from Latest And Breaking Hindi News Headlines, News In Hindi | अमर उजाला हिंदी न्यूज़ | - Amar Ujala https://ift.tt/2ZTl4ia
via IFTTT
आमतौर पर माता-पिता, भाई-बहन और सास, ननंद, देवर आदि के साथ कई बार छोटी-छोटी बातों पर तनाव हो जाता है। अच्छे संबंध के लिए एक अच्छा लिसनर होना जरूरी है। जानिए 4 कारण, जो संबंध मजबूत बनाए रखते हैं।
1. परिवार के सदस्य बोलें, तो बीच में न टोकें: परिवार के बीच मौजूद होने पर कई बार हमसे ऐसे टॉपिक्स पर भी चर्चा होती है, जिनमें हमारी दिलचस्पी नहीं होती है। उनकी बात बीच में काटने की भूल ना करें। यथासंभव शांत रहें।
2. खुद पर ना केंद्रित हो बातचीत : कई महिलाएं किसी भी विषय पर होने वाली बातचीत को खुद पर केंद्रित कर लेती हैं। यह गलती संबंधों में खटास लाती है। किसी विषय पर अपने अनुभव के बजाय उनकी बातें ध्यान से सुनना जरूरी है।
3. अच्छी नहीं है हड़बड़ी : घर परिवार से लेकर ऑफिस तक हो सकता है आप पर कई जिम्मेदारियां हों, लेकिन परिवार के सदस्यों से जल्दबाजी में बात करना और उन्हें कहने के लिए पर्याप्त समय ना देना आपके लिए अच्छा नहीं है।
4. नजरें मिलाकर बात करना जरूरी: परिवार में इमोशंस का महत्व होता है। सिर्फ शब्द ही नहीं, बल्कि भाव भंगिमाएं भी मायने रखती हैं। जब आप परिवार के सदस्यों से नजरें मिलाकर बात करती हैं तो वे आपसे कनेक्ट फील करते हैं।
मां अपना सब कुछ अलग रखकर बच्चे की परवरिश में खुद को खो देती है। ऐसे में हमारा भी कर्तव्य होना चाहिए कि कैसे अपनी मां को ये अहसास कराएं कि वो हमारे लिए क्या हैं? इन 5 बातों का यदि हम अनुसरण करेंगे तो अपनी मां को दिल की गहराई से रूबरू करा सकते हैं।
1. यादें ताजा करें
सबसे ज्यादा खुश मां तब होती है जब वो ये याद करती है कि उसके बच्चे ने बचपन में क्या शरारतें की थीं और वो कैसे खेला करते थे। कभी मां से पूछें कि वो अपने बचपन के दिनों में क्या किया करती थीं। मां से बातों के दौरान आप गौर करें कि उनकी आंखें उसी दौर में पहुंच चुकी होंगी, जब आप छोटे थे। वो आपको सिर्फ अच्छी आदतें ही बताएंगी और बस खुश होती चली जाएंगी।
2. उनकी मदद करें
लॉकडाउन के दौरान हमें जो समय मिला है, इन सबके बीच सबसे ज्यादा भला हुआ है उस मां का जो हमेशा चाहती थी कि मेरे बच्चे कुछ समय बिना दुनिया जहान की परवाह किए मेरे पास बैठें। वैसे भी हर घर में पत्नी और बच्चों के लिए पुरुष कितना भी बिजी हो समय निकाल ही लेता है, पर मां के लिए ये संभव नहीं होता है। ऐसा करने से मां को आपके जीवन में उनकी अहमियत पता चलेगी।
3. उनकी परवाह करें
जैसा मां हमें प्यार करती हैं, वैसी ही देखभाल करना तो मुश्किल है पर जितना हम कर सकते हैं, उतने प्रयास जरूर करना चाहिए। यह सच है कि मां का दिल बच्चे की परवाह में जैसा जन्म के पहले दिन होता है, वैसा ही आखिरी तक बना रहता है। बच्चे भी उन पर ध्यान केंद्रित करेंगे तो ये बराबर की खुशी महसूस कराएगा। उनकी छोटी-छोटी सी चीजों की परवाह करें और उन पर ध्यान रखें।
4. संस्कारों को अपनाएं
जैसे मां हमारी प्रथम गुरु होती हैं तो उनकी दी हुई शिक्षा भी महत्वपूर्ण होती है। इसे अपने जीवन में उतारें। मां की दी हुई सीख ही हमारा आधार बनती है। यही व्यक्तित्व की पहचान भी होती है। जब भी उनकी दी हुई सीख की झलक मां हम में देखती हैं तो वो अपने आप को गौरवान्वित महसूस करती हैं। ये करके हम उनकी ममता को वो दर्जा देते हैं जिसकी वो हकदार हैं। यकीन मानिए उनके दिए संस्कार हमें जीवन में सदा काम आते हैं।
5. नई चीजें सिखाएं
इंटरनेट जैसी दैनिक जीवन में काम आने वाले अपडेशन से अवगत कराएं। जैसे हमारी मां ने वक्त के हिसाब से हर उम्र में कुछ नया सिखाया है तो क्यों ना हम भी उन्हें आज के जमाने के हिसाब से नई चीजें सिखाएं। ताकि वो भी दुनिया से कदम से कदम मिलाकर चल सकें और अपने आप को पिछड़ा हुआ महसूस न करें। उनका यह ज्ञान उन्हें आज के समय में अपडेट रहने में मदद करेगा।
कोरोना महामारी के चार महीने के बादचीनी वैज्ञानिकों नेउस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है, जिसमें दावा किया गया था कि कोरोनावायरस वुहान के वेट मार्केटसे फैला है। यहां के वैज्ञानिकों का कहना है कि वेट मार्केट का रोल एक सुपर स्प्रेडर की तरह है, न कि किसीसोर्स की तरह। हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन की इसे लेकर अभी कोई टिप्पणी नहीं आई है।
वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के विशेषज्ञों ने रिपोर्ट का खंडन करते हुए कहा, कोरोना के संक्रमण का पहला मामला वुहान की बाजार से नहीं आया है। महामारी की शुरुआत में शोधकर्ताओं की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि कोरोना वुहान के हुनान स्थित सी-फूड मार्केट से फैला। इसे अब चीनी वैज्ञानिकों ने इसे फिरनकार दिया है।
डीएनए सबूतों में चमगादड़-पैंगोलिन पर शक
वैज्ञानिकों ने डीएनए सबूतों के आधार पर दावा किया है कि नोवल कोरोनावायरस Sars-CoV2 चीनी चमगादड़ों में पहले से मौजूद था। इंसानों में इसके आने में किसी बीच के वाहक जानवर की भूमिका हो सकती है और इसमें पैंगोलिन पर सबसे ज्यादा शक है।
चीन के सीडीसी ने भी दिया जवाब
वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के डायरेक्टर गाओ फू का कहना है कि वुहान के पशु बाजार से दोबारा सैम्पल लेने के बाद रिपोर्ट निगेटिव आई है। यह बताता है कि यहां के दुकानदार संक्रमित नहीं हुए।
1 जनवरी को मार्केट बंद करा दी गई थी
वुहान प्रशासन ने डब्ल्यूएचओ को 31 दिसम्बर को निमोनिया की तरह दिखने वाले अलग किस्म के लक्षणों के बारे में बताया था, जो बाद में कोरोनावायरस के लक्षण के तौर पर पहचाना गया। शुरुआत में वुहान की मार्केट से कोरोना के 41 मामलों को जोड़ा गया। इसके बाद 1 जनवरी से मार्केट को बंद करा दिया गया था।
सार्स में भी ऐसे ही बाजार से फैला था संक्रमण
अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता प्रो. कोलिन कार्लसन के मुताबिक, 2002 और 2003 में आई सार्स महामारी के समय भी गुआंगडॉन्ग के एक ऐसे ही बाजार से संक्रमण फैला था। लेकिन, जांच के दौरान वुहान के बाजार में एक भी जानवर कोरोना पॉजिटिव नहीं मिला। अगर वो संक्रमित नहीं हुए तो इसका मतलब है कि उन्हें कोई ऐसा सम्पर्क नहीं मिला जिससे मामले फैलें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी आशंका जताई थी
हाल ही में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने कहा था कि यह साफ है कि कोरोनावायरस के संक्रमण में वुहान की मीट मार्केट ने भूमिका रही है, लेकिन इस मामले में अभी और रिसर्च की जरूरत है। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि या तो वुहान के मार्केट से यह वायरस विकसित हुआ या फिर यहां से इसका फैलाव हुआ है। चीन के अधिकारियों ने जनवरी में इस मार्केट को बंद कर दिया था, इसके साथ ही वन्यजीवों के व्यापार में अस्थायी प्रतिबंध भी लगा दिया था।
पहला मामला वुहान की झींगा बेचने वाली महिला में सामने आया था
मार्च में मीडिया रिपोर्ट में कोविड-19 की पहली संक्रमित महिला के स्वस्थ होने का मामला सामने आया है। 57 वर्षीय महिला चीन के वुहान में झींगेबेचती थी। वेई गुझियान को पेशेंट जीरो बताया गया था। पेशेंट जीरो वह मरीज होता है, जिसमें सबसे पहले किसी बीमारी के लक्षण देखे जाते हैं। खास बात यह है कि करीब एक महीने चले इलाज के बाद यह महिला पूरी तरह से ठीक हो चुकी थी।
वुहान वेट मार्केट में10 दिसंबर की घटना
द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि यह महिला उस समय संक्रमित हुई, जब वह वुहान के हुआन सी-फूड मार्केट में 10 दिसंबर को झींगे बेच रही थीं। इसी दौरान उसने एक पब्लिक वॉशरूमका इस्तेमाल किया थाऔर इसके बाद उसे बुरी तरह से सर्दी-जुकाम ने जकड़ लिया।
चीन मेंबायोटेक कम्पनी सिनोवेट ने कोरोनावायरस की वैक्सीन बनाने की दिशा में काफी आगे बढ़ चुकीहै, लेकिन उसे ट्रायल के लिए मरीज नहीं मिल रहे हैं। कम्पनी का दावा है कि उसका वैक्सीन99 फीसदी तकअसरदार साबित होगा। बायोटेक कम्पनी सिनोवेट का कहना है कि हमने वैक्सीन के 100 मिलियन डोज तैयार करने का लक्ष्य रखा है।
वैक्सीन का नाम रखा कोरोनावेक
एकेडमिक जर्नल साइंस में प्रकाशित शोध के मुताबिक, कम्पनी ने वैक्सीन का नाम "कोरोनावेक" रखा है। ट्रायल में पाया गया है कियह बंदर को कोरोनावायरस से सुरक्षित रखती है। शोधकर्ता का कहना है कि अगले दौर के ट्रायल के लिए चीन में कोविड-19 के मरीजों की संख्या काकम होना सबसे बड़ी समस्या है।
तीसरे दौर के ट्रायल के लिए ब्रिटेन से बातचीत जारी
कम्पनी अपने दूसरे दौर का ट्रायल कर रही है जिसमें 1 हजार वॉलंटियरोंको शामिल किया गया है। वैक्सीन का तीसरा ट्रायल ब्रिटेन में किया जाना है और इसके लिए बातचीत चल रही है। शोधकर्ता लुओ बायशन का कहना है कि मैं 99 फीसदी तक निश्चिंत हूं कि ये वैक्सीन कारगर साबित होगी।
हाई रिस्क जोन वालों को प्राथमिकता
कम्पनी के सीनियर डायरेक्टर हेलेन येंग का कहना है कि हम तीसरे दौर के ट्रायल के लिए ब्रिटेन और यूरोपीय देश से बातचीत कर रहे हैं। अभी यह शुरुआती दौर में है। वैक्सीन के प्रोडक्शन से पहले रिसर्च पूरी होना बेहद जरूरी है। इसके ट्रायल में सफल होने पर अप्रूवल के बाद सबसे पहले उन्हें दी जाएगी, जो हाई रिस्क जोन में हैं।
इधर, ऑक्सफोर्ड ब्रिटेन को पहले वैक्सीन देने की तैयारी में
दुनियाभर के वैज्ञानिक वैक्सीन तैयार करने की रेस में हैं। वैक्सीन तैयार होने के बाद भी सभी देशों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है, बड़े स्तर पर इसे तैयार करना और उपलब्ध कराना। देश अपनी ही जनसंख्या में कैसे वैक्सीन देने की प्राथमिकता तय करेंगे। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर वैक्सीन तैयार कर रही ड्रग कम्पनी एस्ट्राजेने का का कहना है कि ब्रिटेन पहला देश होगा, जिसे सबसे पहले हमारी वैक्सीन मिलेगी।
आज वर्ल्ड नो टोबैको डे है। इस साल की थीम है युवाओं को तम्बाकू और निकोटीन के दूर रखने के साथ उन झांसों से भी बचाना, जिससेकम्पनियां उन्हें धूम्रपान करने के लिए आकर्षित करती है। तम्बाकू से कमजोर हुए फेफड़े कोरोनावायरस को संक्रमण का दायरा बढ़ाने में मुफीद साबित हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) और शोधकर्ताओं ने भी चेतावनी दी है।
एक सर्वे कहता है, 27 फीसदी टीनएजर्स ई-सिगरेट पीते हैं। उनका मानना है कि ये स्मोकिंग नहीं सिर्फ फ्लेवर है और सेहत के लिए खतरनाक नहीं। इस पर मेदांता की विशेषज्ञ डॉ. सुशीला का कहना है, यह एक गलतफहमी है, वैपिंग भी सिगरेट पीने जितना खतरनाक है।
वर्ल्ड नो टोबैको डे पर जानिए कोरोना और तम्बाकू का कनेक्शन, इस मुद्देपर डब्ल्यूएचओ और मेदांता हॉस्पिटल के इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट की डायरेक्टर डॉ. सुशीला कटारिया की सलाह।
लॉकडाउन तम्बाकू छोड़ने का सबसे अच्छा समय
डॉ. कटारिया कहती हैं, तम्बाकू छोड़ने के लिए लॉकडाउन सबसे अच्छा समय है। तम्बाकू छोड़ने के लिए कम से कम 41 दिन का समय चाहिए होता है। अगर तीन महीने तक कोई तम्बाकू नहीं लेता या स्मोकिंग नहीं करता तो वापस इसे शुरू करने की आशंका 10 फीसदी से भी कम रह जाती है। आप लॉकडाउन के दौरान दुनिया के सबसे बड़े एडिक्शन से पीछा छुड़ा सकते हैं।
टीनएजर्स में सिगरेट से ज्यादा आसान ई-सिगरेट की लत पड़ना
कुछ लोग कहते हैं हम तो सिगरेट नहीं ई-सिगरेट पी रहे हैं और इसका बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इस पर डॉ. सुशीला कटारिया का कहना है कि ई-सिगरेट में खासतौर पर एक लिक्विड होता है, जिसमें अक्सर निकोटिन के साथ दूसरे फ्लेवर होते हैं। हमे इसकी लत लग जाती है और फेफड़े भी डैमेज होते हैं।
इन दिनों यह कई फ्लेवर में उपलब्ध हैं ऐसे में बच्चों में इसकी लत लगना सिगरेट से भी ज्यादा आसान है। ई-सिगरेट की आदत पड़ने के बाद सिगरेट और तम्बाकू की लत पड़ना काफी आसान हो जाता है, ऐसा कई शोध में भी सामने आया है।
4 सवालों में डब्ल्यूएचओ की नसीहत : तम्बाकू हर रूप में है खतरनाक और संक्रमण का खतरा भी बढ़ाता है
Q-1) मैं स्मोकिंग करता हूं, क्या मुझे कोरोना का गंभीर संक्रमण हो सकता है?
डब्ल्यूएचओ : स्मोकिंग और किसी भी रूप में तम्बाकू लेने पर सीधा असर फेफड़े के काम करने की क्षमता पर पड़ता है और सांस लेने से जुड़ी बीमारियां बढ़ती हैं। संक्रमण होने पर कोरोना सबसे पहले फेफड़े पर अटैक करता है, इसलिए इसका मजबूत होना बेहद जरूरी है। वायरस फेफड़े की कार्यक्षमता को घटाता है। अब तक कि रिसर्च के मुताबिक धूम्रपान करने वाले लोगों में वायरस का संक्रमण और मौत दोनों का खतरा ज्यादा है।
Q-2) मैं स्मोकिंग नहीं करता सिर्फ तम्बाकू लेता हूं तो संक्रमण का कितना खतरा है?
डब्ल्यूएचओ : यह आदत आपके और दूसरे, दोनों के लिए खतरनाक है। तम्बाकू लेने के दौरान हाथ मुंह को छूता है। यह भी संक्रमण का जरिया है और कोरोना हाथ के जरिए मुंह तक पहुंच सकता है। या हाथों में मौजूद कोरोना तम्बाकू में जाकर मुंह तक पहुंच सकता है। तम्बाकू चबाने के दौरान मुंह में अतिरिक्त लार बनती है, ऐसे में जब इंसान थूकता है तो संक्रमण दूसरों तक पहुंच सकता है। इतना ही नहीं, इससे मुंह, जीभ, होंठ और जबड़ों का कैंसर भी हो सकता है।
Q-3) स्मोकिंग के अलग-अलग तरीकों से कैसे कोविड-19 का खतरा कितना बढ़ता है?
डब्ल्यूएचओ : सिगरेट, सिगार, बीड़ी, वाटरपाइप और हुक्का पीने वाले कोविड-19 का रिस्क ज्यादा है। सिगरेट पीने के दौरान हाथ और होंठ का इस्तेमाल होता है और संक्रमण का खतरा रहता है। एक ही हुक्का को कई लोग इस्तेमाल करते हैं जो कोरोना का संक्रमण सीधेतौर पर एक से दूसरे इंसान में पहुंचा जा सकता है।
Q-4) स्मोकिंग या धूम्रपान छोड़ने पर शरीर में कितना बदलाव आता है?
डब्ल्यूएचओ : इससे छोड़ने के 20 मिनट के अंदर बढ़ी हुई हृदय की धड़कन और ब्लड प्रेशर सामान्य होने लगता है। 12 मिनटबाद शरीर के रक्त में मौजूद कार्बन मोनो ऑक्साइड का स्तर घटने लगता है। 2 से 12 हफ्तों के अंदर फेफड़ों के काम करने की हालत में सुधार होता है। 1 से 9 माह के अंदर खांसी और सांस लेने में होने वाली तकलीफ कम हो जाती है।
कितना दम घोट रहा तम्बाकू
तम्बाकू से दुनियाभर में हर साल 80 लाख से अधिक लोगों की मौत हो रही है। इनमें 70 लाख मौत सीधेतौर पर तम्बाकू लेने वालों की हो रही हैं और दुनिया छोड़ने वाले करीब 12 लाख ऐसे लोग हैं जो धूम्रपान करने वालों के आसपास होने के कारण प्रभावित हुए।
बीमार और स्वस्थ फेफड़ों के बीच फर्क बताता यह वीडियो आपको अलर्ट रखने के लिए काफी है
अधिकतर देशों में भले ही धीरे-धीरे लॉकडाउन खुलना शुरू हो गया हो। लेकिन, अभी भी बड़ी संख्या में लोग या तो वर्क फ्रॉम होम पर हैं, या फिर उस सेक्टर से ताल्लुक रखते हैं, जिसे लॉकडाउन में भी शुरू होने की छूट नहीं मिली है। घर में अकेले समय बिताना आसान नहीं है। लेकिन, लॉकडाउन में दूसरे इंसानों से दूर रहना मना है, अन्य जीवों से नहीं। धरती पर और भी जीव हैं, जो लॉकडाउन में आपके अकेलेपन को दूर कर सकते हैं। लोग ऐसा कर भी रहे हैं। यही वजह है कि दुनिया भर में जानवरों और इंसानों के बीच एक नया रिश्ता पनपता हुआ देखा जा सकता है।
जानें दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद उन लोगों की कहानियां जो कई तरह केजीवों के साथ खुशी से अपना लॉकडाउन बिता रहे हैं।
इसइंजीनियर ने गिलहरियों के लिए खाने के साथ एक्टिविटीज का भी किया इंतजाम
नासा और एप्पल में इंजीनियर रह चुके मार्क रॉबर जब अपने गार्डन में पक्षियों के लिए खाना रखते, तो पूरा खानाअकेले गिलहरियां ही चट कर जाती थीं। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए मार्क ने अपने घर के बैकयार्ड में गिलहरियों के लिए एक सैट तैयार किया। इसमें अपने पसंदीदा खाने तक पहुंचने के लिए गिलहरियों को कई ऑब्सटेकल्स ( बाधाएं) पार करने होते हैं। गिलहरियां आश्चर्यजनक रूप से इन बाधाओं को पार करके खाने तक पहुंच भी रही हैं। इससे जुड़ा वीडियो भी मार्क ने सोशल मीडिया पर शेयर किया है, जिसे खूब पसंद किया जा रहा है।
रॉबिन बर्ड का आशियाना बनाकर खुद को एंग्जाइटी से बाहर ला रहे डॉन एस्परै
मूल रूप से अमेरिका और यूरोप में पाई जाने वाली सॉन्ग बर्ड, जिसका नाम है रॉबिन बर्ड। जितनी खूबसूरत चिड़िया होती है, उतने ही अनोखे इसके अंडे भी होते हैं। पहली नजर में देखने पर लगता है कि किसी ने सफेद अंडों पर नीला रंग पोत दिया है। लेकिन, इनका प्राकृतिक रंग ऐसा ही है। डॉन एस्परै लंबे समय से अपने घर में कई तरह की बर्ड्स का जन्म होते देखते आए हैं। लेकिन इस बार रॉबिन बर्ड्स का यह परिवार उनके लिए कुछ खास है। बर्ड्स का परिवार बनते देखने का सुखद अहसास उन्हें एंग्जाइटी से बाहर निकलने में मदद कर रहा है।
डेरिल ग्रेंजर और उनकी पत्नि करेन फोटोग्राफर हैं। एक दिन बैकयार्ड में बैठे हुए उन्हें ख्याल आया कि क्यों न गिलहरियों के लिए एक बेहतरीन सैट बनाया जाए। कनाडा के इस कपल ने तीन सुपरमार्केट नुमा सैट बनाए हैं। जहां गिलहरियों के खाने-पीने के सामान को सुपरमार्केट की तर्ज पर सजाया गया है।
रिक ने गिलहरियों के लिए बनाई पिकनिक टैबल
यूनाइटेड स्टेट्स के पेंसिलवेनिया में रहने वाले 43 वर्षीय रिक कलिनोव्स्कीने गिलहरियों के लिए अपने गार्डन में एक छोटी पिकनिक टेबल बनाई है। यहां एक साथ दो गिलहरियों के बैठने की व्यवस्था की गई है।
रिंक के दिन की शुरुआत गिलहरियों को टेबल पर नाश्ता सर्व करने के साथ होती है
10 साल पहले बर्ड्स के लिए बनाया गार्डन लॉकडाउन में दे रहा राहत
बर्ड्स के साथ समय बिताना चाहते हैं, तो सिर्फ उनके लिए पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराना काफी नहीं है। बल्कि उनके अनुकूल माहौल भी तैयार करना होता है। 10 साल पहले इंग्लैंड के लैनकास्टर में रहने वाले जेट हैरिस ने अपने गार्डन को इस तरह से तैयार किया, जो बर्ड्स को आकर्षित करे। गौरेया, गोल्डफिंच, डननॉक और रॉबिन बर्ड्स के जोड़े नियमित रूप से जेट के गार्डन में आते हैं। लॉकडाउन में अलग यह हुआ है कि अब जेट अपने इन साथियों के साथ ज्यादा समय बिता पा रहे हैं।
ग्लासगो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कोरोनावायरस की 3D तस्वीर और वीडियो जारी किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि आम लोग भी कोरोना के हर हिस्से को समझ और देख पाएंगे। वैज्ञानिकों ने इसके अंदरूनी और बाहरी दोनों हिस्सों को 3D वीडियो में दिखाया है। इसे तैयार करने वाली साइंटिफिक इलस्ट्रेटर एनाबेल स्लेटर का कहना है कि 3डी वीडियो की मदद से कोरोना के एक कण को भी बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा। एनाबेल ग्लासगो यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा रही हैं।
वायरस विशेषज्ञ और शोधकर्ता डॉ. हचिन्सन के मुताबिक, किसी भी एक प्रयोग से वायरस की इतनी गहरी तस्वीर नहीं पेश की जा सकती। ये तस्वीरें काफी शानदार हैं। हर एक वायरस का कण दूसरे थोड़ा सा अलग है।
समझें कोरोना के अलग-अलग हिस्सों को
यह प्रोटीन कोरोना का सबसे अहम हिस्सा है जो इसके लिए हथियार की तरह काम करता है। शरीर में पहुंचकर कोरोनावायरस का यह प्रोटीन स्वस्थ कोशिकाओं को जकड़ना शुरू करता है।
स्पाइक प्रोटीन तीन समूह में कोरोनावायरस की बाहरी सतह पर लगा होता है। इसका रूप क्राउन (मुकुट) जैसा होने के कारण वायरस का नाम कोरोना पड़ा।
इस प्रोटीन के कई हिस्से आपस में मिलकर कुंडलीनुमा आकार बनाते हैं और आरएनए पर लिपटे रहते हैं। यही आरएनए कोरोना के कण में मौजूद होता है जो वायरस को डैमेज होने से बचाता है।संक्रमण के बाद आरएनए रिलीज होता है और पहली स्टेज में ही मरीज की कोशिका में जाकर उसकी वायरस से रक्षा करने की क्षमता को खत्मकरता है।
स्पेन के शोधकर्ताओं ने6466 दवाओं को कम्प्यूटर तकनीक की मदद एनालाइज़ करकेऐसीदो ड्रग्स की पहचान कीहैं जो संक्रमण के बाद कोरोना की संख्या (रेप्लिकेशन) को बढ़ने से रोक सकते हैं। इस विशेष रिसर्च प्रोग्राम कोकोविड मूनशॉट नाम दिया गया है।
यह दावा स्पेन की रोविरा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ये दोनों कोरोना के उस एंजाइम पर लगाम लगाएंगीजिसकी वजह से वायरस अपनी संख्या को बढ़ाकर मरीज को वेंटिलेटर तक पहुंचा देता है।
दो में से एक दवा का इस्तेमाल जानवरों में किया जाता है
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मॉलीक्युलर साइंसेज में प्रकाशित शोध के मुताबिक, कारप्रोफेन और सेलेकॉग्सिब एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग हैं। इनमें से एक का इस्तेमाल इंसान पर और दूसरे का जानवरों के लिए किया जाता है। शोधकर्ताओं का मानना है इस रिसर्च के नतीजे वैक्सीन तैयार करने में मददगार साबित होंगे।
ऐसे काम करती हैदवा
कोरोना में एम-प्रो नाम का एक एंजाइम पाया जाता है। यह एंजाइम ऐसे प्रोटीन को बनाता है जिसकी इसकी मदद से वायरस शरीर में पहुंचकर अपनी संख्या को बढ़ाता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, दोनों दवाएं इसी एंजाइम को रोकने का काम करतीहैं। रिसर्च में इसकी पुष्टि भी हुई है।
दवा का एंजाइम पर 11 फीसदी से अधिक असर हुआ
शोधकर्ताओं की मेहनत सेरिसर्च प्रोग्रामकोविड मूनशॉटके दौरान यह सामने आया कि कोरोना के मरीजों को 50 माइक्रोमोलर कारप्रोफेन देने पर एम-प्रो एंजाइम में 11.90 फीसदी और सेलेकॉग्सिब देने पर 4 फीसदी की कमी आती है।
एम-प्रो एंजाइम पर कई देशों में चल रही रिसर्च
कुछ देशों में ऐसे ट्रायल चल रहे हैं जिनका लक्ष्य इसी एम-प्रो एंजाइम पर रोक लगाना है। इसके लिए एंटी-रेट्रोवायरल ड्रग लेपिनोविर और रिटोनाविर का प्रयोग किया जा रहा है। इन दवाओं को एचआईवी के इलाज के लिए बनाया गया था। इन ट्रायल में विश्व स्वास्थ्य संगठन भी मदद कर रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमेरिका को कोविड-19 का एपिसेंटर यानी संक्रमण का नया केन्द्र बताया है। अमेरिकी जोन की डब्ल्यूएचओ की डायरेक्टर केरिसा इटिन ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान कहा, यह समय लॉकडाउन की पाबंदियों में ढील देने का नहीं है। हाल ही में अमेरिकी शोध में भी कहा गया है कि अगस्त तक ब्राजील और लेटिन अमेरिका में कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ेगी।
अब 1,43,000 से अधिक मौतें
केरिसा इटिन के मुताबिक, अमेरिका में अब तक कोरोनावायरस के 24 लाख मामले सामने आ चुके हैं। 1,43,000 से अधिक मौत हो चुकी हैं। रोजाना सामने आ रहे कोरोना के मामलों में लेटिन अमेरिका, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका को पार कर गया है।
ब्राजील में लम्बे समय तक बुरे हालात रहेंगे
केरिसा इटिन का कहना है कि अमेरिका कोविड-19 महामारी का एपिसेंटर बन गया है। यह हफ्ता लेटिन अमेरिका के लिए काफी चुनौतीभरा है। महामारी खत्म होने से पहले ब्राजील को ऐसी स्थिति से लम्बे समय तक जूझना होगा। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, पेरू चिली, ग्वाटेमाला, एल-सल्वाडोर में भी तेजी से मामले बढ़ रहे हैं।
पेरू की स्थिति भी गंभीर
वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, ब्राजील में अगस्त तक मौत का आंकड़ा 1,25,000 को पार कर सकता है। यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड एवैल्यूएशन का कहना है कि पेरू में अगस्त 20 हजार मौतें हो सकती हैं। इसके अलावा चिली में 12000, मेक्सिको में 7000, इक्वाडोर में 6000, अर्जेंटीना में 5500 और कोलम्बिया में 4500 मौतें अगस्त हो सकती हैं।
डब्ल्यूएचओ ने पहले भी किया था अलर्ट
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने उन देशों को चेतावनी दी थीजहां कोरोना संक्रमण के मामले कम हो रहे हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक- जहां मामले घट रहे है, वहां ये अचानक बढ़ भी सकते है। इसलिए सिर्फ देखते न रहें।सरकारों को चाहिए कि वेमहामारी रोकने के उपायों के साथ तैयार रहें।डब्ल्यूएचओ के इमरजेंसी प्रमुख डॉ. माइक रेयान ने कहा, “दुनिया कोरोना संक्रमण की पहली लहर से जूझ रही है। कई देशों में मामले घट रहे हैं। मध्य और दक्षिण अमेरिका, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में मामले बढ़ रहे हैं।”
संक्रमण की दूसरी लहर तेज हो सकती है
रेयान के मुताबिक, “महामारी वेव्स यानी लहरों के रूप में आती हैं।इसका मतलब है कि ये इसी साल उन क्षेत्रों में दोबारा आ सकती है,जहां मामले थमरहे हैं। अगर वर्तमान में चल रहेसंक्रमण के पहले दौर कोरोक भी लिया गया तो भी अगली बार संक्रमण की दर बेहद तेज हो सकती है।
गंध को महसूस न कर पाना भी कोरोनावायरस के संक्रमण का एक लक्षण है लेकिन अमेरिकी वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसे लक्षण वाले मरीजों में बीमारी गंभीर रूप नहीं लेगी। कोरोना के दूसरे मरीजों के मुकाबले इन पर संक्रमण का असर कम होगा। यह दावा अमेरिका की कैलिफोर्निया सैन डिएगो हेल्थ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया है।
हॉस्पिटल में भर्ती होने की आशंका बेहद कम
रिसर्च टीम के हेड और शोधकर्ता डॉ. कैरल येन का कहना है कि पिछली रिसर्च में पाया गया था कि गंध महसूस न होने का मतलब है कि आप कोरोना संक्रमण की शुरुआती स्टेज में हैं जिसमें बाद में बुखार और थकान जैसे लक्षण दिखते हैं। हालिया शोध में यह सामने आया है कि यह लक्षण बताता है कि आपके हॉस्पिटल में भर्ती होने का चांस कम है।
एक माह से अधिक चली रिसर्च
शोधकर्ता डॉ. कैरल येन के मुताबिक, ऐसा लक्षण दिखने पर कोरोना के हल्के लक्षण दिखाई देंगे। कोरोना के 169 मरीजों पर 3 मार्च से लेकर 8 अप्रैल तक रिसर्च की गई है। परिणाम के रूप में सामने आया कि 169 में से केवल 26 मरीजों को ही हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ा। ऐसे संक्रमित मरीज जिन्होंने गंध न महसूस होने की शिकायत की उनके अस्पताल में भर्ती होने की आशंका 10 गुना कम थी।
नाक में वायरस पहुंचने पर सूंघने की क्षमता प्रभावित होती है
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा क्यों हो रहा है, इसकी वजह सामने नहीं आ पाई है लेकिन कोरोनावायरस सबसे पहले नाक और ऊपरी श्वांस तंत्र में पहुंचता है जिससे सूंघने की क्षमता पर असर पड़ता है। इसका परिणाम हल्के लक्षण के रूप में दिखता है। एक बार ये फेफड़े तक पहुंचा हो हालत गंभीर होनी शुरू हो जाती है।
सीडीसी ने कोरोना के 6 नए लक्षण बताए
अमेरिकी सरकार के शीर्ष मेडिकल संस्थान- सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) ने भी माना है कि कोरोना से संक्रमण के नए लक्षण सामने आए हैं। सीडीसी ने संक्रमण के 6 नए लक्षणों की जानकारी होने की पुष्टि की हैं। इनमें बहुत ज्यादा ठंड लगना,ठंड के साथ कंपकंपी छूटना,मांसपेशियों में दर्द बना रहना,लगातार सिरदर्द रहना,गले में चुभन के साथ होने वाला दर्द,खुशबू, गंध या स्वाद न महसूस होना शामिल है।
विशेषज्ञों का मानना है कि संक्रमण के लक्ष्णों का नया रूप सामने आया है। इससे पहले सीडीसी ने बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ को कोरोना संक्रमण का लक्षण बताया था।
अस्पतालों में ओपीडी जाने वाले लोग क्या ध्यान रखें, जिनमें लक्षण नहीं दिखते उनमें संक्रमण कितने दिनों तक रहता है और नेत्रहीन कैसे सोशल डिस्टेंसिंग रखें... ऐसे कई सवालों के जवाब सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एमके सेन ने आकाशवाणी को दिए। जानिए कोरोना से जुड़े सवाल औरएक्सपर्ट के जवाब...
#1) कोरोना वायरस और शराब का क्या सम्बंध है?
कोई सम्बंध नहीं है। शराब या किसी प्रकार के धूम्रपान से शरीर कमजोर होता है, जिससे वायरस का संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है। कुछ भ्रामक खबरें फैल रही हैं शराब के सेवन से संक्रमण नहीं होता, ये गलत है, बल्कि शराब पीने से कई दूसरी बीमारियां होने का खतरा रहता है।
#2) कोरोनावायरस की वैक्सीन 18 महीने से पहले क्यों नहीं आ सकती?
कोरोना नया वायरस है। जिसके बारे में जानकारी धीरे-धीरे आ आ रही है। ऐसा नहीं है कि वैक्सीन पर रिसर्च डेवलपमेंट नहीं हो रहा है। दुनियाभर में प्रयोग हो रहे हैं। इससे पहले कई वायरस आए जैसे चेचक, इनकी वैक्सीन भी कई सालों के शोध के बाद आई है। वैक्सीन को बाजार में आने से पहले कई चरण में पास होना जरूरी होता है। उसके बाद ही लोगों को दी जाती है। इसलिए थोड़ा वक्त लगेगा। लेकिन उम्मीद है कि जल्द ही इससे जुड़ी अच्छी खबर मिलेगी।
#3) नेत्रहीन कैसे सोशल डिस्टेंसिंग रखें, कुछ लोग अनजाने से सम्पर्क हो जाने पर कैसे बचें?
अगर कोई नेत्रहीन या दिव्यांग है और किसी कारण से बाहर जाना पड़ रहा है तो यह समाज का काम है कि वह उनसे उचित दूरी बनाकर रखें क्योंकि वायरस से बचाव सबका कर्तव्य है। जिम्मेदारी है कि खुद के साथ दूसरों का भी ख्याल रखें। नेत्रहीन लोग स्टिक लेकर चलें जिससे सोशल डिस्टेंसिंग में परेशानी न हो।
#4) महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों को संक्रमण अधिक हो रहा है, क्यों?
पूरी दुनिया में पुरुषों में कोरोनावायरस के संक्रमण ज्यादा देखे गए हैं। इसके लेकर कई थ्योरी सामने आई हैं लेकिन अब तक कोई सही जवाब नहीं मिल पाया है। लेकिन ऐसा नहीं है कि महिलाओं को संक्रमण का खतरा कम है।
#5) यात्रा करने लोग क्या सावधानी रखें?
अगर आप किसी भी बस, ट्रेन या आने वाले समय में हवाई यात्रा करने की योजना बना रहे हैं तो सबसे जरूरी है सावधानी बरतें। यात्रा के दौरान या पहले कोई लक्षण दिखता है तो यात्रा न करें। स्टेशन पर सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना जरूरी है। अगर बस से जा रहे हैं और बस भर गई है तो परेशान न हों और भीड़ न लगाएं। दूसरी बस का इंतजार करें। भीड़ में संक्रमण का खतरा रहता है। अपने साथ मास्क और सैनेटाइजर लेकर चलें।
#6) अस्पतालों में ओपीडी जाने वाले लोग क्या करें?
लॉकडाउन के दौरान ओपीडी खुली हुई हैं। यहां मरीज जा सकते हैं लेकिन बुजुर्गों के लिए जरूरी है कि वह खुद आने की बजाय टेलीमेडिसिन या किसी दूसरे इंसान को भेजकर परामर्श लें। लेकिन अगर बहुत जरूरी है तो इमरजेंसी हमेशा खुली रहती है वहां बुजुर्गों का खास ख्याल रखा जाता है।
#7) जिनमें लक्षण नहीं दिखते उनमें संक्रमण कितने दिनों तक रहता है?
अगर कोई एसिम्प्टोमैटिक (जिनमें लक्षण नहीं दिखते) है तो ये मानकर चलते हैं कि 14 दिन में उसमें कोई लक्षण नहीं दिखाई दे तो उसका शरीर वायरस से लड़ने में कामयाब हो गया है। अगर वह जांच में फिर पॉजिटिव आए तो भी दो या तीन हफ्ते बाद उसमें दूसरों को संक्रमित करने की क्षमता नहीं होती।
#8) जिन संक्रमितों में लक्षण नहीं है, न जुकाम है न छींक आ रही हैं, तो वो कैसे दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं?
कोरोना का संक्रमण ज्यादातर सांस के जरिए होता है। जब कोई इंसान खांसता या छींकता है तो उसकी सांस से निकलने वाले छोटे कण हवा में थोड़ी देर तक रहते हैं और फिर आगे जाकर गिर जाते हैं। इसलिए एक मीटर की दूरी पर खड़े रहने को कहा जाता है। अब एसिम्प्टोमैटिक या प्री-सिम्प्टोमैटिक की बात करें तो जिनमें कोई लक्षण नहीं होते, ऐसे में उनके बोलने या लम्बी जम्हाई से भी वायरस के कण बाहर आ सकते हैं। इसलिए इनसे एक उचित दूरी बनानी है। बार-बार हाथ भी धोना न भूलें।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन देशों को चेतावनी दी है जहां कोरोना के मामलों में गिरावट आ रही है। डब्ल्यूएचओ का कहना है, जहां कोरोना के मामले घट रहे हैवहां अचानक मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है। इसलिए महामारी को रोकने के उपायों के साथ तैयार रहें। डब्ल्यूएचओ के इमरजेंसी प्रमुख डॉ. माइक रेयान ने एकऑनलाइन ब्रीफिंग के दौरान कहा, दुनिया कोरोना संक्रमण की पहली लहर से जूझ रही है। कई देशों में मामले घट रहे हैं जबकि सेंट्रल और दक्षिण अमेरिका, दक्षिण एशिया और अफ्रीका में मामले बढ़ रहे हैं।
संक्रमण की दूसरी लहर और तेज हो सकती हैइमरजेंसी प्रमुख माइक रेयान ने कहा, महामारी लहरों के रूप में आती हैं, इसका मतलब है कि महामारी इस साल दोबारा उन क्षेत्रों में आ सकती है जहां मामले थमरहे हैं। अगर वर्तमान में चल रही संक्रमण की पहला दौररोक भी लिया गया तो भी अगली बार संक्रमण की दर बेहद तेज हो सकती है।
सिर्फ ये मानकर न बैठें कि मामले घट रहे हैं
डॉ. माइक रेयान के मुताबिक, हमें इस बात को समझने की जरूरत है कि महामारी दोबारा उभर सकती है। हम सिर्फ ये मानकर नहीं बैठ सकते कि आंकड़ों में कमी आ रही और संकट कम हो रहा है। महामारी का दूसरा दौर भी आ सकता है।
यूरोपीय देश और अमेरिका को भी चेताया
उन्होंने कहा, यूरोप और उत्तरी अमेरिका को लगातार महामारी से बचाव के प्रयास करते रहने चाहिए। लगातार जांच के साथ बचाव की रणनीति बनाते रहने की जरूरत है ताकि महामारी के दूसरे दौर पर पहुंचने से खुद को रोक सकें। कई यूरोपीय देश और अमेरिकी राज्यों ने हाल ही में लॉकडाउन के साथ उन उपायों से भी मुंह मोड़ लिया है जो कोरोना को रोकते हैं और अर्थव्यवस्था को भी संक्रमित करने से बचाते हैं।
जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर के 84 वर्षीय पालतू मगरमच्छ की मौत हो गई है। इसे मॉस्को के चिड़ियाघर में रखा गया था। मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस मगरमच्छ को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने बर्लिन में पाया था। जिसे बाद में सोवियत यूनियन की सेना के हवाले कर दिया था। मगरमच्छ की मौत के बाद इसकी जानकारीमॉस्को जू ने अपने ऑफिशियल ट्विटर हैंडल उसका एक वीडियो शेयर करते हुए दी।
कोरोना वैक्सीन का इंतजार कर रहे लोगों को एक और झटका लगा है। वैक्सीन तैयार कर रही ऑक्सफोर्ड यूनिवार्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट के प्रोजेक्ट हेड एड्रियन हिल ने कहा है कि ट्रायल में इसके सफल होने की दर 50 फीसदी ही है। हाल ही में जेनर इंस्टीट्यूट ने जानी मानी बायोफार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ वैक्सीन तैयार करने के लिए हाथ मिलाया है। अगर ट्रायल सफल रहता है तो दोनों मिलकर वैक्सीन लोगों तक पहुंचाएंगे।सफल नहीं रहा
अगले ट्रायल में 1 हजार लोग शामिल होंगे
वैक्सीन के प्रोजेक्ट हेड प्रोजेक्ट हेड एड्रियन हिल के मुताबिक, जल्द ही इंसानों पर शुरु होने वाले ट्रायल में 1 हजार लोगों को शामिल किया जाएगा लेकिन हो सकता है इसका कोई परिणाम न मिले। यह ऐसी रेस है जहां वायरस पकड़ नहीं आ रह है और समय तेजी से भाग रहा है।
दूसरे ट्रा्यल में 10,260 बच्चे और बड़े शामिल किए जाएंगे
शोधकर्ता के मुताबिक, 1000 इंसानों पर पहले ट्रायल के बाद दूसरा ट्रायल शुरू होगा। यह तीन चरणों में पूरा होगा और इसमें 10,260 बच्चे और बड़े शामिल किए जाएंगे। वैक्सीन पर उनकी इम्युनिटी का क्या असर होता है और अलग-अलग उम्र के लोगों पर होने वाले प्रभाव को भी समझा जा सकेगा।
असफल रहा थाबंदरों पर हुआट्रायल
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कोविड-19 की वैक्सीन ChAdOx1 की जा रही है। हाल ही में बंदरों पर हुआ इस वैक्सीन का ट्रायल सफल नहीं रहा था। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के डॉ. विलयम हेसलटाइन के मुताबिक, जिन छह रीसस बंदरों पर इस वैक्सीन का ट्रायल किया गया उनकी नाक में उतनी ही मात्रा में वायरस पाया गया जितना कि तीन अन्य नॉन वैक्सीनेटेड (जिन्हें टीका नहीं लगाया गया था) बंदरों की नाक में था।
आज की बदलती हुई लाइफस्टाइल के कारण घर में सभी व्यस्त हैं। अगर सब साथ बैठकर दिन का खाना नहीं खा सकते तो कोई बात नहीं। लेकिन कम से कम डिनर टाइम को फैमिली टाइम जरूर बनाएं। ये तरीका रिश्तों की बेहतर बॉन्डिंग के भी काफी हद तक काम आता है।
इस बात का रखें ध्यान
डिनर टेबल पर खाना खाते समय फोन या इंटरनेट का इस्तेमाल न करें। इस दौरान ऐसी कोई बात करने से बचें जिससे आपस में किसी भी तरह का कोई मन-मुटाव हो। कोशिश करें की हर कोई खुश रहे। अगर कोई तनाव वाली बात करने भी लगे तो परिवार का दूसरा सदस्य उसकी बात संभाल लें और माहौल हल्का करे।
हेल्दी ईटिंग की आदत
बिजी लाइफ के चलते आजकल हर कोई भरपेट खाना तो खा लेता है, लेकिन अपने पोषण पर कम ही ध्यान देते हैं। ऐसे में परिवार के साथ मिलकर खाने से न केवल बड़े बल्कि बच्चे भी हेल्दी खाना खाते हैं। उन्हें भी परिवार के साथ मिलकर खाना खाने और उनकी बातचीत समझने का पूरा मौका मिलता है।
खत्म होता है तनाव
बच्चों से लेकर बड़ों तक सारा दिन अपने काम में इतना उलझे रहते हैं कि रात के समय सबके साथ मिलकर डिनर करके उन्हें काफी अच्छा लगता है। डिनर टेबल पर जब सब हंसकर एक-दूसरे बात करते हुए अपनी प्रॉबल्म डिस्कस करते हैं तो उन्हें दूर करने का उपाय भी मिलता है। इससे मन हल्का होता है और तनाव दूर होता है।
© 2012 Conecting News | Designed by Template Trackers - Published By Gooyaabi Templates
All Rights Strictly Reserved.