अपनी उम्र की वजह से कांता स्वरूप कृष्ण घर से अकेले कहीं जा नहीं पाती। लेकिन जिस काम को सालों से कर रही हैं, उसे इस उम्र में भी छोड़ पाना भी उनके लिए मुश्किल है। वे पिछले कई सालों से ब्लड डोनेशन कैंप का आयोजन कर रही हैं। कोरोना काल में आजकल वे फोन पर बात करके रक्त दान के लिए लोगों को जागरूक करती हैं।
वे ब्लड बैंक के लिए लोगों से आर्थिक मदद करने की अपील भी करती हैं ताकि कभी किसी गरीब को पैसा देकर खून खरीदने की जरूरत न पड़े। फिलहाल कांता के ब्लड बैंक से जुड़े सभी कामों को उनकी बेटी नीति सरीन संभालती हैं।
कांता स्वरूप को उनके द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों की वजह से 1971 में पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। कांता को इस बात का दुख है कि कोविड-19 की वजह से ब्लड डोनेशन कैंप का आयोजन कम हुआ है। जबकि यही वो दौर है जब लोगों को ब्लड की ज्यादा जरूरत है। इसलिए हर हाल में इस तरह के कैंप का आयोजन होना चाहिए।
कांता चाहती हैं कि अधिक से अधिक लोग ब्लड कैंप का आयोजन करें ताकि गरीबों की मदद हो सके। कांता ने 2004 में रोटरी क्लब की मदद से रोटरी और ब्लड बैंक सोसायटी रिसोर्सेस सेंटर की स्थापना की थी। यहां वे नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन द्वारा तय किए गए मूल्य पर पेशेंट्स के लिए ब्लड उपलब्ध कराती थीं।
कांता अपने पति और बच्चों के साथ अंबाला से चंडीगढ़ आई थीं। वे कहती हैं - ''1964 में डॉ. जेली जोली उनके घर आए जो पीजीआई ब्लड बैंक के इंचार्ज थे। उन्होंने मुझे बताया कि आजकल ब्लड बेचने और खरीदने का धंधा चल रहा है। इससे कई लोगों की जान जा रही है। तब उन्होंने मुझे ब्लड डोनेशन अभियान चलाने को कहा। फिर मैं इस अभियान का हिस्सा बनी''। कांता को अब तक पद्मश्री के अलावा राजीव गांधी अवार्ड और मदर टेरेसा अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
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