from NDTV Khabar - Filmy https://ift.tt/35S19BJ
via IFTTT
वजन घटाना चाहते हैं और हार्ट को हेल्दी रखना चाहते हैं तो वीगन डाइट को अपना सकते हैं। फल, सब्जी और अनाज से मिलने वाले न्यूट्रिएंट्स पेट को दुरस्त रखने के साथ कैंसर का खतरा घटाते हैं। लेकिन कई महीनों तक इस डाइट के सहारे रहना खतरनाक है। क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. सुरभि पारीक कहती हैं, जब भी इस डाइट की शुरुआत करें तो इसके साथ कुछ और सप्लिमेंट्स लें वरना कुछ पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
आज वर्ल्ड वीगन डे के मौके पर जानिए वीगन डाइट को अपनाने से पहले किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है...
वीगन डाइट कैंसर का खतरा घटाती है, रिसर्च में साबित हुआ
अमेरिका में हुई एक स्टडी बताती है वीगन डाइट वजन घटाने में कारगर है। इसमें फैट बेहद कम मात्रा में होने के कारण ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है और हृदय रोगों का खतरा घटता है। फल और सब्जियों के जरिए शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स काफी मात्रा में पाए जाते हैं जो ब्लड शुगर भी कंट्रोल में रखते हैं और इम्युनिटी को बढ़ाते हैं।
मेयो क्लीनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वीगन डाइट में नॉन-वेज नहीं शामिल होता, इसलिए ये कोलोन और ब्रेस्ट कैंसर से भी बचाते हैं। इसमें फायबर होने के कारण पेट से जुड़ी दिक्कतें जैसे कब्ज नहीं होता।
वीगन डाइट लें तो इन 6 बातों का ध्यान रखें
वीगन डाइट किसे नहीं लेनी चाहिए
ऐसे लोग जो पहले से अंडरवेट हैं। आयरन और कैल्शियम की कमी से जूझ रहे हैं, उन्हें वीगन डाइट लेने से बचना चाहिए। जैसे- एनीमिक महिलाएं। ऐसे लोग जिन्हें नट्स, सोया और ग्लूटेन से एलर्जी है उन्हें भी वीगन डाइट नहीं लेनी चाहिए।
वेजिटेरियन और वीगन डाइट के फर्क को भी समझ लें
वीगन और वेजिटेरियन डाइट में एक सबसे बड़ा अंतर है। वेगन डाइट में ज्यादातर ऐसे फूड शामिल हैं जो पेड़े-पौधों से सीधे तौर पर मिलते हैं। वीगन डाइट में एक बात का खासतौर पर ध्यान दिया जाता है कि जो भी फूड ले रहे हैं वो केमिकल से तैयार न हुए हों। यानी ऑर्गेनिक फार्मिंग से तैयार होने वाले फूड होने चाहिए।
कैसे शुरू हुआ वर्ल्ड वीगन डे
जानवरों के अधिकारों की वकालत करने वाले ब्रिटेन के डोनाल्ड वॉटसन ने 1 नवम्बर 1944 को 5 लोगों की एक मीटिंग बुलाई। इस बैठक में नॉन-डेयरी प्रोडक्ट पर चर्चा हुई। यहीं से पड़ी वर्ल्ड वीगन डे की नींव। इस दिन का लक्ष्य जानवर और पर्यावरण को बचाने के साथ लोगों को वेजिटेरियन फूड खाने के लिए जागरूक करना है।
वजन घटाना चाहते हैं और हार्ट को हेल्दी रखना चाहते हैं तो वीगन डाइट को अपना सकते हैं। फल, सब्जी और अनाज से मिलने वाले न्यूट्रिएंट्स पेट को दुरस्त रखने के साथ कैंसर का खतरा घटाते हैं। लेकिन कई महीनों तक इस डाइट के सहारे रहना खतरनाक है। क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. सुरभि पारीक कहती हैं, जब भी इस डाइट की शुरुआत करें तो इसके साथ कुछ और सप्लिमेंट्स लें वरना कुछ पोषक तत्वों की कमी हो सकती है।
आज वर्ल्ड वीगन डे के मौके पर जानिए वीगन डाइट को अपनाने से पहले किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है...
वीगन डाइट कैंसर का खतरा घटाती है, रिसर्च में साबित हुआ
अमेरिका में हुई एक स्टडी बताती है वीगन डाइट वजन घटाने में कारगर है। इसमें फैट बेहद कम मात्रा में होने के कारण ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है और हृदय रोगों का खतरा घटता है। फल और सब्जियों के जरिए शरीर में एंटीऑक्सीडेंट्स काफी मात्रा में पाए जाते हैं जो ब्लड शुगर भी कंट्रोल में रखते हैं और इम्युनिटी को बढ़ाते हैं।
मेयो क्लीनिक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वीगन डाइट में नॉन-वेज नहीं शामिल होता, इसलिए ये कोलोन और ब्रेस्ट कैंसर से भी बचाते हैं। इसमें फायबर होने के कारण पेट से जुड़ी दिक्कतें जैसे कब्ज नहीं होता।
वीगन डाइट लें तो इन 6 बातों का ध्यान रखें
वीगन डाइट किसे नहीं लेनी चाहिए
ऐसे लोग जो पहले से अंडरवेट हैं। आयरन और कैल्शियम की कमी से जूझ रहे हैं, उन्हें वीगन डाइट लेने से बचना चाहिए। जैसे- एनीमिक महिलाएं। ऐसे लोग जिन्हें नट्स, सोया और ग्लूटेन से एलर्जी है उन्हें भी वीगन डाइट नहीं लेनी चाहिए।
वेजिटेरियन और वीगन डाइट के फर्क को भी समझ लें
वीगन और वेजिटेरियन डाइट में एक सबसे बड़ा अंतर है। वेगन डाइट में ज्यादातर ऐसे फूड शामिल हैं जो पेड़े-पौधों से सीधे तौर पर मिलते हैं। वीगन डाइट में एक बात का खासतौर पर ध्यान दिया जाता है कि जो भी फूड ले रहे हैं वो केमिकल से तैयार न हुए हों। यानी ऑर्गेनिक फार्मिंग से तैयार होने वाले फूड होने चाहिए।
कैसे शुरू हुआ वर्ल्ड वीगन डे
जानवरों के अधिकारों की वकालत करने वाले ब्रिटेन के डोनाल्ड वॉटसन ने 1 नवम्बर 1944 को 5 लोगों की एक मीटिंग बुलाई। इस बैठक में नॉन-डेयरी प्रोडक्ट पर चर्चा हुई। यहीं से पड़ी वर्ल्ड वीगन डे की नींव। इस दिन का लक्ष्य जानवर और पर्यावरण को बचाने के साथ लोगों को वेजिटेरियन फूड खाने के लिए जागरूक करना है।
असम में खास तरह की दुर्लभ प्रजाति वाली चायपत्ती ने फिर रिकॉर्ड बनाया है। मनोहारी गोल्ड टी खास तरह की चायपत्ती है, जिसे गुवाहाटी चाय नीलामी केंद्र पर 75 हजार रुपए प्रति किलो की कीमत पर बेचा गया है। यह असम में इस साल दर्ज चाय की सबसे ऊंची कीमत है।
इस चायपत्ती की पैदावार करने वाले मनोहारी टी स्टेट का कहना है, इस साल इसकी केवल 2.5 किलो पैदावार हुई। इसमें से 1.2 किलो की नीलामी हुई है। महामारी के बीच चाय की इतनी कीमत मिलना इंडस्ट्री के लिए राहत की बात है।
ये तो हुई नीलामी की बात अब ये भी समझ लीजिए कि यह चायपत्ती इतनी खास क्यों है...
चाय को तोड़ने का तरीका भी है अलग
मनोहारी टी स्टेट के डायरेक्टर राजन लोहिया कहते हैं, ये खास तरह की चायपत्ती होती है जिसे सुबह 4 से 6 बजे के बीच सूरज की किरणें जमीन पर पड़ने से पहले तोड़ा जाता है। इसका रंग हल्का मटमैला पीला होता है। यह चायपत्ती अपनी खास तरह की खुशबू के लिए जानी जाती है। इसमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट्स भी पाए जाते हैं।
ऐसे तैयार होती है
पिछले 63 साल से असम की टी-इंडस्ट्री से जुड़े चंद्रकांत पराशर कहते हैं, इस खास तरह की चायपत्ती की पैदावार 30 एकड़ में की जाती है। पौधों से पत्तियों के साथ कलियों को तोड़ा जाता है। फिर इन्हें फर्मेंटेशन की प्रोसेस से गुजारा जाता है। फर्मेंटेशन के दौरान इनका रंग ग्रीन से बदलकर ब्राउन हो जाता है। बाद में सुखाने पर इसका रंग गोल्डन हो जाता है। इसके बाद इसे पत्तियों से अलग किया जाता है।
1 हजार करोड़ के घाटे से जूझ रहा चाय का कारोबार
डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लॉकडाउन, मानसून और बाढ़ का सीधा असर असम की चायपत्ती की पैदावार पर हुआ है। टी-इंडस्ट्री इस साल 1 हजार करोड़ के घाटे से जूझ रही है। लेकिन हाल ही में नीलामी ने कुछ राहत पहुंचाई है।
2018 में मनोहारी गोल्ड टी की बोली 39,001 रुपए प्रति किलो थी। वहीं, 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 50 हजार रुपए प्रति किलो तक पहुंचा। इस साल यह 75 हजार रुपए प्रति किलो में बिकी।
राजन लोहिया कहते हैं, ढाई किलो में से 1.2 किलो की नीलामी हुई है। बची हुई चायपत्ती यहां के नीलामी केंद्र पर मिलेगी। इसे गुवाहाटी की विष्णु टी कम्पनी ने खरीदा है। यह कम्पनी ई-कॉमर्स वेबसाइट के जरिए दुनियाभर तक पहुंचाते हैं।
आज शरद पूर्णिमा है। चंद्रमा बच्चे के लिए चंदा मामा, विज्ञान के लिए धरती का एकमात्र उपग्रह और मान्यताओं में अमृत वर्षा करने वाला देवता कहा गया है। ग्रंथों के मुताबिक, शरद पूर्णिमा की रात में आकाश से अमृत बरसता है। सूरज की झुलसाने वाली गर्मी के बाद पूर्णिमा की रात में पूर्ण चंद्र की किरणें शीतलता बरसाती हैं, जो तन-मन की गर्मी कम हो जाती है।
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी संपूर्ण 16 कलाओं से परिपूर्ण रहता है। पूर्णिमा तिथि का स्वामी भी स्वयं चंद्रमा ही है, इसलिए उसकी किरणों से इस रात अमृत की वर्षा होने की मान्यता है। आयुर्वेद के अनुसार रातभर इसकी रोशनी में रखी खीर खाने से रोग दूर होते हैं।
चांद की रोशनी से हमारी सेहत कैसे प्रभावित होती है, यही समझने के लिए दैनिक भास्कर ऐप ने विशेषज्ञों से बात की। इंटर-यूनिवर्सिटी ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स के प्रोफेसर्स और आयुर्वेद विशेषज्ञ से जानिए इसकी पूरी कहानी...
कैसे बनती है चांदनी
एस्ट्रोनॉमी विशेषज्ञ प्रो. श्याम टंडन के मुताबिक, बारिश के बाद पहली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के पर्व के रूप में मनाया जाता है। बारिश का दौर खत्म होने के कारण हवा साफ होती है यही सबसे बड़ा कारण है। इसके बाद से मौसम में ठंडक आती है और ओस के साथ कोहरा पड़ना शुरू हो जाता है।
एसोसिएट प्रोफेसर श्रुद मोरे के मुताबिक, चांद अंधेरे में चमकता है, लेकिन चांद की अपनी कोई चमक नहीं होती। सूर्य की किरणें जब चांद पर पड़ती हैं, तो ये परावर्तित होती हैं और चांद चमकता हुआ नजर आता है। इसकी रोशनी जमीन पर चांदनी के रूप में गिरती है।
एस्ट्रोनॉमी विशेषज्ञ प्रो. समीर धुर्डे कहते हैं कि धरती पर इन किरणों की तीव्रता बेहद कम होने के कारण यह किसी तरह से कोई नुकसान नहीं पहुंचातीं। प्राचीनकाल से ही पूर्णिमा का लोगों के जीवन में काफी महत्व रहा है, क्योंकि दूसरी रातों के मुकाबले इस दिन चंद्रमा, आम दिनों की तुलना में ज्यादा चांदनी बिखेरता है। इसलिए पूर्णिमा की चांदनी का विशेष महत्व होता है।
शरद पूर्णिमा को कोजागर पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन रखे जाने वाले व्रत को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इस दिन खीर का महत्व इसलिए भी है कि यह दूध से बनी होती है और दूध को चंद्रमा का प्रतीक माना गया है। चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है।
प्रो. धुर्डे कहते हैं, शरद पूर्णिमा को चांद की रोशनी में दूध रखने की परंपरा है। लोग व्रत के अंत में रोशनी में रखा दूध या खीर लेते हैं, लेकिन विज्ञान के मुताबिक, रोशनी से दूध पर कोई असर नहीं देखा गया है। धरती पर दिन-रात की स्थिति अलग-अलग होने से चांद का स्वरूप भी अलग-अलग दिख सकता है। कई बार चांद के चारों ओर इंद्रधनुष की तरह रिंग भी दिखती हैं, इसे 'हेलो रिंग' कहते हैं लेकिन यह किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचातीं।
चांद की रोशनी अधिक होने के कारण असर ज्यादा
नेचुरोपैथी और आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. किरण गुप्ता कहती हैं कि शरद पूर्णिमा की शुरुआत ही वर्षा ऋतु के अंत में होती है। इस दिन चांद धरती के सबसे करीब होता है, रोशनी सबसे ज्यादा होने के कारण इनका असर भी अधिक होता है। इस दौरान चांद की किरणें जब खीर पर पड़ती हैं तो उस पर भी इसका असर होता है।
रातभर चांदनी में रखी हुई खीर शरीर और मन को ठंडा रखती है। ग्रीष्म ऋतु की गर्मी को शांत करती और शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाती है। यह पेट को ठंडक पहुंचाती है। श्वांस के रोगियों को इससे फायदा होता है साथ ही आंखों रोशनी भी बेहतर होती है।
डॉ. किरण यह भी कहती हैं कि चांद की रोशनी में कई रोगों का इलाज करने की खासियत होती है। चंद्रमा की रोशनी इंसान के पित्त दोष को कम करती है। एक्जिमा, गुस्सा, हाई बीपी, सूजन और शरीर से दुर्गंध जैसी समस्या होने पर चांद की रोशनी का सकारात्मक असर होता है। सुबह की सूरज की किरणें और चांद की रोशनी शरीर पर सकारात्मक असर छोड़ती हैं।
खीर में ड्राय फ्रूट डालें, ये इम्युनिटी बढ़ाते हैं
डॉ. किरण कहती हैं कि शरद पूर्णिमा को खीर को रात भर चांद की रोशनी में रखने के बाद ही खाना चाहिए। इसे चलनी से ढंक भी सकते हैं। खीर में कुछ चीजों का होना जरूरी है। जैसे दालचीनी, काली मिर्च, घिसा हुआ नारियल, किशमिश, छुहारा। रातभर इसे चांदनी में रखने से इसकी तासीर बदलती है और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
मान्यतों के अनुसार खीर को संभव हो तो चांदी के बर्तन में बनाना चाहिए। चांदी में रोग प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।
दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया गया है।
मान्यता है कि इस दिन आसमान से अमृत बरसता है क्योंकि चांद की रोशनी में औषधीय गुण होते हैं जिसमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की क्षमता होती है।
एक मान्यता यह भी है कि इस दिन ही मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इस वजह से देश के कई हिस्सों में इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है, जिसे कोजागरी लक्ष्मी पूजा के नाम से जाना जाता है।
ऐसा मानते हैं कि इस दिन देवी लक्ष्मी अपनी सवारी उल्लू पर बैठकर भगवान विष्णु के साथ पृथ्वी का भ्रमण करने आती हैं। इसलिए आसमान में चंद्रमा भी सोलह कलाओं से चमकता है।
शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में जो भगवान विष्णु सहित देवी लक्ष्मी और उनके वाहन की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है।
शरद पूर्णिमा की रात्रि में जागने की परंपरा भी है। यह पूर्णिमा जागृति पूर्णिमा के नाम से भी जानी जाती है।
भारत के कुछ हिस्सों में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन कुंवारी लड़कियां सुयोग्य वर के लिए भगवान कार्तिकेय की पूजा करती हैं। इस दिन लड़कियां सुबह उठकर स्नान करने के बाद सूर्य को भोग लगाती हैं और दिन भर व्रत रखती हैं। शाम के समय चंद्रमा की पूजा करने के बाद अपना व्रत खोलती हैं।
क्या हो रहा है वायरल : दावा किया जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO) ने पहले कोरोना वायरस को महामारी बताकर अब अपनी ही बात से यू-टर्न ले लिया है।
वायरल मैसेज के साथ एक ही कार्यक्रम के अलग-अलग वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। देखने पर ये एक कॉन्फ्रेंस लगती है, जिसमें वक्ता दावा कर रहे हैं कि कोरोना वायरस महामारी नहीं है। सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा है कि ये लोग WHO के पदाधिकारी हैं।
##वीडियो के साथ मैसेज वायरल हो रहा है - Breaking news: WHO has completely taken a U-turn and now says that Corona patient neither needs to be isolated, nor quarantined, nor needs social Distancing, and it cannot even transmit from one patient to another। मैसेज का हिंदी अनुवाद है - WHO ने पूरी तरह से यू-टर्न ले लिया है। अब WHO का कहना है कि कोरोना रोगी को आईसोलेट या क्वारेंटाइन होने की जरूरत नहीं है। सोशल डिस्टेंसिंग की भी अब कोई जरूरत नहीं है। कोरोना एक मरीज से दूसरे मरीज को संक्रमित भी नहीं करता।
##और सच क्या है ?
आयुर्वेद में ऐसे कई पौधे बताए गए हैं जिनकी पत्तियों और जड़ों से कई तरह की बीमारियों का इलाज किया जाता है। इनमें से कुछ पौधों को घर के गार्डन में उगा सकते हैं। इन्हें लगाना भी आसान है और अधिक देखभाल की जरूरत भी नहीं होती। बागवानी विशेषज्ञ आशीष कुमार बता रहे हैं, घर के बगीचे में औषधीय पौधे कैसे लगाएं, इन्हें कैसे इस्तेमाल करें और ये कितनी तरह से फायदा पहुंचाते हैं...
ब्राह्मी : दिमाग तेज करती है और बच्चों में एकाग्रता बढ़ाती है
गिलोय : डेंगू-चिकनगुनिया के मरीजों के लिए फायदेमंद
कालमेघ : यह कैंसर और संक्रमण से बचाता है
कैसे लगाएं : यह आसानी से बीज या कटिंग से गमले या क्यारी में लग जाता है।
कैसे मिलेगा फायदा : बुखार और खराश होने पर इसकी पत्तियों की चाय या जूस बनाकर पी सकते हैं लेकिन ध्यान रहे कि यह नीम से सौ गुना अधिक कड़वा होता है, इसलिए इसे 'किंग ऑफ बिटर' के नाम से भी जानते हैं।
फायदे : यह संक्रमण, बैक्टीरिया, कैंसर और सूजन से बचाता है। डायबिटीज के रोगियों के लिए भी यह फायदेमंद है। इसीलिए इसको कोविड-19 संक्रमण से लड़ने में मददगार भी कहा जा रहा है। दवाइयों में इसके प्रयोग भी किए जा रहे हैं। यह हैजा, दमा, ज्वर, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर, खांसी, गले में छाले और पाइल्स में फायदेमंद है।
पिप्पली : यह हृदय रोगियों और पेट की समस्याओं में फायदेमंद
अश्वगंधा : खांसी और अस्थमा में राहत देता है, इम्युनिटी बढ़ाता है
कैसे लगाएं : इसका पौधा बीज की मदद से गमले या क्यारी में लगाया जाता है।
कैसे मिलेगा फायदा : इसकी जड़ों का पाउडर खांसी और अस्थमा से राहत दिलाता है। पत्तियों की चाय बनाकर पी सकते हैं। दूध में एक चम्मच अश्वगंधा की जड़ का पाउडर मिलाकर पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
फायदे : अश्वगंधा शरीर की काम करने की क्षमता को बढ़ाता है। इसके पत्तों को रेग्युलर खाते हैं और प्राणायाम करते हैं तो मोटापा कम किया जा सकता है।
वन तुलसी : सिरदर्द, गले की खराश और बुखार में फायदा करती है
लेमनग्रास : इसकी चाय पिएं, संक्रमण से बचे रहेंगे
कोरोना का संक्रमण होने के बाद पहले हफ्ते में पांच या इससे अधिक तरह के लक्षण दिखते हैं तो यह इशारा है कि मरीज में लम्बे समय कोरोना का असर रह सकता है। यह दावा किंग्स कॉलेज लंदन की रिसर्च में किया गया है।
रिसर्च कहती है, संक्रमण के बाद अगर पहले हफ्ते में थकान, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ, आवाज भारी होना, मांसपेशियों और शरीर में दर्द जैसे लक्षण दिखते हैं तो मरीज लम्बे समय के कोरोना से परेशान रह सकता है। इसे लॉन्ग कोविड भी कहते हैं।
लम्बे समय कोविड का साइडइफेक्ट
रिसर्च कहती है, ऐसे मरीज जो कोरोना का संक्रमण होने के 4 से 8 हफ्ते बाद तक रिकवर नहीं कर पाते उनमें पोस्ट कोविड का खतरा बढ़ता है। पोस्ट कोविड यानी लम्बे समय तक कोरोना के साइडइफेक्ट से जूझना। रिकवरी के बाद ऐसे मरीजों में खांसी, सांस लेने में तकलीफ, मांसपेशियों में दर्द और अधिक थकान जैसे लक्षण दिखते हैं।
40 हजार मरीजों पर हुई रिसर्च
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने कोरोना के 40 हजार मरीजों पर रिसर्च की। इसमें ब्रिटेन और स्वीडन के मरीज शामिल किए गए। इनमें से 20 फीसदी ने कहा, संक्रमण के 1 माह बाद भी पूरी तरह से रिकवर नहीं हो पाए। 190 मरीजों में कोरोना के लक्षण लगातार 8 से 10 हफ्ते तक दिखे। वहीं, 100 मरीजों ने बताया, संक्रमण के 10 हफ्ते बाद तक परेशान हुए। रिसर्च कहती है, ये मामले बताते हैं कि लम्बे समय तक कोविड का असर रहता है।
रिकवरी के बाद एक्टिविटी कंट्रोल में रखें
रिसर्चर कहते हैं, कोरोना से उबरने के बाद अगले कुछ हफ्तों तक अपनी एक्टिविटीज को कंट्रोल में रखें। यह थकावट की वजह बनती है और आने वाले समय में इसका बुरा देखने को मिल सकता है। खानपान में हेल्दी फूड लें। योगासन करें। दवाओं को समय पर लेना न भूलें।
64 फीसदी मरीजों कई महीनों तक असर दिख रहा
कोरोना से रिकवर होने वाले 64% मरीजों में कई महीनों तक वायरस का असर दिख रहा है। इलाज के बाद भी मरीज सांस लेने की दिक्कत, थकान, बेचैनी और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं। यह रिसर्च करने वाली ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स का कहना है- कोरोना का संक्रमण होने के 2 से 3 महीने बाद ये असर दिखना शुरू हो रहा है। रिसर्च के दौरान पाया गया कि 64% मरीज सांस लेने की तकलीफ से जूझ रहे थे। वहीं, 55% थकान से परेशान थे।
क्या है लॉन्ग कोविड, ऐसे समझें
हृदय रोगों को रोकना चाहते हैं या हार्ट अटैक के बाद मौत का खतरा घटाना चाहते हैं तो मछली, अखरोट, सोयाबीन और बादाम खाएं। ऐसा खानपान दिल को दुरुस्त रखता है। इस पर वैज्ञानिकों ने भी मुहर लगाई है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी में पब्लिश रिसर्च कहती है, रोजाना डाइट में ओमेगा-3 आइकोसा-पेंटानोइक एसिड और अल्फा-लिनोलिक एसिड की अधिक मात्रा वाले फूड खाते हैं तो दिल की बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।
हार्ट अटैक से जूझ रहे 944 मरीजों पर हुई रिसर्च
रिसर्च करने वाले अमेरिकी वैज्ञानिकों के मुताबिक, ओमेगा-3 आइकोसा-पेंटानोइक एसिड और अल्फा-लिनोलिक एसिड में ऐसी खूबियां जो दिल को सुरक्षित रखने में मदद करती हैं। यह रिसर्च 944 हार्ट अटैक के सीरियस मरीजों पर कई गई। ये ऐसे मरीज थे जिनमें हार्ट की मेजर आर्टरी ब्लॉक थी।
ब्लड सैम्पल में ओमेगा-3 का लेवल देखा गया
रिसर्चर डॉ. एलेक्स साला-विला के मुताबिक, रिसर्च के दौरान 78 फीसदी पुरुषों हॉस्पिटल में भर्ती करने के दौरान ब्लड सैम्पल लिया गया। ब्लड में ओमेगा-3 का स्तर देखा गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि जिन मरीजों में हार्ट अटैक के समय ओमेगा-3 का लेवल ज्यादा था उनकी हालत कम नाजुक हुई। जिन मरीजों में ओमेगा-3 आइकोसा-पेंटानोइक एसिड और अल्फा-लिनोलिक एसिड की मात्रा पर्याप्त रही उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती करवाने की आशंका कम हो गई।
हेल्दी हार्ट के लिए ये चीजें खाएं
रिसर्च कहती है, हार्ट को हेल्दी रखने के लिए साल्मन मछली, अलसी, अखरोट, सोयाबीन और बादाम खा सकते हैं। अमेरिका में मरने वाले लोगों के मौत की सबसे बड़ी वजह हार्ट अटैक है। हर 40 सेकंड में एक इंसान की मौत हार्ट अटैक से हो रही है। 45 साल से अधिक लोगों में से 36 फीसदी पुरुष और 47 फीसदी महिलाएं एक बार हार्ट अटैक का सामना कर चुकी हैं। अगर अगले पांच सालों में दूसरी बार ऐसा हुआ तो इनकी मौत हो जाएगी।
3 रिसर्च बताती हैं कि कोरोना के निशाने पर हार्ट भी है
हृदय रोगी पहले से कोरोना के रिस्क जोन में हैं लेकिन रिकवरी के बाद भी इसका असर हार्ट पर बरकरार रहता है। ऐसे समझें...
हार्ट को हेल्दी कैसे रखें, 5 बातों से समझें
खानपान : मोटा अनाज और कम मीठे फल लें
गेहूं की रोटी की जगह बाजरा, ज्वार या रागी अथवा इनका आटा मिलाकर बनाई रोटी खाएं। आम, केला, चीकू जैसे ज्यादा मीठे फल कम खाएं। इनके बजाय पपीता, कीवी, संतरा जैसे कम मीठे फल खाएं। तली और मीठी चीजें जितना कम कर दें, उतना बेहतर है। जितनी भूख से उससे 20 फीसदी कम खाएं और हर 15 दिन में वजन चेक करते रहें।
वर्कआउट : 45 मिनट की एक्सरसाइज या वॉक जरूरी
सप्ताह में पांच दिन 45 मिनट तक कसरत करें। वॉकिंग भी करते हैं तो असर दिखता है। दिल की बीमारियों की एक बड़ी वजह मोटापा है। वजन जितना बढ़ेगा और हृदय रोगों का खतरा उतना ज्यादा रहेगा। फिटनेस को इस स्तर पर लाने का प्रयास करें कि सीधे खड़े होने पर जब आप नीचे नजरें करें तो बेल्ट का बक्कल दिखे। अगर एक से डेढ़ किलोमीटर जाना है तो पैदल जाएं।
लाइफस्टाइल : जल्दी सोने-जल्दी उठने का रुटीन बनाएं, 7 घंटे की नींद जरूरीरोजाना कम से कम 7 घंटे की नींद जरूर लें। जल्दी सोने और जल्द उठने का रूटीन बनाएं। रात 10 से सुबह 6 बजे तक सोने का आदर्श समय है। इससे शरीर नाइट साइकिल में बेहतर आराम कर सकेगा। तनाव लेने से बचें, इसका सीधा असर मस्तिष्क और हृदय पर होता है।
धूम्रपान-अल्कोहल : इससे जितना दूर रहेंगे, हार्ट उतना हेल्दी रहेगाधूम्रपान पूरी तरह छोड़ दें। लगातार धूम्रपान करने से उसका धुआं धमनियों की लाइनिंग को कमजोर करता है। इससे धमनियों में वसा के जमा होने की आशंका और भी बढ़ जाती है। इसी तरह अल्कोहल से दूरी बना लेते हैं तो हार्ट हेल्दी रहेगा।
सोशल मीडिया : हार्ट को हेल्दी रखने के लिए अफवाहों से बचना भी जरूरी
डॉ. सुशांत पाटिल कहते हैं, सोशल मीडिया और वॉट्सऐप पर आए मैसेज में कई तरह के दावे किए जाते हैं जो आपकी सेहत को बिगाड़ सकते हैं। हार्ट को लेकर भी कई अफवाह वायरल होती हैं। जैसे- दिन की शुरुआत 4 गिलास पानी से करते हैं तो हृदय रोगों का खतरा नहीं होता। ऐसे मैसेजेस से बचें और कोई भी जानकारी लेने के लिए डॉक्टर पर ही भरोसा करें, वरना ये हालत को सुधारने की बजाय और बिगाड़ सकते हैं।
दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें हृदय रोगों से
दुनियाभर में सबसे ज्यादा मौतें हृदय रोगों से होती हैं। वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के मुताबिक, दुनियाभर में हर 3 में से 1 मौत हृदय रोग से हो रही है। इसके 80 फीसदी मामले मध्य आय वर्ग वाले देशों में सामने आते हैं।
भारतीय वैज्ञानिकों ने गठिया के मरीजों को दवा के साइड इफेक्ट से बचाने का नया तरीका खोजा है। दवा को सीधे दर्द और सूजन वाली जगह इंजेक्ट करने पर मरीजों में उल्टी, सिरदर्द जैसे साइड इफेक्ट नजर नहीं आए। साथ ही इसका असर भी लंबे समय तक रहा।
पंजाब की लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भूपिंदर कपूर ने इस पर रिसर्च की है। वो कहते हैं कि गठिया में आमतौर पर मरीजों को सल्फापायरीडाइन दवा दी जाती है। इसके कई साइडइफेक्ट होते हैं। दवा इंजेक्ट करने से वो सीधे दर्द वाले हिस्से तक पहुंचती है और यह तरीका सुरक्षित है।
उन्होंने बताया," सल्फापायरीडाइन गठिया की तीसरी सबसे पुरानी दवा है। लंबे समय तक इस दवा को लेने से चक्कर आना, पेट में दर्द, उल्टी होना, जी मिचलाना और स्किन पर चकत्ते पड़ने जैसे साइडइफेक्ट नजर आते हैं। दर्द वाली जगह पर दवा इंजेक्ट करने से यह शरीर में फैले बिना प्रभावित हिस्से को फायदा पहुंचाती है।इस नए तरीके का ट्रायल भी किया जा चुका है।"
असर नजर आया,सूजन कम हुई
रिसर्च के दौरान आर्थराइटिस से जूझ रहे चूहे को जब यह दवा नए तरीके से दी गई तो उसमें सूजन कम हुई। पता चला कि पुराने तरीके से दवा दिए जाने पर मेटाबॉलिज्म पर भी असर पड़ता है। मैटेरियल साइंस एंड इंजीनियरिंग-सी जर्नल में पब्लिश रिसर्च कहती है कि सल्फापायरीडाइन के मॉलीक्यूल शरीर में घुलने में काफी समय लेते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों ने इस दवा को इंजेक्शन की फॉर्म में तैयार किया। चूहे पर इसके इस्तेमाल से पता चला कि दवा का असर भी ज्यादा वक्त तक रहा और साइड इफेक्ट भी नजर नहीं आए।
रिसर्च टीम के मुताबिक, टीम ने इसका पेटेंट फाइल किया है। दवा का प्री-क्लीनिकल ट्रायल पूरा हो चुका है। ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया से मंजूरी मिलने पर यह दवा लोगों के लिए उपलब्ध कराई जा सकेगी। यह रिसर्च लुधियाना के फॉर्टिस हॉस्पिटल और जेएसएस कॉलेज ऑफ फार्मेसी, तमिलनाडु के साथ मिलकर की गई।
क्या होता है गठिया
हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. आदित्य पटेल के मुताबिक, गठिया दो तरह का होता है। पहला, ऑस्टियो आर्थराइटिस और दूसरा, रुमेटॉयड आर्थराइटिस। ऑस्टियो आर्थराइटिस बढ़ती उम्र वालों में ज्यादा होता है, जबकि रुमेटॉयड आर्थराइटिस कम उम्र में भी हो जाता है, यह अनुवांशिक होता है। करीब 20% यंगस्टर्स भी इससे परेशान हैं। घंटों एक ही स्थिति में बैठकर काम करना, बढ़ती धूम्रपान की आदत और तनाव इसकी बड़ी वजह हैं।
जोड़ों में अकड़न व सूजन, तेज दर्द, जोड़ों से तेज आवाज आना, उंगलियों या दूसरे हिस्से का मुड़ने लगना जैसे लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं। बीमारी की शुरुआत में जोड़ों में अकड़न के साथ दर्द होना शुरू होता है। कुछ समय बाद जोड़ों में तेज दर्द होने लगता है और सूजन आने लगती है।
अमेरिकी पीडियाट्रिक्स जर्नल में बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट पब्लिश हुई है। यहां यू-ट्यूब बच्चों को खाने से जुड़े 400 से ज्यादा ऐसे वीडियो दिखा रहा है, जिसमें उनके पसंदीदा शक्कर वाले पेय पदार्थ और जंक फूड के विज्ञापन हैं। इन विज्ञापन को देखकर बच्चे ऐसी चीजें खा रहे हैं जिससे उनमें तेजी से मोटापा बढ़ रहा है।
भारत में भी स्थिति कुछ ऐसी ही है। दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल की क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. आरती आनंद का कहना है कि बच्चे स्क्रीन पर जंक फूड वाले वीडियो देखने के बाद पेरेंट्स से खाने-पीने के लिए वही डिमांड करते हैं। बच्चों में यह आदत उम्र बढ़ने के साथ-साथ और तेजी से बढ़ती जाती है।
नामी कम्पनियां बच्चों को बना रहीं निशाना
चौंकाने वाली बात यह भी है कि इन वीडियो में दिखाए जाने वाले 90% विज्ञापन ऐसे हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक माने गए हैं। इनमें कई नामी कंपनियों के प्रोडक्ट और नामी ब्रांड शामिल हैं। इनमें दिखाए जाने वाले मिल्कशेक, फ्रेंच फ्राई, सॉफ्टड्रिंक्स, चीजबर्गर लाखों बच्चों की पसंद बन गए हैं। कोरोनाकाल में जब बच्चों के स्कूल्स बंद हैं और उनका स्क्रीन टाइम बढ़ गया है, तब ये नामी कंपनियां उन्हें अपना निशाना बना रही हैं।
80% पेरेंट्स ने भी माना बच्चे यूट्यूब देख रहे
स्टडी के मुताबिक, 11 साल तक की उम्र के बच्चों के 80% पैरेंट्स ने माना कि उनके बच्चे ज्यादातर यू-ट्यूब देखते हैं जबकि 35% पैरेंट्स ने माना कि उनके बच्चे केवल यू-ट्यूब ही देखते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह विज्ञापन ही नहीं बल्कि सेहत से जुड़ी एक बड़ी चिंता का भी मसला है। पिछले कुछ सालों में बच्चों में मोटापे की समस्या से तेजी से बढ़ी।
2 से 19 साल के अमेरिकी बच्चों में 20 फीसदी बच्चे मोटापे का शिकार हैं। जबकि 1970 के दशक में यह केवल 5.5% था। स्टडी में बताया गया है कि जंक फूड मार्केटिंग और बचपन में मोटापे की बीमारी के बीच बड़ा संबंध है।
सेहत पर खतरा लगातार बढ़ रहा
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थ एंड न्यूट्रीशियन की असिस्टेंट प्रोफेसर मैरी ब्रैग ने कहा कि जिस तरह से ये ब्रांडेड प्रोडक्ट बच्चों की जिंदगी में शामिल हो रहे हैं, उससे उनकी सेहत पर खतरा लगातार बढ़ रहा है। वे जितनी कैलोरी ले रहे हैं, उसकी तुलना में बर्न नहीं कर पा रहे।
बच्चे इन विज्ञापनों को देखकर जो खा रहे हैं वह सब हाई फैट, शुगर व सॉल्ट कैटेगरी में आते हैं। हालांकि, ये सामान्य खपत के आइटम हैं। इसलिए ये कैसे सुनिश्चित किया जाए कि बच्चों को इन विज्ञापनों को देखने से बाहर रखा जाए, यह आने वाले दिनों में एक बड़ा मुद्दा बनेगा।
वैज्ञानिकों ने ऐसे आई ड्रॉप की खोज की है जो नवजातों में अंधेपन की समस्या को दूर कर सकता है। इसकी वजह नाइसेरिया गोनोरोहिया नाम का बैक्टीरिया है जिस पर दवाओं का असर नहीं हो रहा। यह बैक्टीरिया संक्रमित मां से नवजात में पहुंचता है और अंधेपन का कारण बनता है।
आई ड्रॉप को तैयार करने वाली ब्रिटेन की किंग्सटन यूनिवर्सिटी का दावा है कि इससे आंखों में बैक्टीरिया के संक्रमण को ठीक किया जा सकता है। यह दवा नवजातों में जलन भी नहीं करती।
मां से बच्चे में फैलता है यह बैक्टीरिया
वैज्ञानिकों का कहना है, नाइसेरिया गोनोरोहिया नाम का बैक्टीरिया सेक्सुअल ट्रांसमिशन के दौरान पिता से मां में पहुंचता है और मां से यह नवजात में आता है। इस बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक दवाएं दिन-प्रतिदिन बेअसर साबित हो रही हैं। इसका असर नवजातों की आंखों पर पड़ रहा है। अगर इसके संक्रमण का इलाज नहीं होता है तो नवजात की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती है।
एंटीमाइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन सस्ता विकल्प
वैज्ञानिकों का कहना है, आई ड्रॉप में एंटी माइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन का प्रयोग किया है। लम्बे समय से इसका अध्ययन किया जा रहा था। रिसर्च के मुताबिक, एंटीमाइक्रोबियल एजेंट मोनोकाप्रिन बैक्टीरिया से लड़ने का सस्ता विकल्प है। दुनिया के किसी भी हिस्से में यह उपलब्ध कराया जा सकता है।
नई दवा के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना मुश्किल
रिसर्चर डॉ. लोरी सिंडर के मुताबिक, कई तरह के बैक्टीरिया पर एंटीबायोटिक्स बेअसर साबित हो रहे हैं। इसलिए इन्हें खत्म करने के लिए नए विकल्प का ढूंढा जाना जरूरी है। इसीलिए हमनें मोनोकाप्रिन का प्रयोग किया। बैक्टीरिया के लिए इस दवा के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करना मुश्किल होगा।
सर्दियां शुरू हो रही हैं। यह मौसम पहले से सांस के रोगियों के लिए खतरनाक माना जाता है क्योंकि प्रदूषण सीधेतौर पर सेहत पर असर डालता है। इस साल खतरा और भी ज्यादा है। कोरोना और सीजनल फ्लू हुआ तो लक्षण पहचानना मुश्किल होगा। सभी में सांस लेने में तकलीफ से जुड़े लक्षण दिखते हैं।
लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली के डॉ. तन्मय तालुकदार का कहना है कि कोरोना के मामले में बड़े देशों से तुलना करें तो भारत की स्थिति बेहतर है लेकिन यह समय सांस के मरीजों के लिए सबसे संवेदनशील है। इस दौरान उन्हें कई बातों का ध्यान रखने की जरूरत है। जानिए क्या करें और क्या न करें...
सर्दियों के मौसम में संक्रमण का कितना खतरा है?
प्रसार भारती से बातचीत में डॉ. तन्मय ने कहा, सर्दियों में हमें वायरस के साथ-साथ प्रदूषण से भी बचना है। ऐसा पाया गया है कि प्रदूषण के कारण वायरस से फैलने वाली बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सर्दियों में सांस से जुड़ी बीमारियां भी बढ़ती हैं।
डॉ. तन्मय के मुताबिक, सर्दियों में दमा के अटैक अधिक होते हैं, इसलिए दवाओं का खास ध्यान रखना है। अगर समय पर दवा नहीं ली और लक्षण आए, तो कंफ्यूजन होगा कि कहीं कोरोना तो नहीं। अगर ऐसे में कोविड हुआ तो परिवार के दूसरे सदस्यों को संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।
डॉ. तन्मय ने कहा, सर्दियों में सांस से जुड़ी बीमारियां अधिक होती हैं और उनके लक्षण काफी हद तक कोविड-19 के लक्षण से मिलते-जुलते हैं। इस समय सबसे कॉमन सीज़नल फ्लू होता है। इसके अलावा आम सर्दी-खांसी भी होती है। मास्क लगाना न छोड़ें।
ये बढ़ाते हैं ट्रिपल अटैक का खतरा
अक्टूबर से जनवरी तक मरीज बढ़ते हैं, अबकी चुनौती पहाड़-जैसी है
एक्सपर्ट कहते हैं, हर बार अक्टूबर से जनवरी तक अस्थमा, कार्डियक पेशेंट बढ़ जाते हैं। इस बार कोरोना से हालात ज्यादा चुनौतीपूर्ण हैं। लोगों को समझना होगा कि खतरा जानलेवा है। इस बार अलर्ट अधिक नहीं रहे तो ऐसे मरीजों में मौत का आंकड़ा बढ़ना तय है। इसलिए जरूरी है कि त्योहारों की खुशियां अपनों के बीच मनाएं। केवल एक साल पटाखे नहीं चलाने से खुशियां कम नहीं होंगी।
तम्बाकू का सेवन करने वालों में क्या बदलाव दिखे हैं?
डॉ. तन्मय के मुताबिक, कोरोनाकाल उनके लिए वरदान बनकर आया है, जो वाकई में तम्बाकू छोड़ना चाहते हैं। दरअसल लोगों और सिगरेट, बीड़ी, खैनी, गुटखा के बीच मास्क की दीवार आ गई है। बहुत लोग संक्रमण के डर से सेवन नहीं कर रहे हैं। तम्बाकू कितनी नुकसानदेह है, यह बताने की जरूरत नहीं। समय आ गया है कि इस बुरी आदत को हमेशा के लिए छोड़ दें।
डॉ. तन्मय ने कहा कि अब तक हम यह जान चुके हैं कि कोरोना के अधिकांश मरीज एसिम्प्टोमेटिक या माइल्ड लक्षण वाले होते हैं। जब वो स्मोकिंग करते हैं, तो थूक के सूक्ष्म कणों और धुएं के साथ वायरस हवा में फैलता है। स्मोकर्स को खांसी ज्यादा आती है तो उन्हें खुद भी नहीं पता चलता कि वे संक्रमित हैं। उनके साथ अगर कोई नॉन-स्मोकर भी खड़ा है तो वह संक्रमित हो सकता है।
अगर वायरस म्यूटेट हो गया तो क्या वैक्सीन पर कोई फर्क पड़ेगा?
इन्फ्लुएंजा वायरस में तेज़ी से म्यूटेशन होता है। इसे एंटीजेनिक शिफ्ट कहते हैं। अगर वायरस में छोटे-छोटे बदलाव होते हैं तो वैक्सीन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। कई बार वायरस के एंटीजेन शिफ्ट होने में 10 से अधिक वर्ष लग जाते हैं। कोविड-19 में इतना मेजर म्यूटेशन अभी नहीं हुआ है कि वैक्सीन का असर उस पर न हो।
© 2012 Conecting News | Designed by Template Trackers - Published By Gooyaabi Templates
All Rights Strictly Reserved.