राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन के तहत शुरू की गई 'उम्मीद की रसोई' उन महिलाओं को रोजगार प्रदान करती है, जिनकी नौकरी कोविड-19 की वजह से छूट गई है।
दिल्ली की बुद्ध नगर निवासी आरती महामारी से पहले लोगों के घरों में खाना बनाने का काम करती थी। लॉकडाउन की वजह से उसकी नौकरी छूट गई। ऐसे में उसके लिए अपने परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हुआ। लेकिन नई दिल्ली की उम्मीद की रसोई का हिस्सा बनने के बाद वह खुश है।
आरती कहती है - ''हम पांच लोगों की टीम है। हमने मिलकर तीन किलो चावल और दो किलो राजमा बनाएं। पहले ही दिन 2:30 बजे तक सारा खाना बिक गया। अपने काम की शुरुआत हमने राजमा-चावल से की है। धीरे-धीरे अपने मेन्यू में और चीजें भी शामिल करेंगे''।
नई दिल्ली में अब तक की गई पहल जैसे 'उम्मीद की राखी' और 'उम्मीद के गणपति' की सफलता के बाद उम्मीद की रसाई की सफलता की आशा की जा रही है।
यह प्रोजेक्ट स्व सहायता समुहों के लिए बनाया गया है। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट तन्वी गर्ग के अनुसार ये रसोई उन महिलाओं के जीवन में उम्मीद जगाएगी जो लॉकडाउन की वजह से अपनी नौकरी खो चुकी हैं।
तन्वी कहती हैं - ''हमारे नई दिल्ली जिला प्रशासन ने अपने तीन उपखंडों में 12 ऐसे समूहों का गठन किया है। इनमें वसंत विहार, दिल्ली कैंट और चाणक्यपुरी शामिल है। लगभग हर समूह में 20 महिलाएं हैं। हम उन्हें वित्तीय मामलों की ट्रेनिंग दे रहे हैं। साथ ही हाथ में बनी चीजों से आजीविका चलाने के उपाय भी बता रहे हैं''।
उम्मीद की रसाई के अंतर्गत स्व सहायता समुहों की महिलाएं अपने घर से खाना बनाकर स्टॉल पर लाती हैं और इसे बेच देती हैं। इनका एक स्टॉल वसंत विहार में एसडीएम ऑफिस के पास लगाया गया है। वहीं दूसरा सरोजिनी नगर मार्केट और तीसरा जामनगर में डीएम ऑफिस के पास स्थित है।
तन्वी के अनुसार, ''इन स्टॉल की शुरुआत से पहले महिलाओं को प्रोफेशनल शेफ द्वारा हाइजीनिक कुकिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। उन्हें ये भी बताया जाता है कि खाना किस तरह से सर्व करना है, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे करना है और मास्क पहनने का सही तरीका क्या है''।
उम्मीद की रसोई में 18 से 60 साल की महिलाएं काम कर सकती हैं। ये प्रोजेक्ट महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सराहनीय प्रयास है।
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