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हेल्थ डेस्क. सर्दियों के मौसम में कई तरह केफल बाजार में मिलने लगते हैं। ये रसीले और बेहद स्वादिष्ट होते हैं। इन मौसमी फलों में कई गुण भी छुपे होते हैं जो हमारे शरीर को पोषण देते हैं। सर्दियों में मिलने वाले फल आंखो से लेकर मसल टिशू के लिए फायदेमंद होते हैं। फूड ब्लॉगर मानसी पुजारा से जानिए सर्दियों में मिलने वाले फलों के बारे में...
हेल्थ डेस्क. सर्दियों के मौसम में कई तरह केफल बाजार में मिलने लगते हैं। ये रसीले और बेहद स्वादिष्ट होते हैं। इन मौसमी फलों में कई गुण भी छुपे होते हैं जो हमारे शरीर को पोषण देते हैं। सर्दियों में मिलने वाले फल आंखो से लेकर मसल टिशू के लिए फायदेमंद होते हैं। फूड ब्लॉगर मानसी पुजारा से जानिए सर्दियों में मिलने वाले फलों के बारे में...
संयुक्त राष्ट्र.दुनिया में सबसे ज्यादा प्रवासी, भारतीय मूल के लोग हैं। इनकी संख्या 1.75 करोड़ है।द इंटरनेशनल आर्गेनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) ने अपनी ग्लोबल माइग्रेशन रिपोर्ट 2020 में यह दावा किया है। यह रिपोर्ट 2018 के आंकड़ों के आधार पर बनाई गई है। इसके मुताबिक दूसरे स्थान पर मैक्सिको (1.18 करोड़) और तीसरे पर चीन (1.07 करोड़) है। भारतीय 2015 में भी सबसे आगे थे।
तीन साल में भारतीय प्रवासियों की संख्या में 0.1% बढ़ोतरी हुई है। इन लोगों ने अपने देश को एक साल में 5.5 लाख करोड़ रुपए भेजे हैं। यह 2015 की तुलना में 70 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है,जबकि दुनियाभर के प्रवासियों ने अपने देशों में 49 लाख करोड़ रुपए भेजे।
दुनिया में प्रवासियों की संख्या करीब 27 करोड़
दुनिया में प्रवासियों की संख्या करीब 27 करोड़ है। प्रवासियों का सबसे बड़ा देश अमेरिका है। यहां करीब 5.1 करोड़ प्रवासी हैं। यह आंकड़ा दुनिया की आबादी का 3.5% है। इसका मतलब यह है कि अमूमन किसी भी देश में 96.5 % लोग स्थानीय या मूल निवासी ही हैं। प्रवासियों में से आधे से अधिक यानी 14.1 करोड़ यूरोप और उत्तर अमेरिका महाद्वीप में रहते हैं। प्रवासियों में 52 % पुरुष हैं। करीब दो तिहाई यानी 16.4 करोड़ प्रवासियों को रोजगार की तलाश है।
ग्रीन कार्ड पाने के लिए कतार में दूसरे नंबर पर भारतीय
भारत के करीब 2.27 लाख लोगों को अमेरिका में वैध स्थायी निवास की अनुमति का इंतजार है। ये लोग परिवार प्रायोजित ग्रीन कार्ड पाने के लिए कतार में हैं। इस सूची में मैक्सिको के सबसे ज्यादा 15 लाख लोग हैं। इसके बाद भारत और फिर 1.80 लाख के साथ चीन का नंबर है। ये वे लोग हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य अमेरिकी नागरिक है। अब ये भी वहां बसना चाहते हैं।
वॉशिंगटन(एलिसन क्रुएगर). अमेरिका में थैंक्सगिविंग का नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है। अब लोग परिचितों के अलावा अजनबियों को भी इसका हिस्सा बनाने लगे हैं। वजह काफी सकारात्मक है। आज की पीढ़ी ऐसे लोगों को अपने जश्न में शामिल कर उन्हें भी अहसास कराना चाहती है कि वे अकेले नहीं हैं। दरअसल अमेरिका में अकेले, परिवार से अलग रह रहे लोगों या बुजुर्गों की संख्या ज्यादा है। ऐसे लोगों के अकेलेपन, खालीपन को दूर करने का विचार दोनों ही पक्षों के लिए फायदेमंद बनकर उभर रहा है।
एडम नाओर और उनकी दोस्त ने मैनहट्टन स्थित अपने अपार्टमेंट पर थैंक्सगिविंग डे डिनर के लिए बाकायदा विज्ञापन दिया। इसमें कहा गया कि हर उस अकेले व्यक्ति का स्वागत है, जिसे अधिक सामाजिक-मजेदार डिनर करना हो। नोआर कहते हैं, उनका परिवार कैलिफोर्निया में रहता है, दोस्त का परिवार जर्मनी में रहता है। इसलिए हम अपनी खुशी में ऐसे लोगों को शामिल करना चाहते हैं, जो अकेले रहते हैं।
एक जैसी विचारधारा के लोग अपने आप जुड़ते हैं
नोआर की तरह कई लोग घर में छोटा आयोजन करते हैं, जबकि कुछ बड़े आयोजन करते हैं। नए ट्रेंड के असफल होने की गुंजाइश भी है। पहली बार आने वाले लोग असहज, अकेलापन महसूस कर सकते हैं, लेकिन इन पार्टियों में एक जैसी विचारधारा के लोग अपने आप जुड़ जाते हैं। अब अमेरिकी अपनी छुटि्टयां अपने बच्चों या परिचितों के बजाय एकसमान विचारधारा के लोगों के साथ बिताना चाहते हैं।
पार्टी में 50 में से 20 लोग अजनबी थे
जीसले सोटो ने थैंक्सगिविंग फीस्ट के लिए 50 मेहमानों को बुलाया। उनमें से 20 लोग ऐसे हैं, जिनसे वे कभी नहीं मिली हैं। जीसले शाकाहारी हैं। ऐसे में परिवार के साथ खाने में असहज महसूस करती हैं। इसलिए उन्होंने शाकाहारी लोगों को बुलाना शुरू कर दिया।
सूची में 80 साल तक की मेहमान शामिल
सारा स्कॉट हिचिंग्स पिछले पांच साल से लोगों को थैंक्सगिविंग डे पर रेडिट के जरिए न्योता देती हैं। वे कहती हैं, मेरे मेहमानों में 80 वर्षीय महिला भी है। इस साल उनके यहां 80 लोग जुटे। अमेरिकी मानते हैं कि परिवार या दोस्तों के साथ जश्न कभी पुराने मुद्दों पर कड़वाहट ला देता है। लेकिन अनजानों के मामले में मनमुटाव की संभावना नहीं रहती।
(दैनिक भास्कर से विशेष अनुबंध के तहत)
जकार्ता.शादी को लेकर अमूमन कहा जाता है कि यह ऐसा लड्डू है, जिसे खाने वाला भी पछताता है और नहीं खाने वाला भी। इंडोनेशिया में इन दिनों शादी को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं। दरअसल, यहां सरकार प्री-वेडिंग कोर्स शुरू करने जा रही है। इसमें शादी करने जा रहे जोड़ाें को शादी के बाद जिंदगी में होने वाले बदलावों के बारे में शिक्षित किया जाएगा। इन्हें सेहत का ध्यान रखने, बीमारियों से बचने और बच्चों की देखभाल की ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि ये जोड़े सफल दांपत्य जीवन शुरू कर सकें। शादी लायक उम्र के हाे चुके सभी युवाओंके लिए यह काेर्स अनिवार्य है। फेल हाेने वालाें काे सरकार शादी का अधिकार नहीं देगी।
इंडोनेशिया के अखबार ‘जकार्ता पोस्ट’ के मुताबिक, यह कोर्स 2020 में शुरू होगा और मुफ्त में कराया जाएगा। तीन महीने का यह कोर्स इंडोनेशिया के मानव विकास और सांस्कृतिक मंत्रालय ने धार्मिक और स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर तैयार किया है। स्वास्थ्य विभाग की डायरेक्टर जनरल किराना प्रितसरी ने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। पहले भी विभाग शादी लायक युवक-युवतियों को प्रशिक्षित करता रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब यह पूरे देश में लागू किया जा रहा है।
'शादी एक बड़ी जिम्मेदारी'
कोर्स बिल्कुल सरल है, लेकिन अगर कोई जोड़ा इसमें फेल हो जाता है, तो इंडोनेशिया की सरकार उन दोनों से शादी का अधिकार छीन लेगी। इस तरह के विवाह पूर्व कार्यक्रम का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी जोड़ा वैवाहिक जीवन को संभालने और माता-पिता बनने के लिए भावनात्मक और शारीरिक रूप से कितना तैयार है। इंडोनेशिया के मानव विकास और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री मुहाजिर एफेंदी ने कहा कि हर कोई शादी करना चाहता है, लेकिन परिवार चलाना एक अलग बात है। इस कोर्स में केवल शादी को सफल बनाने के नुस्खे ही नहीं बताए जाएंगे,बल्कि बच्चों की देखभाल करना, बीमारियों से बचाव और स्वास्थ्य का ख्याल रखना भी सिखाया जाएगा।
मंत्री ने कहा- लोग जिम्मेदार रहें इसलिए यह कोर्स लागू किया गया है
इंडोनेशिया के मानव विकास मंत्री मुहाजिर एफेंदी ने कहा कि कोर्स अनिवार्य इसलिए किया है, ताकि लोग शादी के बाद पूरी तरह जिम्मेदार रहें। 3 महीने तक चलने वाले कोर्स में घरेलू जीवन की हर बारीकी बताई जाएगी, जिसमें घर के आर्थिक हालात जैसा विषय भी शामिल होगा। कोर्स पूरा होने के बाद सर्टिफिकेट के जरिए जोड़ों को शादी की मंजूरी दी जाएगी।
जकार्ता.शादी को लेकर अमूमन कहा जाता है कि यह ऐसा लड्डू है, जिसे खाने वाला भी पछताता है और नहीं खाने वाला भी। इंडोनेशिया में इन दिनों शादी को लेकर खूब चर्चाएं हो रही हैं। दरअसल, यहां सरकार प्री-वेडिंग कोर्स शुरू करने जा रही है। इसमें शादी करने जा रहे जोड़ाें को शादी के बाद जिंदगी में होने वाले बदलावों के बारे में शिक्षित किया जाएगा। इन्हें सेहत का ध्यान रखने, बीमारियों से बचने और बच्चों की देखभाल की ट्रेनिंग दी जाएगी, ताकि ये जोड़े सफल दांपत्य जीवन शुरू कर सकें। शादी लायक उम्र के हाे चुके सभी युवाओंके लिए यह काेर्स अनिवार्य है। फेल हाेने वालाें काे सरकार शादी का अधिकार नहीं देगी।
इंडोनेशिया के अखबार ‘जकार्ता पोस्ट’ के मुताबिक, यह कोर्स 2020 में शुरू होगा और मुफ्त में कराया जाएगा। तीन महीने का यह कोर्स इंडोनेशिया के मानव विकास और सांस्कृतिक मंत्रालय ने धार्मिक और स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर तैयार किया है। स्वास्थ्य विभाग की डायरेक्टर जनरल किराना प्रितसरी ने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है। पहले भी विभाग शादी लायक युवक-युवतियों को प्रशिक्षित करता रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि अब यह पूरे देश में लागू किया जा रहा है।
'शादी एक बड़ी जिम्मेदारी'
कोर्स बिल्कुल सरल है, लेकिन अगर कोई जोड़ा इसमें फेल हो जाता है, तो इंडोनेशिया की सरकार उन दोनों से शादी का अधिकार छीन लेगी। इस तरह के विवाह पूर्व कार्यक्रम का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी जोड़ा वैवाहिक जीवन को संभालने और माता-पिता बनने के लिए भावनात्मक और शारीरिक रूप से कितना तैयार है। इंडोनेशिया के मानव विकास और सांस्कृतिक मामलों के मंत्री मुहाजिर एफेंदी ने कहा कि हर कोई शादी करना चाहता है, लेकिन परिवार चलाना एक अलग बात है। इस कोर्स में केवल शादी को सफल बनाने के नुस्खे ही नहीं बताए जाएंगे,बल्कि बच्चों की देखभाल करना, बीमारियों से बचाव और स्वास्थ्य का ख्याल रखना भी सिखाया जाएगा।
मंत्री ने कहा- लोग जिम्मेदार रहें इसलिए यह कोर्स लागू किया गया है
इंडोनेशिया के मानव विकास मंत्री मुहाजिर एफेंदी ने कहा कि कोर्स अनिवार्य इसलिए किया है, ताकि लोग शादी के बाद पूरी तरह जिम्मेदार रहें। 3 महीने तक चलने वाले कोर्स में घरेलू जीवन की हर बारीकी बताई जाएगी, जिसमें घर के आर्थिक हालात जैसा विषय भी शामिल होगा। कोर्स पूरा होने के बाद सर्टिफिकेट के जरिए जोड़ों को शादी की मंजूरी दी जाएगी।
हेल्थ डेस्क.चीन में फुजिआन प्रांत में लगातार दो महीने तक खांसी झेल रहे इंसान के गले में जोक चिपकी पाई गई है। मरीज के मुताबिक, दो महीने से लगातार खांसी आ रही थी लेकिन जब बलगम में खून आने लगा तो डॉक्टर के पांस पहुंचा। चीन के वुपिंग अस्पताल में सीटी स्कैन के बाद भी वजह सामने नहीं आई तो डॉक्टरों ने ब्रॉन्कोस्कोपी की।
लाइफस्टाइल डेस्क. इंडोनेशिया की सांस्कृतिक राजधानी योग्यकर्ता में एक ऐसा रेस्तरां भी है जहां खाना खाने के साथ फिश स्पा का आनंद भी उठाया जा सकता है। रेस्तरां का नाम सोटो कॉकरो केमबेंग है, यह इंडोनेशिया के पारंपरिक खाने के लिए मशहूर है। रेस्तरां को बगीचे के बीचों-बीच बनाया गया है, दावा है कि यहां का माहौल लोगों का तनाव दूर करने में मदद करेगा।
लाइफस्टाइल डेस्क. इंडोनेशिया की सांस्कृतिक राजधानी योग्यकर्ता में एक ऐसा रेस्तरां भी है जहां खाना खाने के साथ फिश स्पा का आनंद भी उठाया जा सकता है। रेस्तरां का नाम सोटो कॉकरो केमबेंग है, यह इंडोनेशिया के पारंपरिक खाने के लिए मशहूर है। रेस्तरां को बगीचे के बीचों-बीच बनाया गया है, दावा है कि यहां का माहौल लोगों का तनाव दूर करने में मदद करेगा।
हेल्थ डेस्क. विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया में 80 फीसदी से अधिक टीनएजर्स अनफिट हैं। इनमें 85 फीसदी लड़कियां और 78 फीसदी लड़के शामिल हैं। अनफिट रहने की वजह रेग्युलर एक्सरसाइज न करना और मोबाइल स्क्रीन पर अधिक समय बिताना है। द लेंसेट चाइल्ड एंड एडोलेसेंट हेल्थ जर्नल में प्रकाशित शोध के अनुसार, रिसर्च में 146 देशों के 16 लाख स्टूडेंट को शामिल किया गया था, जिनकी उम्र 11-17 साल है।
हेल्थ डेस्क. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में यूरोलॉजी विभाग के डॉक्टरों की टीम ने एक मरीज के शरीर से देश की सबसे भारी किडनी निकाली है। इसका वजन 7.4 किलो और माप 32 गुणा 21.8 सेमी है। यह किडनी दुनिया में तीसरी सबसे भारी किडनी है। दुर्लभ सर्जरी करीब दो घंटे चली। ऑपरेशन करने वाली टीम में डॉ. अजय शर्मा, डॉ. सचिन कथूरिया और डॉ. जुहिल नानावती शामिल रहे।
जेनेटिक डिसऑर्डर से था पीड़ित
यूरोलॉजी विभाग के कंसल्टेंट डॉ. सचिन कथूरिया ने बताया कि 56 वर्षीय मरीज दिल्ली का रहने वाला है। वह ऑटोसोमल डोमिनेंट पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज नाम के जेनेटिक डिसऑर्डर से पीड़ित था। पॉलीसिस्टिक किडनी रोग एक आनुवांशिक स्थिति है। इसमें दोनों किडनी में द्रव से भरे सिस्ट विकसित हो जाते हैं, जिससे उनमें सूजन आ जाती है। मरीज का 2006 से हमारे परामर्श में इलाज चल रहा था। लेकिन इसमें शामिल जोखिमों के कारण वह सर्जरी के लिए सहमत नहीं था।
अमेरिका और नीदरलैंड में हो चुकी ऐसी दुर्लभ सर्जरी
डॉ. सचिन ने कहा- 'अभी तक दुनिया में इस प्रकार की दो दुर्लभ सर्जरी हुई हैं। पहली अमेरिका में (9 किलो) और दूसरा नीदरलैंड (8.7 किलो) में। अब हम इसे गिनीज वर्ल्ड ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज कराने की तैयारी कर रहे हैं।
कोट्टायम.पेड़-पौधों से इंसान की बीमारी दूर करने के बारे में आपने सुना होगा, लेकिन केरल के 51 वर्षीय के. बीनू ऐसे शख्स हैं, जो आयुर्वेद के जरिए पेड़-पौधों का इलाज करते हैं। पेशे से स्कूल शिक्षक बीनू ने 100 साल से भी पुराने कई ऐसे पेड़ों को फिर से जिंदा कर दिया, जो ठूंठ हो गए थे। पेड़ों के संरक्षण के लिए वे बीते 10 सालों से जुटे हुए हैं। आसपास ही नहीं, देशभर के लोग अपने पेड़ों की बीमारी के बारे में उन्हें बताते हैं और बीनू उनका इलाज करते हैं- वह भी मुफ्त। उन्होंने वृक्षों को बचाने के लिए वृक्ष आयुर्वेद से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो अब केरल के स्कूली कोर्स में भी शामिल की जा रही हैं।
वृक्षों को जीवित इंसान की तरह मानने वाले बीनू अपनी दिनचर्या के मुताबिक सुबह लोगों से उनके वृक्षों की बीमारी सुनते हैं और स्कूल से लौटते समय वृक्षों का इलाज करते हैं। शनिवार-रविवार या फिर छुट्टी के दिन वे सुबह से ही वृक्षों के इलाज के लिए मौके पर पहुंच जाते हैं। उन्होंने हाल ही में यूपी के प्रयागराज और कौशांबी में कई एकड़ में अमरूदों के बाग में फैली बीमारी ठीक करने में भी मदद की। बीनू ने 15 साल पहले एक अधजले पेड़ का इलाज कर उसे हराभरा बना दिया तो लाेगाें काे आश्चर्य हुआ। फिर मालायिंचीप्पारा के सेंट जोसेफ स्कूल के कुछ बच्चे उनके पास आए। उनसे कहा कि उनके स्कूल में एक आम का पेड़ है जिसमें कई सालों से आम नहीं फल रहा है। उन्होंने इसका इलाज किया और उसमें आम आने लगे तो बच्चों ने बीनू को ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ की ख्याति दिला दी। आसपास के लोग बीनू को पेड़ वाले डॉक्टर के नाम से ही जानते हैं।
बीनू का कहना है कि उनका ज्यादातर समय दीमक के टीले की मिट्टी ढूंढने में निकल जाता है। वे दीमक के टीले की मिट्टी से ही बीमार पेड़ों का इलाज करते हैं। 60 साल पहले तक वृक्ष आयुर्वेद काफी प्रचलित था। महर्षि चरक और सुश्रुत ने भी ग्रंथों में पेड़ों की बीमारी का उल्लेख किया है। मैंने अपनी कोशिशों के जरिए सैकड़ों वृक्ष बचाए, यही मेरा उद्देश्य है।
इलाज में दीमक के टीले की मिट्टी, गोबर, दूध और घी का प्रयोग करते हैं
बीनू का कहना है कि वृक्ष आयुर्वेद में पेड़ों की हर बीमारी का इलाज बताया गया है। इनमें दीमक के टीले की मिट्टी, धान के खेतों की मिट्टी प्रमुख है। गोबर, दूध, घी और शहद का इस्तेमाल भी किया जाता है। केले के तने का रस और भैंस के दूध का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो पेड़ों के घाव में महीनों तक भैंस के दूध की पट्टी भी लगानी पड़ती है।
कोट्टायम.पेड़-पौधों से इंसान की बीमारी दूर करने के बारे में आपने सुना होगा, लेकिन केरल के 51 वर्षीय के. बीनू ऐसे शख्स हैं, जो आयुर्वेद के जरिए पेड़-पौधों का इलाज करते हैं। पेशे से स्कूल शिक्षक बीनू ने 100 साल से भी पुराने कई ऐसे पेड़ों को फिर से जिंदा कर दिया, जो ठूंठ हो गए थे। पेड़ों के संरक्षण के लिए वे बीते 10 सालों से जुटे हुए हैं। आसपास ही नहीं, देशभर के लोग अपने पेड़ों की बीमारी के बारे में उन्हें बताते हैं और बीनू उनका इलाज करते हैं- वह भी मुफ्त। उन्होंने वृक्षों को बचाने के लिए वृक्ष आयुर्वेद से संबंधित कई पुस्तकें लिखीं जो अब केरल के स्कूली कोर्स में भी शामिल की जा रही हैं।
वृक्षों को जीवित इंसान की तरह मानने वाले बीनू अपनी दिनचर्या के मुताबिक सुबह लोगों से उनके वृक्षों की बीमारी सुनते हैं और स्कूल से लौटते समय वृक्षों का इलाज करते हैं। शनिवार-रविवार या फिर छुट्टी के दिन वे सुबह से ही वृक्षों के इलाज के लिए मौके पर पहुंच जाते हैं। उन्होंने हाल ही में यूपी के प्रयागराज और कौशांबी में कई एकड़ में अमरूदों के बाग में फैली बीमारी ठीक करने में भी मदद की। बीनू ने 15 साल पहले एक अधजले पेड़ का इलाज कर उसे हराभरा बना दिया तो लाेगाें काे आश्चर्य हुआ। फिर मालायिंचीप्पारा के सेंट जोसेफ स्कूल के कुछ बच्चे उनके पास आए। उनसे कहा कि उनके स्कूल में एक आम का पेड़ है जिसमें कई सालों से आम नहीं फल रहा है। उन्होंने इसका इलाज किया और उसमें आम आने लगे तो बच्चों ने बीनू को ‘पेड़ वाले डॉक्टर’ की ख्याति दिला दी। आसपास के लोग बीनू को पेड़ वाले डॉक्टर के नाम से ही जानते हैं।
बीनू का कहना है कि उनका ज्यादातर समय दीमक के टीले की मिट्टी ढूंढने में निकल जाता है। वे दीमक के टीले की मिट्टी से ही बीमार पेड़ों का इलाज करते हैं। 60 साल पहले तक वृक्ष आयुर्वेद काफी प्रचलित था। महर्षि चरक और सुश्रुत ने भी ग्रंथों में पेड़ों की बीमारी का उल्लेख किया है। मैंने अपनी कोशिशों के जरिए सैकड़ों वृक्ष बचाए, यही मेरा उद्देश्य है।
इलाज में दीमक के टीले की मिट्टी, गोबर, दूध और घी का प्रयोग करते हैं
बीनू का कहना है कि वृक्ष आयुर्वेद में पेड़ों की हर बीमारी का इलाज बताया गया है। इनमें दीमक के टीले की मिट्टी, धान के खेतों की मिट्टी प्रमुख है। गोबर, दूध, घी और शहद का इस्तेमाल भी किया जाता है। केले के तने का रस और भैंस के दूध का भी इस्तेमाल करते हैं। कई बार तो पेड़ों के घाव में महीनों तक भैंस के दूध की पट्टी भी लगानी पड़ती है।
नई दिल्ली.भारत में लोगों को दवाइयों पर दुनिया के औसत से करीब 73% तक कम खर्च करना पड़ता है। एक स्टडी के मुताबिक, भारत सस्ती दवाएं मुहैया कराने के मामले में दुनिया के 5 टॉप देशों में शामिल है। जहां भारत में दुनिया के औसत से 73.82% तक सस्ती दवाएं मिलती हैं, वहीं थाईलैंड में दवाएं वैश्विक औसत से करीब 93.93% सस्ती पड़ती हैं। यह कीमतें दुनिया में सबसे कम हैं। इसके बाद केन्या (93.76%) दूसरे, मलेशिया (90.80%) तीसरे और इंडोनेशिया (90.23%) चौथे नंबर पर है। ब्रिक्स में साथी देशों (ब्राजील, रूस, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के मुकाबले भी भारत में दवाएं सबसे सस्ती हैं।
इंग्लैंड के लंदन और जर्मनी के बर्लिन आधारित हेल्थकेयर कंपनी मेडबेल ने अध्ययन के लिए 50 देशों में सभी अहम दवाइयों के दामों की तुलना की। इनमें हाई-कोलेस्ट्रोल के लिए इस्तेमाल होने वाली लिपिटोर दवा से लेकर बैक्टेरियल इन्फेक्शन में काम आने वाली जिथ्रोमैक्स और एचआईवी-एड्स में दी जाने वाइरीड शामिल हैं। मेडबेल ने तुलना के लिए 13 फार्मास्यूटिकल कंपाउंड्स की कीमतों का विश्लेषण किया।
सरकारी हेल्थकेयर की तरफ से मुहैया दवाएं भी सर्वे में शामिल
जिन दवाओं की तुलना की गई है, उनमें ज्यादातर आम लोगों के इस्तेमाल में आने वाली हैं। दिल की परेशानी और अस्थमा के अलावा ब्लड प्रेशर जैसी आम जरूरतों वाली दवाओं को तुलना में रखा गया है। इसमें सरकारी हेल्थकेयर सिस्टम में शामिल दवाओं के साथ उन दवाओं को भी रखा गया, जिनके लिए लोगों को अपनी जेब से रकम खर्च करनी पड़ती है। सर्वे में अलग-अलग देशों में ब्रांड कंपाउंड और उसके जेनेरिक वर्जन दवा को सामान्य डोज के हिसाब से कुल औसत में बदला गया, ताकि उनकी क्वालिटी में फर्क न आए।
भारत में कौन सी दवा कितनी सस्ती
भारत में दिल और हाई कोलेस्ट्रॉल से जुड़ी दवाइयां वैश्विक औसत से करीब 84.82% सस्ती हैं, जबकि अमेरिका में यह दवाएं 2175% तक महंगी हैं। एंग्जाइटी डिसऑर्डर की दवाएं भारत में 91.13% तक कम दाम में उपलब्ध हैं। अमेरिका में इनकी कीमत 1071% ज्यादा है। भारत में कुछ दवाओं के दाम वैश्विक औसत से ज्यादा भी हैं। बैक्टेरियल इन्फेक्शन की दवाएं भारत में सबसे सस्ती हैं (औसत से 88.46% कम)। वहीं अमेरिका में इनकी कीमत 1755% ज्यादा है।
हालांकि, भारत में एचआईवी-एड्स (162.87%), डायबिटीज (6.62%) और ब्लड प्रेशर (31.37%) जैसी दवाओं के दाम वैश्विक औसत से काफी ऊपर हैं। इन दवाइयों के दाम भी अमेरिका में सबसे ज्यादा हैं।
दवा | फार्मास्यूटिकल कंपाउंड | किस समस्या के लिए | औसत दाम में फर्क | |
भारत | अमेरिका | |||
लिरिका | प्रेगाबेलिन | एपिलेप्सी | - 91.13 | 1071.17 |
लिपिटोर | एटोरवास्टेटिन | हाई कोलेस्ट्रॉल | - 84.82 | 2175.83 |
वेंटोलिन | सालब्यूटामोल | अस्थमा | - 64.76 | 1191.01 |
जिथ्रोमैक्स | अजिथ्रोमाइसिन | बैक्टेरियल इन्फेक्शन | - 88.46 | 1755.25 |
लांटस | इंसुलिन ग्लार्गाइन | डायबिटीज टाइप 1 और 2 | 6.62 | 557.86 |
प्रोग्रैफ | टैक्रोलिमस | प्रतिरक्षा रोधी | - 87.46 | 86.45 |
यास्मिन | ड्रोसपिरेनोन | फीमेल कॉन्ट्रासेप्शन | - 54.94 | 785.99 |
प्रोजैक | फ्लोक्जेटाइन | डिप्रेशन/ओसीडी | - 84.43 | 2124.89 |
जैनेक्स | अल्प्राजोलम | पैनिक डिसऑर्डर | - 73.21 | 2568.75 |
जेस्ट्रिल | लिसिनोप्रिल | हाई ब्लड प्रेशर | 31.37 | 2682.56 |
टेनोवोफिर | वाइरीड | हैपटाइटस बी/ एचआईवी-एड्स | 162.87 | 217.02 |
हुमिरा | अदालिमुमाब | त्वचा की बीमारी | - 74.20 | 482.91 |
ब्रांडेड ड्रग्स | -- | -- | - 87.41 | 421.74 |
जेनेरिक ड्रग्स | -- | -- | - 91.45 | 97.41 |
वारसा. माता-पिता की जिंदगी खुशियों से भर देने के साथ बेटियां पिता की जिंदगी के कुछ और साल भी बढ़ा देती हैं। पोलैंड की जेगीलोनियन यूनिवर्सिटी के अध्ययन में दावा किया है कि बेटियों के पिताउन लोगों के मुकाबले लंबी उम्र जीते हैं, जिनके यहां बेटियां नहीं होती। अध्ययन में पता चला कि बेटा होने का तो पुरुष की सेहत या उम्र पर कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन बेटी होने परपिता की उम्र 74 हफ्ते बढ़ जाती है। पिता के यहां जितनी ज्यादा लड़कियां होती हैं, वे उतनी लंबी उम्र जीते हैं।
यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बच्चों का पिता की सेहत और उम्र पर असर जानने के लिए 4310 लोंगों का डेटा लिया। इसमें 2147 माताएं और 2163 पिता थे। शोधकर्ताओं का दावा है, यह अपनी तरह का पहला ऐसा शोध हैं। इससे पहले बच्चों के पैदा होने पर मां की सेहत और उम्र को लेकर अध्ययन हुए हैं।
बेटा-बेटी का मां की सेहत पर नकारात्मक असर
यूनिवर्सिटी के एक शोधकर्ता के मुताबिक, बेटियों की बजाय बेटों को प्राथमिकता देने वाले पिता अपनी जिंदगी के कुछ साल खुद ही कम कर लेते हैं। बेटी का पैदा होना पिता के लिए तो अच्छी खबर है, लेकिन मां के लिए नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे पहले हुए अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्यूमन बायोलॉजी के एक अध्ययन में कहा गया था कि बेटे और बेटी दोनों का मां की सेहत पर नकारात्मक असर पड़ता है जिससे उनकी उम्र कम होती है।
पहले हुए शोध में ऐसे भी दावे
इससे पहले हुए एक अन्य अध्ययन में अविवाहित महिलाओं के शादीशुदा के मुकाबले ज्यादा खुश रहने की बात सामने आई थी। हालांकि एक और शोध में यह बात भी सामने आई थी कि बच्चे होने के बाद मां और बाप दोनों की उम्र बढ़ जाती है। इस अध्ययन में 14 साल तक का डेटा लिया गया था और पता चला था कि बच्चों के साथ रहने वाले कपल्स बिना बच्चों वाले कपल्स के मुकाबले ज्यादा खुश और लंबी उम्र जीते हैं।
मदुरै (मनीषा भल्ला).मदुरै से 125 किमी दूर रामेश्वरम के रास्ते में गांव है- कलईयुर। तमिल में कलई के मायने हैं ‘कला’ और युर यानी ‘गांव’। अपने नाम को सार्थक करता रामनाथपुरम् जिले का यह गांव पाक कला के लिए दुनियाभर में मशहूर है। गांव का हर पुरुष एक्सपर्ट कुक है।
दो हजार की आबादी वाले गांव के 300 से अधिक कुक देश ही नहीं दुनियाभर के बड़े होटलों और रेस्त्रां में काम कर रहे हैं। बाकी पुरुष शादियों-पार्टियों में लाेगों को अपने भोजन का मुरीद बना रहे हैं। इनकी आय 40 हजार से शुरू होकर लाखों रु. तक जाती है। गांव के सबसे बुजुर्ग कुक 73 वर्षीय मुरुवेल बताते हैं कि इस काम को पहचान 500 साल पहले मिलना शुरू हुई थी।
इस कला ने मछलियां पकड़ने वाले हमारे वानियार समाज को ऊंची जाति के लोगों की रसाेई में जगह दिलवाई है। सबसे पहले संपन्न वर्ग रेडियार ने हमें कुक रखना शुरू किया था। तब से पीढ़ी-दर-पीढ़ी गांव में हर बच्चा यह काम सीख रहा है। बुजुर्गों की देखरेख में 12 साल की उम्र में ट्रेनिंग शुरू हो जाती है, जो 10 साल तक चलती है।
24 घंटे में 617 डिश बनाकर गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करा चुके सेलिब्रिटी शेफ डॉ. दामू बताते हैं कि कलईयुर के शेफ सी फूड और अपने सीक्रेट मसालों के लिए मशहूर हैं। इनके जैसा करुवर टुकु (सूखी मछली) और चनाकुन्नी (मछली-चावल), प्याज और हरी मिर्च की चटनी दुनिया में कोई नहीं बना सकता। खाना बनाने में ये किसी यंत्र का उपयोग नहीं करते। हर काम हाथ से। वीआईपी और फिल्म एक्टर, फिर भले वो रजनीकांत हो या कमल हसन, कलईयुर के शेफ के हाथों का बना खाना जरूर चखना चाहता है।
यहां के शेफ ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, सिंगापुर, लंदन, और दुबई तक के रेस्त्रां में नौकरियां कर रहे हैं। अगर आप कलईयुर के शेफ हैं तो अच्छे वेतन पर नौकरी मिलना तय है। हिस्ट्री चैनल भी गांव के बारे में शो कर चुका है। खाने के शौकीन, ऑफबीट ट्रैवलर और रेसिपी पर शोध करने वालों का इस गांव में आना-जाना लगा रहता है।
गांव के हर युवा के पास रोजगार, साक्षरता में भी आगे
एआईएडीएमके नेता और पूर्व मंत्री अनवर राजा बताते हैं कि 55 देशों में 2.5 करोड़ तमिल रहते हैं और जहां तमिल हैं, वहां पर कलईयुर के शेफ भी हैं। इस हुनर के ही कारण कलईयुर गांव में हायर सेकंडरी तक स्कूल है। साक्षरता में गांव जिले में दूसरे नंबर पर है। गांव के हर युवा के पास रोजगार है।
हैदराबाद. हैदराबाद की 8 साल की पीडीवी सहरुदा ने शनिवार को दो वर्ल्ड रिकॉर्ड्स बनाए। सहरुदा के इस कारनामे को एलीट वर्ल्ड रिकॉर्ड्स एलएलसी यूएसए ने मान्यता दी है। सहरुदा ने 20 मिनट में ही 102 ऑरिगेमी मॉडल बनाए और इतने ही समय में 350 सिरेमिक टाइल्स तोड़ीं। इससे पहले यह रिकॉर्ड नॉर्थ कोरिया की एक महिला खिलाड़ी के नाम था जिसने 20 मिनट में 262 टाइल्स तोड़ी थीं।
सहरुदा के मुताबिक, मैं तीन विश्व रिकॉर्ड बनाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन दो ही बना पाई। मैंने कई राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़े। पिछले एक साल से कराटे सीख रही हूं और अब तक ग्रीन बेल्ट ले चुकी हूं। सिरेमिक टाइल वाले इवेंट के लिए मैं अपनी ट्रेनर के साथ 5 मिलीमीटर मोटी टाइल तोड़ने की प्रैक्टिस कर रही थी।
लड़कियों और महिलाओं को ट्रेंड करना मकसद
सहरुदा की ट्रेनर अश्विनी आनंद ने बताया, मैंने 2017 के डब्ल्यूकेयू वर्ल्ड चैंपियन में सेकंड डिग्री ब्लैक बेल्ट हासिल किया है। मेरा मकसद ज्यादा से ज्यादा लड़कियों और महिलाओं को ट्रेंड करना है। सहरुदा की अभी शुरुआत है। सहरुदा विश्व चैंपियनशिप और दूसरी प्रतियोगिताओं के लिए तैयारी कर रही है। आशा है, आने वाले समय में सेल्फ डिफेंस हर बच्चे के लिए महत्वपूर्ण हो जाएगा।
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