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हिसार (महबूब अली). गाय की यूरिन से तैयार किए गए कैप्सूल और टेबलेट से कैंसर की दूसरी स्टेज और किडनी की समस्या का इलाज होगा। हृदय रोग में भी यह दवा कारगर है। फ्रिज फ्लाइंग टेक्नोलॉजी से तैयार यह दवा खून भी साफ करती है।
गुजरात के सरदार वल्लभभाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एसवीएनआईटी ) के प्रोफेसर डॉ. भारत धोलकिया ने अपने सहयोगियों के साथ कई साल की कड़ी मेहनत के बाद यह दवा तैयार की है। उन्होंने सोमवार को गुरु जम्बेश्वर यूनिवर्सिटी (जीजेयू) के तीन दिन के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन शोध प्रस्तुत किया।
6 महीने पहले ही कामयाबी मिली
डॉ. भारत ने बताया कि उन्हें गाय की यूरिन के विशेष गुणों की वजह से इससे दवा बनाने का विचार आया। कई साल रिसर्च की। फ्रिज ड्राइंग टेक्नोलॉजी से तकनीक से -20 से -30 डिग्री टेम्प्रेचर पर गाय के यूरिन पाउडर बनाया, फिर इससे टेबलेट और कैप्सूल बनाए। करीब छह महीने पहले उन्हें कामयाबी ऐसा कर पाने में कामयाबी मिली।
फ्रिज ड्राइंग तकनीक क्या है?
यह किसी पदार्थ से पानी को अलग करने की प्रक्रिया है। इसमेंमें तरल पदार्थ को बेहद कम दाब पर शून्य से नीचे के तापमान पर जमाया जाता है। फिर कम दाब पर ही इसे गर्म किया जाता है। इससे पानी अलग हो जाता है।
सुबह-शाम एक-एक टेबलेट लेनी होगी
प्रयोग में पाया गया कि यह दवा हर तरह के कैंसर की दूसरी स्टेज के इलाज में कारगर है। मरीज को यह टेबलेट सुबह और शाम को लेनी होती है। इसमें पोटेशियम, कैल्शियम, ओमेगा 6 और ओमेगा 9 फैटी एसिड भी होता है। गुजरात में इसकी बिक्री भी शुरू हो गई है।
प्रो. भारत रिएक्टर से बयो डीजल भी बना चुके
प्रो. भारत ने वातावरण को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए रिएक्टर से बायो डीजल भी तैयार किया है। यह वनस्पति तेलों से बने बायो डीजल से अलग है। इसे बिना किसी परिवर्तन के डीजल इंजनों में प्रयोग कर सकते हैं। वनस्पति तेलों से बने ईंधनों को कुछ बदलावों के साथ ही ‘इग्निशन कम्बस्शन’ इंजनों में इस्तेमाल किया जाता है।
हेल्थ डेस्क. नए साल का स्वागत एल्कोहल से न करें तो ही बेहतर होगा, क्योंकि यह सेहत के लिए हमेशा नुकसानदेह ही होती है। फिर भी अगर न्यू ईयर पार्टी में ज्यादा एल्कोहल लेने के कारण हैंगओवर की समस्या हो तो उससे बाहर आने या राहत दिलाने में ये आसान से टिप्स काफी मददगार हो सकते हैं। सीनियर कंसलटेंट डॉ. तरुण साहनी से जानिए हैंगओवर दूर करने के तरीके...
एजुकेशन डेस्क. सीबीएसई ने केन्द्रीय शिक्षक पात्रता परीक्षा 2019 का रिजल्ट शुक्रवार को घोषित कर दिया है। इस परीक्षा का आयोजन 8 दिसंबर 2019 को किया गया था। सीबीएसई के मुताबिक सीटेट 2019 परीक्षा का रिजल्ट परीक्षा आयोजित होने के 6 हफ्तों के भीतर जारी किया जाना था, लेकिन इसे तय समय से पहले ही जारी कर दिया गया है।
उल्लेखनीय है कि सीबीएसई इस परीक्षा का आयोजन साल में दो बार करती है। सफल आवेदकों को एक सर्टिफिकेट दिया जाता है जिसकी अवधि अगले सात सालोंतक मान्य होती है। इस सर्टिफिकेट को ऑनलाइन ही डाउनलोड किया जा सकता है। आवेदक अपने अंकों में इजाफे के लिए दोबारा इस परीक्षा में हिस्सा ले सकते हैं।
आजकल के इस आधुनिक और विकसित दौर में शिक्षा प्रणाली का बेहतर होना उतना ही जरूरी है जितना जीवन में खाने का महत्व है क्योंकि बेहतर शिक्षा प्रणाली ही बच्चों के बेहतर भविष्य का रास्ता बनती है। ऐसे में अपने बच्चों के लिए सही स्कूल का चुनाव करना किसी कड़ी चुनौती से कम नहीं है। जिस प्रकार मार्केट में किसी भी सामान की आपको ढेरों वैरायटी और अलग-अलग ऑफर मिल जाते हैं उसी प्रकार से आजकल शिक्षा के क्षेत्र में भी कम्पटीशन बहुत बढ़ गया है।
ऐसे में अपने बच्चों के लिए सही स्कूल का चयन करना बहुत ही कठिन हो गया है। सभी माता पिता की ये चाहत होती है उसके बच्चे को एक अच्छी शिक्षा मिले ताकि उसका आने वाला भविष्य आज से बेहतर हो सके। ऐसे में हर किसी का ये मानना होता है कि जितना महँगा स्कूल होगा वहाँ उतनी ही अच्छी पढ़ाई होगी। लेकिन ये बात किस हद तक सही है?
क्या महंगे स्कूल ही बेहतर शिक्षा देते हैं?
शिक्षा के क्षेत्र में होते विस्तार के कारण हमारे देश में कई ऐसे हाइफाई स्कूल हैं जिनकी फीस आसमान को छूती है। ऐसे में अगर कोई सामान्य वर्ग का व्यक्ति अपने बच्चों को पढ़ाने के बारे में सोच भी नहीं सकता है। ये जरूरी नहीं की महंगें स्कूल शिक्षा भी अच्छी दें कई बार ये भी देखा जाता है कि नॉर्मल स्कूल से शिक्षित बच्चे अपने भविष्य में कई सफलता हासिल करते हैं।
आइये जानते हैं कि उन टिप्स के बारे में जिनको ध्यान में रखा जाए तो आप अपने बच्चों के लिए एक बेहतर स्कूल का चयन कर सकते हैं।
शिक्षकों की अहम भूमिका –
हर बच्चे के लिए उसका स्कूल एक तरह से उसका दूसरा घर होता है इसलिए स्कूल के साथ उसके शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि जीवन में शिक्षक की भूमिका माता-पिता के समान होती है ऐसे में अध्यापकों का व्यवहार और बच्चों के प्रति उनका आचरण काफी हद तक बच्चों की ग्रोथ पर निर्भर करता है। वहीं ज्यादा महंगे और हाइफाई स्कूल में ये जरूरी नहीं होता की बच्चों को सही डिसिप्लिन सिखाया जाए।
छात्रों के भावनात्मक दृष्टिकोण से –
सभी माता-पिता अपने बच्चों के सफल होने की ख़्वाहिश रखते हैं और उन्हें अपनी क्षमता में उपलब्ध सर्वोत्तम चीजों को प्रदान करने में मदद करते हैं। ऐसे में पेरेंट्स अपने बच्चों को उच्च श्रेणी के स्कूल में भर्ती करवाते हैं। लेकिन कई बार ये भी देखा जाता है कि पेरेंट्स अपने बच्चों को बड़े स्कूल में एडमिशन करवा तो देते हैं लेकिन कई बार बच्चे अन्य बच्चों के परिवार और स्टेस से अपनी तुलना करने लगते हैं ऐसे में बच्चों के अंदर हीन भावना आने लगती है। ऐसे में ये जरूरी है कि अपने बच्चों को एडमिशन ऐसे स्कूल में कराये जहां दिखावा कम हो और शिक्षा को ज्यादा महत्व दिया जाए।
पढ़ाई के साथ एक्सट्रा करिक्युलर एक्टिविटीज़
स्कूल में एडमिशन करवाते समय हमेशा ये जरूर देखें कि वहाँ पढ़ाई के साथ बच्चों को एक्सट्रा करिक्युलर एक्टिविटीज़ भी करवाई जाये ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। इसके साथ ही स्कूल में दी जाने वाली शिक्षा, डिसिप्लिन और संस्कार उनके जीवन में आगे चल कर बहुत काम आते हैं। स्कूल में मिलने वाली शिक्षा बच्चों को बेहतर व्यक्तिव का इंसान बनती है और साथ ही उनमें छुपी खूबियों को उजागर करने में भी मदद करती है।
अगर आप भी अपनी बच्चों का एडमिशन एक ऐसे स्कूल में करवाना चाहते हैं जहां आपके बच्चों का पूर्ण विकास हो तो VSI इंटरनेशनल स्कूल आपके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है। आइये जानें ये स्कूल किस तरह से है बेहतर आपके बच्चों के लिए-
VSI इंटरनेशनल सीनियर सेकेंडरी स्कूल को वर्ष 2017 के उभरते स्कूल के रूप में माननीय शिक्षा मंत्री द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जो ये दर्शाता है कि यहाँ की शिक्षा प्रणाली का निर्माण स्टूडेंट के ग्रोथ और भविष्य को ध्यान में रख कर किया जाता है।
VSI इंटरनेशनल स्कूल सभी प्रमुख सुविधाओं के साथ जयपुर में सबसे अच्छा अंग्रेजी माध्यम स्कूल माना जाता है। जो पूर्ण रूप से एक वातानुकूलित स्कूल है, जिसमें प्ले ग्रुप से लेकर सीनियर सेकेंडरी तक के छात्र रहते हैं।
अच्छी शिक्षा प्रणाली और बेहतर शिक्षकों के बल पर यहाँ के हर शीर्ष श्रेणी; विज्ञान, वाणिज्य और कला स्ट्रीम में स्टूडेंट्स हर वर्ष शानदार रिजल्ट हासिल करते हैं।
छात्रों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हए हर क्षेत्र के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में नृत्य, संगीत, गायन, खेल आदि जैसे पाठ्येतर गतिविधियों में बच्चों को निपुण किया जाता है। ताकि भविष्य में चल कर सभी छात्र अपनी पसंद और गुण के हिसाब से अपना करियर चुन सके।
कई वर्षों से भारत को उच्च गुणवत्ता वाले सीए प्रदान करने वाले कोचिंग इंस्टीट्यूट VSI जयपुर प्रबंधन द्वारा इसे प्रबंधित किया जाता है। जो इसकी सफलता के मुख्य कारणों में से एक है।
अगर आप भी अपने बच्चों के लिए एक बेहतर स्कूल कि तलाश में हैं जो बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ व्यावहारिक ज्ञान भी तो VSI इंटरनेशनल स्कूल सबसे बेहतर विकल्प हैं। यहाँ पर उपस्थित पोज़ेटिव और भरोसेमंद शिक्षक न केवल बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं बल्कि जीवन के प्रति बच्चों के आचरण को पॉजिटिव रखने में भी मदद करते हैं।
बच्चों के अनुकूल वातावरण का निर्माण करते हुए शिक्षक द्वारा बच्चों को पॉजिटिव -डिसिप्लिन सिखाया जाता है। जिससे छात्रों को सामाजिक एवं मानसिक रूप से मजबूत करने के लिए प्रेरित किया जा सके। साथ ही VSI इंटरनेशनल स्कूल में बिना किसी मारपीट व उग्रशीलता के छात्रों को समझाया जाता है ताकि बच्चों के अंदर नकारात्मक-स्वभाव न उत्पन्न हो और वो शालीनता से बातों को समझे। क्योंकि इस तरह का आचरण ही बच्चों को बुलंदी पर ले कर जाता है।
देखें ये विडियो -
हैदराबाद.हैदराबाद स्थित एनआईएमएस अस्पताल के डॉक्टरों ने 19 वर्षीय युवती की रीढ़ की हड्डी से एक बुलेट निकाली है। डॉक्टरों ने बताया कि युवती का नाम असमा बेगम है। वह पिछले दो साल से कमर के दर्द से परेशान थी।
युवती का कहना है गोली कब और कैसे लगी, उसे जानकारी नहीं है। इस घटना के बाद पुंजागुट्टा पुलिस स्टेशन में आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है।एसआई नागार्जुन ने बताया कि पुलिस जांच कर रही है कि युवती को गोली कब और कैसे लगी।
नासिक. वायु प्रदूषण से निपटने के लिए महाराष्ट्र के नासिक रेलवे स्टेशन पर 'ऑक्सीजन पार्लर' शुरू किया है। इसके जरिये यात्री यहां शुद्ध हवा महसूस कर सकेंगे। यह पहल भारतीय रेलवे के सहयोग से एयरो गार्ड ने की है।
एयरो गार्ड के सह-संस्थापक अमित अमृतकर ने कहा कि ऑक्सीजन पार्लर की अवधारणा नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन की सिफारिश पर आधारित है। उन्होंने बताया कि 1989 में नासा ने एक अध्ययन किया था, जिसमें उन्होंने कुछ पौधों की पहचान की जो हवा से पांच सबसे हानिकारक प्रदूषकों को बेहतर तरीके से अवशोषित करते हैं। हमने उन पौधों में से अधिकांश को यहां लगाया है। उन्होंने बताया कि ये पौधे अपने आसपास के 10X10 फीट के क्षेत्र में हवा को साफ कर सकते हैं।
'हर घर में इस पहल का विस्तार करना है'
उन्होंने कहा, "यहां लगभग 1500 पौधे हैं। येरेलवे स्टेशन पर हवा में प्रदूषण को कम कर सकते हैं।" अमृतकर ने कहा कि उनका उद्देश्य हर रेलवे स्टेशन के साथ-साथ हर घर में इस पहल का विस्तार करना है। उन्होंने कहा, "लोग इन पौधों में से एक को मित्रों और परिवार को उपहार में दे सकते हैं। यह इस पहल की पहुंच का विस्तार करेगा और देश भर में वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करेगा।"
यात्रियों ने कहा- यह अच्छा प्रयास है
रेलवे स्टेशन पर यात्रियों ने इसेसकारात्मक प्रयास बताया। एक यात्री ने कहा, "यह हवा की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक अच्छा प्रयास है। मुझे लगता है कि सभी प्रदूषित क्षेत्रों और रेलवे स्टेशन में ऐसे पार्लर होने चाहिए।"
टोरंटो. कनाडा की ओंटारियो मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की टीम ने सेल्फ क्लीनिंग सरफेस (स्वत: सफाई कर देने वाली सतह) ईजाद की है। रसायनों के संयोजन से बनी प्लास्टिक की यह पारदर्शी झिल्ली खुद ही सभी प्रकार के बैक्टीरिया का सफाया कर देगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज के जरिये अस्पतालों और किचन आदि में सुपरबग्स से निपटने में मदद मिल सकेगी, क्योंकि ये बग्स विश्व में प्रति वर्ष हजारों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार होते हैं।
रिसर्च टीम के लेले सोलेइमानी (इंजीनियरिंग के भौतिक विज्ञानी) ने कहा कि इस सामग्री का परीक्षण करने के लिए एंटीबॉयोटिक रजिस्टेंट बैक्टीरिया के दो रूपों का उपयोग किया गया। जिसमें से एक मेथिसिलिन रजिस्टेंट स्टैफिलोकोकस ऑरियस (एमआरएसए) और दूसरा स्यूडोमोनास था।इसके बाद इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का उपयोग करके यह देखा कि वास्तव में कोई रोगाणु इस सतह पर नहीं टिक सकता। यह सामग्री नैनो-स्केल सतह इंजीनियरिंग और रसायन विज्ञान के संयोजन के माध्यम से काम करती है। इसकी सतह को सूक्ष्म झुर्रियों के रूप में बनाया गया है, जिस कारण पानी या रक्त के सूक्ष्म छींटे भी इस पर पड़े तो वे उछलकर अलग हो जाएंगे। यही हाल बैक्टीरिया के साथ होगा। हमें उम्मीद है कि यह एंटी-बैक्टीरियल बॉक्स का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाएगा।
2050 तक हर साल बैक्टीरिया इन्फेक्शन से 1 करोड़ की मौत की आंशका
वैज्ञानिक कैथरीन ग्रैंडफील्ड और एरिक डी ब्राउन का कहना है कि यह झिल्ली सभी तरह के विषाणुओं को स्वत: हटा देती है। इस प्लास्टिक की कवरिंग दरवाजे के हैंडल, रेलिंग, ट्राईपॉड, आईवी स्टैंड आदि पर की जा सकती है, इन स्थानों को एमआरएसए जैसे बैक्टीरिया के लिए सामान्य प्रजनन आधार माना जाता है। इसे उन सभी सतहों पर लगाया जा सकता है, जहां बैक्टीरिया के इकट्ठा होने तथा बढ़ने का खतरा रहता है। अगर इस खतरे से तत्काल नहीं निपटा गया, तो 2050 तक प्रति वर्ष बैक्टीरिया इन्फेक्शन से मरने वालों की संख्या 1 करोड़ से अधिक हो सकती है। टीम की सारा एम. इमानी का कहना है कि इसका उपयोग हर तरह की खाद्य सामग्री की पैकेजिंग के लिए भी आदर्श है। कच्चे मीट और खाद्य पदार्थों से ई.कोली, साल्मोनेला और लिस्टेरिया जैसे बैक्टीरिया के प्रसार को रोक सकता है। जहां भी रोगाणु होने का खतरा हो, वहां इसका इस्तेमाल बेहतर रहेगा।
नई दिल्ली.अच्छे खाने के मुरीद और स्वाद के पारखी भारतीयों की डेजर्ट को लेकरपहली पसंदअभी भी गुलाब जामुन ही है। एक फूड डिलेवरी ऐपपर इस साल नवंबर से जनवरी तक 1769399 ऑर्डर सिर्फ गुलाब जामुन के आए। ये ऑर्डर दिल्ली, मुंबई, बेंगलौर, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों से आए थे। इसके बाद 11.94 लाखऑर्डर फालूदा के और 2,00,301 ऑर्डर मूंग दाल हलवा के आए।
यह जानकारी ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग और डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी की चौथी वार्षिक सांख्यिकी रिपोर्ट में दी गईहै। रिपोर्ट के अनुसार, देश में हर मिनट बिरयानी के औसतन 95 ऑर्डर दिए जाते हैं। ऑर्डर वाली इस लिस्ट में बिरयानी ने तीसरे साल भी बाजी मारी है। हालांकि, 128% के साथ इस साल 'खिचड़ी' के ऑर्डर्स में भी बढ़ोतरी देखने को मिली है। बताया गया है कि ऐप के यूजर्स चिकन बिरयानी को पसंद करते हैं।
पिज्जा में वेजिटेरियन टॉपिंग्स पसंद
यूजर्सपिज्जा में वेजिटेरियन टॉपिंग्स को महत्व देते हैं। पिज्जा ऑर्डर पर पनीर, प्याज, चीज, एक्स्ट्रा चीज, मशरूम, शिमला मिर्च और मक्का सबसे पसंदीदा टॉपिंग में रहे। अन्य पसंदीदा डिश में मेथी मलाई मटर, ढाबा दाल विथ राइस, चपाती थाली, गोभी मटर मसाला, दाल मखनी विथ जीरा राइस, मिनी डोसा, इडली, वड़ा-सांबर थाली शामिल रहे।2019 में बिरयानी, मसाला डोसा, पनीर बटर मसाला, वेज फ्राइड राइस, वेज बिरयानी, और दाल मखनी सबसे ज्यादा पसंद की गई।
शहरों की पसंद
नई दिल्ली .देश में साल 2017 में हर सात में से एक व्यक्ति अलग-अलग तरह के मानसिक विकारों से पीड़ित रहा। इनमें डिप्रेशन (अवसाद), एंग्जाइटी (चिंता) और सिजोफ्रेनिया से लोग सबसे ज्यादा परेशान रहे। डिप्रेशन और एंग्जाइटी सबसे सामान्य रूप से मिलने वाली समस्याएं थीं। करीब साढ़े 4 करोड़ लोग इन दोनों विकारों से पीड़ित थे। इन दोनों का असर भारत में बढ़ता दिख रहा है। साथ ही महिलाओं और दक्षिण भारतीय राज्यों में इनका असर सबसे ज्यादा दिखाई दिया।
उत्तर भारत में एंग्जाइटी का असर सबसे कम देखा गया। हैरान करने वाली बात यह है कि 2017 में मानसिक बीमारी के रोगियों की संख्या 1990 की तुलना में दोगुनी हो गई है। सोमवार को लैंसेट साइकैट्री द्वारा जारी एक स्टडी में इसकी जानकारी दी गई है।
2017 में 19.7 करोड़ लोग मानसिक बीमार थे
अध्ययन के मुताबिक, देश में 2017 में 19.7 करोड़ लोग मानसिक विकार से ग्रस्त थे। डिप्रेशन पीड़िताें में उम्रदराज लोगों की संख्या ज्यादा है। डिप्रेशन की वजह से होने वाली आत्महत्याओं में भी इजाफा हुआ है। बचपन में होने वाले मानसिक विकार के मामले उत्तर भारतीय राज्यों में ज्यादा देखे गए। हालांकि, देशभर में बच्चों के इस तरह के मामले पहले की तुलना में कम हुए हैं। सभी मानसिक विकार पीड़ितों में 33.8% डिप्रेशन, 19% एंग्जाइटी और 9.8% लोग सिजोफ्रेनिया से पीड़ित थे। एम्स के प्रोफेसर अाैर मुख्य शोधकर्ता राजेश सागर का कहना है कि देश में मानसिक रोगियों की एक बड़ी संख्या है। इसका कारण मानसिक रोगों पर ध्यान नहीं दिया जाना है।
10 साल मेंदुनिया में डिप्रेशन के मामले 18% बढ़े
देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सामान्य चिकित्सा सेवाओं में शामिल कर इसका इलाज लेने में लोगों की झिझक दूर करने की जरूरत है। 1990 में कुल रोगियों की संख्या में 2.5% रोगी मानसिक विकारों से पीड़ित होते थे, जबकि 2017 में यह संख्या बढ़कर 4.7% हो गई। 2017 की विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक देश की जनसंख्या का 7.5% हिस्सा मानसिक विकारों से पीड़ित था। 2005 से 2015 के बीच दुनिया में डिप्रेशन के मामले 18% बढ़े थे। तब दुनियाभर में डिप्रेशन के करीब सवा तीन करोड़ पीड़ित थे। इनमें लगभग आधे दक्षिण-पूर्वी एशिया में थे।
तमिलनाडु में सबसे ज्यादा डिप्रेशन, सबसे कम एंग्जाइटी मध्यप्रदेश में
सबसे ज्यादा डिप्रेशन वाले राज्य
क्रम राज्य
1. तमिलनाडु
2. आंध्रप्रदेश
3. तेलंगाना
4. केरल
5. गोवा
6. महाराष्ट्र
सबसे कम एंग्जाइटीवाले राज्य
क्रम राज्य
1. मध्यप्रदेश
2. छत्तीसगढ़
3. उत्तरप्रदेश
4. बिहार
5. मेघालय
31. केरल
लाइफस्टाइल डेस्क. महिलाओं की आत्मनिर्भरता और सशक्तिकरण के लिए राज्य और केंद्र सरकारें कई योजनाएं लाती रही हैं। इनमें आर्थिक सशक्तिकरण से जुड़ी योजनाएं भी शामिल हैं। लेकिन महिलाओं को वित्तीय योजना के बारे में स्वयं जागरूक होने की सबसे अधिक जरूरत है। बिना इस जागरूकता के वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं हो सकती हैं। महिलाओं की वित्तीय योजना पूरी तरह से पुरुषों की तरह नहीं हो सकती क्योंकि दोनों की जरूरतें तो अलग होती ही हैं, परिस्थितियां भी अलग होती हैं। दुर्भाग्य से महिलाएं निवेश को प्राथमिकता नहीं देती हैं। महिलाओं की फाइनेंशियल प्लानिंग अलग होने के 4 कारण प्रमुख हैं। अजय केडिया, एमडी, केडिया एडवाइजरी, मुंबई आज इन्हीं के बारे में बता रहे हैं...
पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की सैलरी 21% तक कम
पुरुषों और महिलाओं की आय या सैलरी में अभी भी बहुत अंतर बना हुआ है। एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार 2019 में अगर पुरुष को 100 रुपए सैलरी मिलती है, तो महिला को 79 रुपए ही मिलते हैं। यानी करीब 21 फीसदी कम। आमतौर पर ऐसा भी देखा गया है कि विभिन्न कारणों से महिलाएं उच्च और ज्यादा वेतन वाले पदों पर कम ही पहुंच पाती हैं। कार्यस्थलों पर अभी भी संरचनात्मक बाधाएं हैं, जो महिलाओं को आगे बढ़ने से रोकती हैं। इसलिए कम आय को देखते हुए महिलाओं के लिए और भी जरूरी है कि वे अच्छा निवेश पोर्टफोलियो बनाकर पैसा कमाना और जोड़ना शुरू करें।
करियर का ग्राफ हमेशा सीधा नहीं रहता
कई बार महिलाओं के करियर का ग्राफ हमेशा बढ़ता हुआ नहीं हो पाता। इसके पीछे हमारी सामाजिक संरचना भी हो सकती है या महिलाओं की निजी इच्छा भी। अलग-अलग कारणों से कई बार आपको करियर से ब्रेक लेना पड़ सकता है। कुछ शादी के बाद नौकरी छोड़ देती हैं, कुछ प्रेग्नेंसी के दौरान या उसके बाद। इससे करियर ग्रोथ और आय, दोनों प्रभावित होती हैं। आपने रिटायरमेंट के लिए पैसे इकट्ठा करने का जो लक्ष्य रखा है, वह इससे प्रभावित हो सकता है। इस अंतर को कम या खत्म करने लिए निवेश की बेहतर प्लानिंग की आवश्यकता है।
वित्तीय जागरूकता की कमी भी है कारण
ग्लोबल फाइनेंशियल लिटरेसी एक्सीलेंस सेंटर द्वारा किया गया 2017 का एक अध्ययन बताता है कि दुनियाभर में केवल 20 फीसदी महिलाओं को ही फाइनेंशियल कंसेप्ट की समझ है। यह पुरुषों से 8 फीसदी कम है। यह अंतर विकासशील देशों में और भी बढ़ जाता है। वित्तीय साक्षरता का अर्थ है किसी व्यक्ति को बजट बनाने, पैसा बचाने, खर्च पर नियंत्रण करने, कर्ज संभालने, फाइनेंशिल मार्केट में भाग लेने, रिटायरमेंट की प्लानिंग करने और संपत्ति जोड़ने की बेहतर समझ हो। हालांकि महिलाओं के फायनेंस के प्रति जागरूक न होने के कई कारण हो सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि आप फाइनेंशियल प्लानिंग के बारे में पढ़कर या सेमीनार इत्यादि में शामिल होकर जानकारी बढ़ाती रहें।
ज्यादा उम्र यानी ज्यादा वित्तीय जरूरतें
सेंसस ऑफिस के सेंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम के तहत किए गए सर्वे के मुताबिक भारत में 60 की उम्र के बाद पुरुष के औसतन 17 वर्ष और जीने की संभावना होती है, जबकि महिलाओं की 19 वर्ष है। महिलाओं की औसत आयु 69.6 वर्ष है, जबकि पुरुषों की करीब 66 वर्ष। चूंकि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा जीतीं हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा पैसे जोड़ना जरूरी है, जिसका एक ही तरीका है- बेहतर वित्तीय योजना बनाना।
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