साल वर्षीयआशा शर्मा की करें तो आशापांच साल पहले उत्तराखंड से दिल्ली डांस के सहारे अपना कॅरिअर संवारने आईं थीं। उनका ये सपना उस वक्त टूटा जब बेहतरीन डांस करने के बाद भी उन्हें दिल्ली के किसी डांस ट्रूप में जगह नहीं मिली।
उत्तराखंड से यहां आने तक की गई उनकी मेहनत असफल रही। आखिर दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें एक ब्यूटी सैलून में काम करना पड़ा। इस सैलून में आशा को 12,000 रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था। इसमें से कुछ पैसा वो अपनी मां के लिए भेजती थी।
अकेले घर चलाना भी मुश्किल हो गया
जब से आशा के पिता इस दुनिया से चले गए तो उनकी मां के लिए अकेले घर चलाना भी मुश्किल हो गया। आशा की मुश्किलें उस वक्त बढ़ी जब लॉकडाउन की वजह से सैलून बंद हो गए। आशा कहती हैं मेरी मां ने बचपन से हम भाई-बहनों की परवरिश के लिए कड़ी मेहनत की। लेकिन आज मैं इतनी बेबस हूं कि उनकी किसी भी तरह से मदद नहीं कर पा रही हूं।
मैंने ये महसूस किया कि एक महिला के लिए पुरुष की अपेक्षा पैसा कमाना हर हाल में मुश्किल होता है। पुरुष जहां चाहें वहां काम करके अपनी आजीविका चला सकते हैं। लेकिन ऐसा करना महिलाओं के लिए संभव नहीं है। उन्हें हर पल अपनी सुरक्षा का भी इतना ही ध्यान रखना पड़ता है।
काम का सही मेहनताना नहीं पाती हैं
गौरतलब है कि भारत में एक चौथाई से अधिक महिलाएं कड़ी मेहनत करने के बाद भी अपने काम का सही मेहनताना नहीं पाती है। उन्हें पुरुषों की अपेक्षा 35% कम सैलेरी मिलती है। भारत में 49% जनसंख्या महिलाओं की है। इनमें से सिर्फ 18% महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हैं।
लॉकडाउन के बाद देश की बदतर इकोनॉमी का असर उन महिलाओं पर अधिक हुआ है जिनके पास अपनी आजीविका चलाने के लिए भी फिलहाल साधन नहीं है। उन्हें नौकरी से हटा दिया गया है या उनके छोटे-मोटे कामकाम कोरोना की वजह से बंद हो गए हैं।
वापिस लौटने को मजबूर हो गए हैं
इस महामारी से पहले अपने गांव या शहर से दूर काम कर रहे वर्कर्स बेरोजगार होने की वजह से एक बार फिर वापिस लौटने को मजबूर हो गए हैं। इनमें पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की तादाद भी अधिक है। वे महिलाएं जो माइग्रेंटवर्कर्स के तौर पर एजुकेशन और हेल्थ सेक्टर मेंकाम करती हैं।
इसके अलावा सेक्स वर्कर्स और एग्रीकल्चर के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए न रोजगार है और न नहीं उनकीसुरक्षा की कोई वारंटी है। कोरोना की वजह से अपने घर वापिस लौटने के लिए लंबा सफर करनाभी इनके लिए खतरे से खाली नहीं है।
काम के समान अवसर नहीं मिलते हैं
द वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2020 में विश्व के 153 देशों में भारत की रैकिंग 112 है। यहां बात उन देशों की हो रही है जहां महिलाओं को पुरुषों के बराबर काम के अवसर नहीं मिल पाते हैं। यही हालत हेल्थ केयर और एजुकेशन के क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं की है। यहां भीमहिलाओं को पुरुषों की तरह काम के समान अवसर नहीं मिलते हैं।
कोरोना वायरस का असर भारत की सामाजिक न्याय व्यवस्था पर भी हुआ है। भारत के कई ऐसे राज्य हैं जहां हर 15 मिनट में महिलाओं के साथ बलात्कारहोता है। इसके अलावा घर के काम काजकी जिम्मेदारी भी हर हाल में उन्हें ही उठाना पड़ती है। लॉकडाउन की वजह से अधिकांश समय घर में रह रही महिलाओं पर घरेलू हिंसा के मामले में भी तेजी से बढ़े हैं।
अगर बांस की खासियत के बारे में बात की जाए तो बांस की पैदावार के लिए किसी फर्टिलाइजर की जरूरत नहीं होती है। बांस से बनी हर चीज केमिकल फ्री होती है। इसीलिएपर्यावरण बचाने के नजरिये से इन दिनों बैंबू प्रोडक्ट की डिमांड जोरों पर है।
वायरस और फंगस से बच सकें
प्रसाद राव कहते हैं कि बांस से बनी इन बॉटल की आंतरिक सतह को कॉपर से इसलिए बनाया गया ताकि इसमें रखापानी बैक्टीरिया, वायरस और फंगस से बच सके। ये बॉटल 300 मिली के अलावा 500, 750 और एक लीटर के साइज में भी उपलब्ध हैं। प्रसाद राव अपनी इस कोशिश से छोटे पैमाने पर किए जाने वाले उद्योगों को बढ़ाव देना चाहते हैं। वे ऐसे प्रोडक्ट इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। उनका रुझान प्लास्टिक फ्री उत्पादों को बढ़ावा देने की तरफ है।
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