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लंदन. इंग्लैंड में सात बड़े रिटेल स्टोर पर प्लास्टिक के बैग की खपत में 90 फीसदी की कमी आई है। देश में अगर सभी रिटेलर के आंकड़ों को देखें तो 2018-19 में सिंगल यूज प्लास्टिक बैग की खपत में पिछले साल की तुलना में 37 फीसदी कमी आई है। इन सात स्टोरों में 2015 में इन बैगों के लिए पांच पेंस कीमत रखे जाने से यह कमी आई है। इस शुल्क से अब तक करीब 1464 करोड़ रुपए (207 मिलियन डॉलर) चैरिटी के लिए भी मिले हैं।
केवल पिछले एक साल में ही एस्डा, मार्क्स एंड स्पेंसर, मॉरीसंस, सैंसबरी, द कोओपरेटिव ग्रुप, टेस्को और वेटरोज ने पहले साल के मुकाबले 4900 करोड़ कम प्लास्टिक के बैग बेचे। जो बैग बेचे गए उनसे इस साल 19 करोड़ रुपये चैरिटी के लिए मिले।
2014 में इन प्रमुख सुपर मार्केट में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष प्लास्टिक बैग की खपत 140 थी, जो अब घटकर सिर्फ 10 रह गई है। पर्यावरण सचिव थेरेसा विलियर्स ने नए आंकड़ों का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि प्लास्टिक वेस्ट को कम करने के हमारे प्रयास लगातार रंग ला रहे हैं। सिर्फ पांच सेंट का चार्ज लगाने से प्लास्टिक बैग की खपत में 90 फीसदी कमी आना उत्साहजनक है।
विलियर्स ने कहा कि प्लास्टिक से हमारे पर्यावरण और वाइल्डलाइफ को हो रहे नुकसान को अब कोई नहीं देखना चाहता। इन आंकड़ों से साबित है कि अब हम सामूहिक तौर पर इससे बचने के लिए कदम बढ़ा रहे हैं। ब्रिटेन सरकार ने इसके अलावा भी प्लास्टिक वेस्ट को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं।
पिछले साल जनवरी में सरकार ने कॉस्मेटिक और टूथपेस्ट में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक के माइक्रोबेड्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके अलावा हाल ही में प्लास्टिक की स्ट्रॉ और कॉटन बड सहित अनेक चीजों पर रोक की पुष्टि कर दी है। यह प्रतिबंध अगले साल अप्रैल से पूरी तरह प्रभावी हो जाएगा।
ब्रिटेन ने अप्रैल 2022 से ऐसी प्लास्टिक पैकेजिंग पर टैक्स लगाने की तैयारी कर ली है, जिसमें 30 फीसदी से कम रीसाइकिल होने योग्य सामग्री का इस्तेमाल नहीं होगा। इस मामले पर बहस जारी है, लेकिन सरकार का कहना है कि रीसाइकिल सामान को बढ़ावा देने के लिए ऐसा करना आवश्यक है।
नोएडा. 1250 किलोग्रामप्लास्टिक कचरेसे बने दुनिया के सबसे बड़े चरखे का मंगलवार सुबहअनावरण किया गया।उत्तर प्रदेश के नोएडा प्राधिकरण नेइसे बनाया है। यह 14 फीट लंबा और 8 फीट चौड़ा है। कुल 1650 किलो वजनी चरखे को नोएडा केसेक्टर-94 स्थित महामाया फ्लाईओवर के पास ग्रीन एरिया में लगाया गया है।
नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों के मुताबिक, चरखा गांधीजी के सपने स्वदेशी का प्रतीक है।प्राधिकरण की सीईओ रितु महेश्वरी ने कहा, यह लोगों में प्लास्टिक के सही उपयोग के प्रति जागरुकता लाने के लिए है।
महाराष्ट्र के नासिक में सबसे बड़ा धातु शिल्प आर्ट (इल्यूजन स्कल्पचर आर्ट) तैयार किया गया है। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर इसका लोकार्पण किया जाएगा। दावा है किभारत में पहली बार शिल्प धातु से इस प्रकार का स्कल्पचर तैयार किया गया है। इसे 6 माह में बनाया गया है। इसे एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स और इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है।
ओसाका. जापान में बीते 20 सितंबर से रग्बी वर्ल्ड कप शुरू हो चुका है। यह दो नवंबर तक चलना है। रग्बी को लेकर यूरोपीय देशों में जबरदस्त क्रेज रहता है। इसकी मिसाल बने हैं लंदन के दो दोस्त- जेम्स ओवंस और रोन रुटलैंड। जेम्स और रोन रग्बी के बड़े फैन हैं और वर्ल्ड कप देखने के लिए लंदन से जापान पहुंचे हैं। दोनों का ये सफर बड़ा दिलचस्प रहा है।
जेम्स और रोन ने करीब 20,093 किमी का ये सफर साइकल से तय किया। 230 दिन का सफर तय करके दोनों लंदन से जापान पहुंचे और इस दौरान कुल 27 देशों से होकर गुजरे। सफर के दौरान जेम्स और रोन ने फंड रेजिंग कर करीब 59 लाख रुपए इकट्ठा किए। अब ये पैसा बच्चों की पढ़ाई के लिए डोनेट करेंगे।
यह हमारे कोच के लिए बड़ी जीत
जेम्स कहते हैं, ‘‘शुरुआती दिनों में हमें साइक्लिंग और फिटनेस की अहमियत समझाने वाले हमारे कोच के लिए ये सबसे बड़ी जीत है। हम नहीं चाहते थे कि हमारी ये मेहनत बस हम दोनों तक ही सिमट कर रह जाए, इसीलिए इस काम को एक नेक मकसद से जोड़ने का फैसला लिया। फंड जुटाया और अब इसे बच्चों के लिए डोनेट करेंगे। इससे हमारे पसंदीदा खेल रग्बी का भी प्रचार हो रहा है।’’
फरवरी में लंदन से निकले सितंबर में जापान पहुंचे
जेम्स और रोन फरवरी में लंदन से इस सफर पर निकले थे। अब सितंबर में वे जापान पहुंचे हैं। जेम्स के पिता, रोनी के परिवार के डॉक्टर हैं। इस तरह से रोनी की जेम्स से दोस्ती हुई। वहीं वर्ल्ड कप में सोमवार को खेले गए मैच में स्कॉटलैंड ने सामोआ को 34-0 से हरा दिया।
एजुकेशन डेस्क. 2 अक्टूबर को गांधीजी की 150वीं जयंती मनाई जाएगी। ऐसे में भास्कर ने जाना कि गांधीजी के विचारों और इससे संबंधित विषयों को पढ़ने के ट्रेंड में पिछले कुछ सालों मेंं क्या बदलाव आया है। यूजीसी के दस्तावेजों के अनुसार पिछले चार साल में अंडर ग्रेजुएट कोर्स में तो गांधी विषयों में स्नातक करने वाले 32% बढ़े हैं, लेकिन एमफिल करने वाले 19% घटे हैं। पोस्ट ग्रेजुएशन करने वालों की संख्या में भी करीब 6.5% की गिरावट आई है। दूसरी तरफ अभी देश के किसी भी विश्वविद्यालय में गांधीजी के नाम की चेयर (प्रोफेसर के बराबर का पद) नहीं है। पत्रकार कृतिका शर्मा की आरटीआई के मुताबिक यूजीसी ने गांधीजी के नाम की चेयर बनाने के लिए विश्वविद्यालयों को कहा था लेकिन किसी भी विवि ने यह चेयर स्थापित नहीं की है। भास्कर सेइस बात की पुष्टि स्वयं यूजीसी सेक्रेट्ररी रजनीश जैन नेभी की है। जबकि राजीव गांधी, अबुल कलाम आजाद, स्वामी विवेकानंद जैसेछह हस्तियों केनाम सेचेयर स्थापित हुई हैं।
गांधी रिसर्च का बड़ा रिफ्रेंस सेंटर माना जानेवाले दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान केचेयरमैन कुमार प्रशांत ने बताया कि गांधी आधारित लिखने-पढ़ने के ट्रेंड में बदलाव आया है। इसे तीन तरीके से बांट सकते हैं। 21वीं सदी के पहले 60 साल की उम्र के लोग गांधी पर शोध, किताब लिखने के लिए आते थे जो बेहद गंभीर विषयाें पर ही लिखते थे। इसके बाद 21 वीं सदी से लेकर 2014 तक लोग संस्थागत रिसर्च पर ज्यादा जोर देने लगे। अब 30 साल की उम्र तक के लोग गांधी पर लिखते-पढ़ते हैं। जो प्रैक्टिकल विषयों का चुनाव करते हैं। हमारे यहां से गांधी मार्ग पत्रिका हर दो माह में निकलती है। इसके सबसे ज्यादा सब्सक्रिप्शन अब हुए हैं। 2000 से 2014 तक हमारे पास लोगों के पत्र आते थे कि ये पत्रिका बंद कर दीजिए क्योंकि इसे पढ़ने वाले उनके पिता या दादा अब नहीं रहे। 2014 के बाद से अचानक इसकी डिमांड बढ़नी शुरू हो गई।
लोग हमें पत्र लिखकर बताते हैं कि मेरी नौकरी, पत्नी से खटपट, बेटे की पढ़ाई, मां-बाप से अनबन, दोस्तों से बैर जैसी व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान गांधी को पढ़ने से मिला है। अब गांधी समाज और राजनीति की राह ही नहीं दिखाते लोगों का घर संवार रहे हैं। इसके अलावा प्रशांत ने रोचक किस्सा बताया कि गांधी ने पानी के जहाज पर बैठकर हिन्द स्वराज किताब लिखी। इस किताब को अलग-अलग आयामों से आज भी विवेचित किया जा रहा है। अभी तक इस पर 100 से ज्यादा किताबें लिखी जा चुकी हैं।
धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया (हेल्थ डेस्क). देशभर में मोदी सरकार द्वारा 2 अक्टूबर से सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध की चर्चा है। देश में वर्तमान में करीब 23 राज्यों ने अपने स्तर पर सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध की घोषणाएं की हैं। जिसके कारण प्लास्टिक का उपयोग घट रहा है।
इंडस्ट्री चैम्बर एसोचैम और ईवाय की हाल ही में आई रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल मांग का करीब 45 फीसदी यानी करीब 90 लाख टन प्लास्टिक का तुरंत उपयोग करके हम फेंक देते हैं। इसमें बोतल, स्ट्रॉ, गिलास, गुटखा पाउच, पन्नी, कटलरी आदि शामिल हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की स्वाति सिंह साम्याल कहती हैं कि हमारे सर्वे में यह सामने आया है कि बड़े नगरीय निकायों में इकट्ठा होने वाले कचरे में 15-20% तक प्लास्टिक होता है।
बेहतर कचरा प्रबंधन न होने के कारण समस्या और बढ़ गई है। हमारे यहां कचरे को अलग-अलग रखना आरंभिक चरणों में है और अभी गीला-सूखा और अन्य कचरा ही अलग नहीं हो पा रहा है, इसलिए भी दिक्कतें हैं। रीसाइकिलिंग बढ़ानी होगी। वेस्ट मैनेजमेंट क्षेत्र में कार्य करने वाले साहस की सीईओ दिव्या तिवारी कहती हैं कि केंद्र सरकार ने अभी तक किन आयटम को बैन किया है, यह सामने नहीं आया है।
1. देश में अभी कितना प्लास्टिक कचरा निकल रहा है?
भारत में प्रतिदिन 25 हजार मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है। इसमें से 94% हिस्सा ऐसे प्लास्टिक का होता है जो रीसाइकिल हो सकता है, लेकिन इसमें 40% प्लास्टिक ड्रेनेज और नदियों को चोक कर देता है।
2. तो इससे परेशानी क्या है?
फिक्की के अनुसार वर्ष 2021 तक प्रति वर्ष 110 मिलियन टन और 2041 तक 200 मिलियन टन कचरा निकलने का अनुमान है। सीएसई की प्रोग्राम मैनेजर स्वाति सिंह कहती हैं कि एक अनुमान के मुताबिक देश में हर गाय के पेट में 30 किलो प्लास्टिक है। कछुए व मछलियां भी इससे परेशान हैं।
3. क्या इससे सिर्फ जानवर परेशान हैं?
नहीं इंसान खुद भी इस खतरे से बच नहीं पाया है। जर्नल इन्वॉयरमेंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने 26 अध्ययनों के डेटा के आधार पर बताया है कि इंसान हर साल प्लास्टिक के करीब 50 हजार पार्टिकल खा जाता है।
4. क्या हम प्लास्टिक का इस्तेमाल बहुत ज्यादा कर रहे हैं?
हां, बिल्कुल। यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल; कंटेनर रिसायक्लिंग इंस्टिट्यूट के अनुसार दुनियाभर में हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक बॉटल बिकती हैं। दुनिया में आज तक जितना प्लास्टिक बना है, उसका करीब आधा प्लास्टिक हमने पिछले करीब 20 साल में बना लिया है। हर साल दुनियाभर में 500 अरब प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल होता है।
5. सिंगल यूज प्लास्टिक का क्या?
ये बेहद खतरनाक चीज है। केरल में प्रतिदिन 33 लाख प्लास्टिक स्ट्रॉ का इस्तेमाल होता है। अकेले अमेरिका में प्रतिदिन 85 लाख प्लास्टिक स्ट्रॉ का इस्तेमाल हो रहा था। अब कंपनियां इसे खत्म कर रही हैं। भारत में प्लास्टिक के ईयर बड की इंडस्ट्री ही 50 करोड़ रु. की हो गई है।
6. हम ज्यादा चिंता क्यों करें?
नेशनल जियोग्राफिक के अनुसार दुनिया में बन रहे कुल प्लास्टिक में आधा उत्पादन एशिया में ही हो रहा है। इसमें सर्वाधिक हिस्सेदारी चीन की है। चीन 29 फीसदी प्लास्टिक का उत्पादन करता है। ईवाय की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वर्ष 2017 में प्रति व्यक्ति औसतन 11 किलो प्लास्टिक की खपत होने का अनुमान था।
7. दुनिया की क्या स्थिति है? वर्ल्डइकॉनामिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) केअनुसार दुनियाभर में प्लास्टिक का उपयोग 8.3 अरब टन पहुंच चुका है। यह आठ लाख एफिल टॉवर बनानेकेबराबर है। करीब 90 फीसदी प्लास्टिक कचरा समुद्र मेंपहुंचता है। वर्ष 2014 से विश्व केकरीब 50 देशों नेइसके उपयोग को कम करनेके लिए कदम उठाए हैं।
सिंगल यूज प्लास्टिक बैन का नौकरियों पर क्या असर पड़ेगा?
प्लास्टिक उद्योग से जुड़े कारोबारियों केअनुसार देश मेंकरीब 50 हजार प्लास्टिक संंबंधित निर्माण कंपनियां हैं जिसमेंसे90 फीसदी छोटी यूनिट्स (एमएसएमई) हैं। सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन अमल में आता हैतो करीब 7 से10 हजार प्लास्टिक निर्माण इकाइयों पर असर पड़ेगा। साथ ही चार सेपांच लाख लोगों को रोजगार सेहाथ धोना पड़ेगा।
बेंगलुरु. इंफोसिस कंपनी की पूर्व कर्मचारी अवनीत मक्कर की बेटी को गणित से डर लगता था। इस समस्या से निपटने के लिए अवनीत ने विशेषज्ञों के साथ मिलकर बी गैलिलियो ऐप बनाया। अब चेन्नई, बेंगलुरू, मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में 2500 महिलाओं की टीम इस ऐप के जरिए गणित को आसान बना रही हैं।
अवनीत ने ऐप बनाने के लिए आईटी प्रोफेशनल्स, शिक्षाविद, शिक्षकों और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस साइंटिस्ट्स से बात की। इन लोगों ने गणित को पढ़ाने के उन तरीकों पर विचार किया, जिससे बच्चे पढ़ने में रुचि लें। बच्चों का इस विषय से डर भागे।
गणित के 300 कंसेप्ट को कवर करता
अवनीत ने ऐप बनाने के लिए नौकरी भी छोड़ी। उनके मुताबिक, बी गैलिलियो ऐप पहली क्लास से दसवीं तक के छात्रों के लिए बनाया गया है। यह प्रोग्राम आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए अलग-अलग बच्चे की सीखने की क्षमता को पहचानाता है। वह यह जानने की कोशिश करता है कि बच्चा गणित को समझते समय किन कठिनाइयों को सामना कर रहा है। इसी आधार पर अलग-अलग बच्चे के लिए लिए सटीक समाधान भी सुझाता है। यह गणित के 300 कंसेप्ट को कवर करता है।
गेमिंग स्टाइल बच्चों को बोर नहीं करता
प्रोग्राम की गेमिंग स्टाइल के कारण बच्चे नहीं ऊबते। देशभर में आज करीब 600 बी गैलिलियो टीचिंग सेंटर हैं। इन्हें ज्यादातर वे महिलाएं चला रही हैं, जिन्हें कभी अपने बच्चों की देखभाल के लिए नौकरी छोड़नी पड़ी थी। इनका चयन भी बेसिक मैथ्स टेस्ट लेकर किया गया। ये बच्चों को रोजाना दो घंटे ट्रेनिंग देती हैं।
हेल्थ डेस्क. दिल को तंदरुस्त रखने के लिए ऐसी कौन सी आदतें हैं जो सीधे तौर पर इसे फायदा पहुंचाती हैं। इसे भास्कर ने देश के 4 बड़े हृदय रोग विशेषज्ञों से जाना। जानिए दिल को तंदरुस्त रखने के 10 आसान तरीके..
- डॉ. नरेश त्रेहान, कार्डियो सर्जन चेयरमैन, मेदांता ग्रुप, गुड़गांव
- डॉ. रमाकांत पांडा, कार्डियोवैस्कुलर थोरोसिक सर्जन, एमडी, एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट, मुंबई
- डॉ. एन.एन. खन्ना, सीनियर कंसल्टेंट (ICVI), इंद्रप्रस्थ अपोलो, नई दिल्ली
- डॉ. विजय डीसिल्वा, कार्डियोलॉजिस्ट एंड मेडिकल डायरेक्टर
, एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट, मुंबई
-डॉ. इदरिस अहमद खान, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट
बॉम्बे हॉस्पिटल, इंदौर
हेल्थ डेस्क (शमी कुरैशी). नई दिल्ली के सफदरजंग एनक्लेव का बंगला नंबर-132..। यहां रहती हैं वह शख्सियत जिन्हें कार्डियोलॉजी का लीजेंड कहा जाता है। 102 उम्र हो चुकी है, पर अब भी सक्रिय। ऊंचा सुनती हैं, धीमा बोलती हैं, लेकिन याददाश्त तेज। घने बाल, मजबूत दांत और तमाम बीमारियों से दूर। बात हो रही है देश की पहली और सबसे बुजुर्ग कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती की।
उनकी सेहतमंद जिंदगी का राज है समय प्रबंधन। जागना-सोना, खाना, व्यायाम, काम और पढ़ाई सबका वक्त छात्र जीवन से तय है। उन्हें रिटायर हुए 42 बरस बीत गए, लेकिन गंभीर मरीजों को अब भी वक्त देती हैं। लक्षणों से बीमारी पकड़ती हैं। न ज्यादा दवाएं लिखती हैं, न बहुत जांचें करवाती हैं। अपडेट रहने के लिए मेडिकल साइंस से जुड़ी किताबें भी पढ़ती हैं।
उन्होंने एक किताब खुद पर भी लिखी है- माय लाइफ एंड मेडिसिन। हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, बर्मी, तेलुगु, मलयालम, जर्मनी और फ्रेंच भाषा बोल लेने वाली डॉ. पद्मावती के शिष्य और मरीज दुनियाभर में मिल जाएंगे। जब वे प्रैक्टिस करती थीं, तब मरीजों को महीनों तक इंतजार करना पड़ता था।
इस उम्र में वे डायबिटीज व ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से दूर हैं। इसकी वजह वे खुश और हमेशा व्यस्त रहना भी मानती हैं। उन्हें अच्छी सेहत बनाए रखने का जुनून ऐसा था कि करीब 95 साल की उम्र तक तो नियमित तैराकी करती रहीं। भले ही रात को अस्पताल में देर हो जाए, लेकिन तैराकी मिस नहीं करती थीं। सहारे से चहलकदमी आज भी करती हैं। वे अपनी लंबी आयु का कारण अानुवंशिकता भी मानती हैं। कहती हैं, मेरी मम्मी 104 वर्ष तक जीवित रही थीं।
स्वस्थ रहने के 3 सूत्र
1. हमेशा हल्का खाना खाएं।
2. शरीर के लिए आराम जरूरी है।
3. बहुत जरूरी होने पर ही दवाएं लें।
डॉ. पद्मावती ने अपने कमरे में अमेरिकन कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. पॉल डुडले व्हाइट की तस्वीर लगा रखी है। वे कहती हैं कि ये मेरे गुरु हैं, इन्हीं से मैंने सीखा है। इसके अलावा इस फील्ड में आने का श्रेय वे बर्मा के डॉक्टर लाइशंचीज को देती हैं, जिनसे प्रभावित होकर वे कार्डियोलॉजिस्ट बनीं।
डॉ. शिवरामकृष्ण अय्यर पद्मावती का जन्म 20 जून 1917 को बर्मा (अब म्यांमार)में हुआ। रंगून मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस, लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियंस से एफआरसीपी और इडिनबर्ग के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियंस से एफआरसीपीई की डिग्री हासिल करने के बाद वह दिल्ली आ गईं। उन्होंने 1953 मेें दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में व्याख्याता के रूप में कॅरिअर शुरू किया। इसके बाद 1954 में भारत की पहली महिला हृदय रोग विशेषज्ञ बनीं। सराहनीय सेवाओं के लिए उन्हें 1992 में पद्म विभूषण से नवाजा गया। उत्तर भारत में पहले कार्डियक क्लिनिक और कार्डियक कैथ लैब की स्थापना का श्रेय भी उन्हें ही जाता है। वह राष्ट्रीय हार्ट संस्थान, दिल्ली की चीफ कंसलटेंट और ऑल इंडिया हार्ट फाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष हैं। अस्पताल के वार्डों के चक्कर लगाकर मरीजों का हाल-चाल जानने का उनका दशकों पुराना रूटीन बरकरार है।
हेल्थ डेस्क. दिल की बीमारियों से अब इंसान और दवाएं ही नहीं तकनीक भी लड़ रही है। जो भविष्य में होने वाले हार्ट अटैक की जानकारी दे रही है। थी-डी प्रिंटिंग हार्ट से ट्रांसप्लांट के लिए लगी कतार को कम करने की कोशिश जारी है। इतना ही नहीं, सर्च इंजन गूगल भी आंखों के जरिए हृदय रोगियों को पहले ही आगाह करने की तैयार कर रहा है। वर्ल्ड हार्ट डे पर जानिए तकनीक आपको हृदय रोगों से बचाने के लिए कितना काम कर रही है और कितना फायदेमंद साबित होगी...
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की मदद से ऐसी तकनीक का विकास कर लिया है जो पांच साल पहले ही हार्ट अटैक के संभावित खतरे के बारे में बता देगी। इस तकनीक में एक बायोमार्कर फिंगरप्रिंट का विकास किया गया है जिसे फैट रेडियोमिक प्रोफाइल (एफआरपी) नाम दिया गया है। एफआरपी, रक्त धमनियों में मौजूद फैट का जेनेटिक एनालिसिस कर भविष्य में पैदा होने वाले खतरों को चिह्नित करेगा। इससे इस बात का पता चल सकेगा कि व्यक्ति को भविष्य में हार्ट अटैक का खतरा हो सकता है या नहीं।
इजरायल में तेल अवीव यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं को 3डी प्रिंटर के जरिए ऐसा मिनी दिल तैयार करने में सफलता मिली है, जोहबह वैसा ही है जो किसी प्राणी का होता है। इसके निर्माण में मानव की कोशिकाओं और बायोलॉजिकल सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इसका आकार अभी सिर्फ 2.5 सेंटीमीटर है। इंसानों के दिल का आकार लगभग 12 सेंटीमीटर होता है। भविष्य में इस आकार के दिल को प्रिंट करने की तैयारी चल रही है। इससे पहले भी कृत्रिम दिल बनाए गए हैं, लेकिन ये हृदय साधारण ऊतकों (टिशूज) से बनाए गए थे और उनमें रक्त धमनियां भी नहीं थीं।
अमेरिका के मैसाचुसेट्स में ई-जेनेसिस स्टार्टअप के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग के जरिए ऐसे पिग्स (सुअर) पैदा करने की योजना पर काम चल रहा है जिनके अंग (दिल भी शामिल) आसानी से मानव में प्रत्यारोपित किए जा सकें। ऐसा होने पर दिल के रोगों से होने वाली एक तिहाई मौतों को कम किया जा सकेगा। मानव शरीर में जानवरों के दिल के प्रत्यारोपण को लेकर शोधकार्य सालों से चल रहे हैं। लेकिन इसमें सफलता इसलिए नहीं मिल पा रही है, क्योंकि मनुष्य और जानवर के दिल में बुनियादी अंतर होते हैं। इसीलिए अब जानवरों को ही मानव के अंगों के अनुसार ढालने पर काम करने की योजना है।
गूगल ऐसी योजना पर काम कर रहा है जिसमें आंखों में झांकने भर से इस बात का पता चल सकेगा कि आने वाले सालों में व्यक्ति को दिल की बीमारी हो सकती है या नहीं। इस योजना में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग का इस्तेमाल हो रहा है। इसमें रेटिना की तस्वीरों के जरिए व्यक्ति की उम्र, ब्लड प्रेशर और बॉडी मास इंडेक्स का तो पता चलेगा ही, इस बात की भी जानकारी हो सकेगी कि दिल के लिए घातक आदतों (जैसे पांच साल पहले ही इस बात की भविष्यवाणी कर सकेगा कि धूम्रपान) से उसके दिल को कितना खतरा हो सकता है। ऐसी ही व्यक्ति को हार्ट अटैक होने की कितनी आशंका होगी। करीब कई जानकारियों के आधार पर गूगल का डीप लर्निंग एल्गोरिद्म 3 लाख मरीजों पर इसका सफल ट्रायल भी हो चुका है।
इसे अमेरिका की रेपथा कंपनी ने बनाया है। इसमें इवोलोक्यूमैब मूल दवा है जो कोलेस्ट्रॉल को कम करने का काम करती है। यह उन मरीजों के लिए उपयोगी होगा जिनका LDL (खराब कोलेस्ट्रॉल) काफी बढ़ा होता है और दवाइयों से काबू में नहीं आता।
रोचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में वैज्ञानिक निकोलस कॉन ने ऐसा उपकरण बनाया है जो टॉयलेट सीट में फिट किया जाएगा। इसमें लगे सेंसर्स मरीजों की जांघ के पिछले हिस्से में ब्लड ऑक्सिजीनेशन को मापकर उसके दिल की सूचना एकत्र करेंगे।
यह नवीनतम पेसमेकर है। आम पेसमेकर की तुलना में यह 90% छोटा व कैप्सूल के आकार का है। इसकी खासियत है कि इसमें कोई लीड नहीं है जो सामान्य पेसमेकर में होती है। इसीलिए इसे लीडलेस पेसमेकर नाम दिया गया है। सीधे हृदय में लगाना संभव है।
यह एआई युक्त उपकरण गले में लगेगा। यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉयस के शोधकर्ताओं द्वारा बनाया यह उपकरण शरीर के अंदर होने वाली गतिविधियां रिकॉर्ड करेगा। दिल में होने वाली हलचल भी रिकॉर्ड हो सकेगी। इसका इस्तेमाल टेली मेडिसिन में किया जा सकेगा।
अजय दुबे (हेल्थ डेस्क). अक्सर लोग हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट में फर्क नहीं कर पाते। मरीज को दूसरा जीवन देने वाली सीपीआर तकनीक को नहीं जानते। कैसे समझें कि हृदय स्वस्थ है या नहीं, ऐसे तमाम सवालों के जवाब दे रहे हैं एक्सपर्ट।
हार्ट अटैक से बहुत अलग और घातक है कार्डिएक अरेस्ट। अधिकांश लोग दोनों को एक ही मानते हैं, लेकिन इनमें अंतर है। जब दिल की धड़कन रुक जाती है और वह शरीर के बाकी हिस्सों को रक्त की आपूर्ति नहीं कर पाता है तो उस स्थिति को कार्डिएक अरेस्ट कहा जाता है।
जब दिल तक रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में कोई बाधा आती है, तब हार्ट अटैक होता है। धमनियों में एकाएक क्लाट जमने से 100% अवरुद्ध होने से हार्ट अटैक होता है।
क्या होता है? : सीने में दर्द या सीने का भारी होना। इसका सबसे सामान्य लक्षण है। इसके अलावा सांस फूलना, पसीना आना, उल्टी होना अन्य लक्षण हैं। ये लक्षण तुरंत या कुछ घंटों बाद भी सामने आते हैं।
क्या है वजह? : खराब जीवनशैली इसकी सबसे बड़ी वजह है। खान-पान में अनियमितता, कम सक्रिय रहना और कम नींद लेने जैसे कई कारण इसके लिए जिम्मेदार होते हैं।
क्या है इलाज? : तुरंत स्प्रिन की दो गोलियां दी जाएं। इसके बाद ECG के माध्यम से डायग्नोसिस किया जाता है। बंद धमनियों को दवा से खोला जाता है। जरूरत पड़ने पर स्टेंट का उपयोग।
यह जीवन रक्षक तकनीक है। इसमें मरीज के सीने के बायीं ओर एक हथेली पर दूसरी हथेली रखकर प्रेशर दिया जाता है (लगभग 100 प्रति मिनट)। इसके अलावा मरीज की नाक बंद कर मुंह से भी सांस दी जाती है।
हमारा दिल तंदुरुस्त है या नहीं, क्या हम खुद भी जांच सकते हैं? दिल को तंदुरुस्त रखने में धड़कनों की भी भूमिका होती है। इसको जांचने के लिए डॉ. सुब्रतो मण्डल कार्डियोलॉजिस्ट, भोपाल बता रहे हैं एक वैज्ञानिक फॉर्मूला-
पहला चरण : पहले आराम से 5 मिनट बैठें। अब अपने दाएं हाथ से बाएं हाथ की कलाई को पकड़ें और कलाई पर धड़कन को महसूस करें। धड़कन की स्टॉप वॉच से एक मिनट तक गिनती करें। अगर धड़कन 60-100 के बीच है तो मतलब आपका दिल स्वस्थ है। लेकिन इतना काफी नहीं है। दूसरे चरण में आगे की जांच करें।
दूसरा चरण : पहले चरण के अनुसार अपनी धड़कन जांचें और इसे पेपर पर लिख लें। इसके बाद 45 सेकंड तक उठक-बैठक करें। इसके तुरंत बाद खड़े-खड़े ही अपनी धड़कन जांचें। इसे भी पेपर पर लिखें। अब कहीं बैठ जाएं और एक मिनट के बाद फिर से धड़कन की गिनती करें और पेपर पर लिखें। तीनों नंबर जोड़ें और इसमें से 200 घटाएं। प्राप्तांक में 10 से भाग दें।
इसे राजेश के उदाहरण से समझते हैं
राजेश ने पहली जांच की जिसमें धड़कन आई 72
दूसरी जांच में 112
तीसरी जांच में 80 आई
यानी
72 + 112 + 80 = 264
अब इसमें से 200 घटाएं
264 - 200 = 64
फिर इसमें 10 से भाग दें
64 / 10 = 6.4
नतीजा : राजेश का दिल ठीक है। हालांकि उसे जीवनशैली को मेंटेन करने की जरूरत है।
परिणाम
यदि आपको हृदय संबंधी कोई समस्या नहीं भी है, तब भी कुछ टेस्ट ऐसे हैं, जो समय-समय पर आपको करवाने चाहिए। यह भविष्य में होने वाली किसी अप्रिय स्थिति से प्रति आगाह करेंगे।
उम्र : 20 से 30
1. ब्लड प्रेशर
2. कोलेस्ट्रॉल
3. लिपिड प्रोफाइल
4. डायबिटीज
ये जांचें2-3 साल के अंतर से करवाएं।
उम्र 30 से 40
1. ईको
2. टीएमटी
3. 20 से 30 आयु वर्ग में कराई गईं सभी जांचें जैसे बीपी, कोलेस्ट्रॉल, लिपिड प्रोफाइल, डायबिटीज।
उम्र 40 से 50
1. कोरिनरी सीटी एंजियोग्राफी
2. 20 से 40 आयु वर्ग में कराई गईं सभी प्रकार की जाचें जैसे ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, लिपिड प्रोफाइल, डायबिटीज, ईको, टीएमटी।
उम्र 50 से 60
20 से 50 साल में कराई गईं सभी जांचें जैसे ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, लिपिड प्रोफाइल, डायबिटीज, ईको, टीएमटी और कोरिनरी सीटी एंजियोग्राफी बीच-बीच में डॉक्टर की सलाह पर करवाते रहें।
दिल से जुड़ी गंभीर बीमारियों के लक्षण हमेशा ही हमारे सामने होते हैं, लेकिन हम उन्हें किसी दूसरी बीमारी से जोड़कर देखने लगते हैं। ऐसे में सही समय पर इलाज नहीं शुरू हो पाता...
1. यूरिन में झाग
समझ लेते हैं : किडनी की बीमारी
सच यह है - कई बार दिल से जुड़ी बीमारी होने पर भी पेशाब में कई हरकत होने लगती है। यूरिन में झाग बनने का इशारा कई बार हृदय की ओर भी होता है। यूरिन में प्रोटीन की ज्यादा मात्रा होने के कारण स्ट्रोक के चांस भी ज्यादा होते हैं।
2. दांतों में दर्द
समझ लेते हैं : ओरल इन्फेक्शन
सच यह है - ओरल इन्फेक्शन के बैक्टीरिया हृदय रोगों का कारण भी होते हैं। जब दांत खराब होते हैं या मसूड़ों में सूजन होती है तो धमनियां सुकड़ जाती हैं। ये धमनियों में प्लाक बना देते हैं। यह समस्या महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है।
3. गर्दन या पीठ का दर्द
समझ लेते हैं : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइसिस
सच यह है - कई बार यह भी दिल की बीमारी का संकेत होता है। इस तरह के दर्द को ‘रेडीएटिंग’ कहते हैं। लगातार बने रहने वाला यह दर्द अचानक उठता है। इसके लिए किसी चोट का या व्यायाम का जिम्मेदार होना जरूरी नहीं है।
4. चक्कर और थकान
समझ लेते हैं : कमजोरी या डीहाइड्रेशन
सच यह है - इस तरह के लक्षण हृदयाघात के भी हो सकते हैं। इसमें खासतौर से बिना किसी मेहनत के भी थकान बनी रहती है। खासतौर से महिलाओं में दिल संबंधी समस्या होने पर थकान ज्यादा होती है।
5. पैरों में सूजन
समझ लेते हैं : किडनी में परेशानी
सच यह है - अगर आपका दिल ठीक तरह से काम नहीं कर रहा है, तो भी इस तरह के लक्षण देखने को मिलते हैं। शरीर में फैट जमा होने के चलते सूजन होती है। ऐसा होने पर अक्सर व्यक्ति को भूख नहीं लगती और बिना खाना खाए भी पेट बेहद भारी लगता है।
6. खर्राटे
समझ लेते हैं : साइनस की समस्या
सच यह है - इसे ‘स्लीप एप्निया’ कहा जाता है। ऐसे वक्त में खर्राटों की आवाज सामान्य से अलग आने लगती है। ऐसा होने पर दिल पर स्ट्रेस ज्यादा पड़ता है और उसके कमजोर होने की संभावना बढ़ती जाती है।
7. सांस लेने में परेशानी
समझ लेते हैं : अस्थमा
सच यह है - कई बार हृदयघात के दौरान लोगों को सीने में दबाव और दर्द की शिकायत नहीं की बजाय सांस उखड़ने लगती है। एक्सरसाइज या यौन संबंधों के दौरान भी सांस का जल्दी भरने लगता दिल से जुड़ी बीमारी के लक्षण होते हैं।
8. बहुत पसीना
समझ लेते हैं : हाइपरहाइड्रोसिस
सच यह है - स्वैट ग्लैंड में गड़बड़ी, स्ट्रेस, हार्मोनल बदलाव, मसालेदार खाना, दवाओं का अत्यधिक सेवन, मौसम और मोटापा
सच क्या है : अक्सर इसकी वजह स्वैट ग्लैंड में गड़बड़ी, स्ट्रेस, हार्मोनल बदलाव, मसालेदार खाना, अधिक दवाएं, मौसम और मोटापे को मान लिया जाता है। लेकिन ठंडे वातावरण में पसीना आना भी हृदयाघात का एक लक्षण है।
9. सीने में दर्द
समझ लेते हैं : एसिडिटी या गैस
सच यह है - सीने में दर्द कई की वजह ‘ब्रेस्टब्रोन’ भी होता है। इसमें सीने के मध्य से बांई ओर दर्द बढ़ता है। ऐसे में पाचन क्रिया में गड़बड़ी अथवा पेट में अक्सर दर्द का बने रहना भी होता है। यह सबसे पहले भूख पर असर करता है।
हिसार.हरियाणा की बेटी पर्वतारोही अनिता कुंडू ने एक बार फिर इतिहास रचा है। उन्होंने नेपाल की 26,781 फीट ऊंची चोटी माउंट मनासलू को 27 सितंबर की सुबह 3:20 बजे फतह किया। नेपाल में माइनस 40 डिग्री सेल्सियस तापमान और हड्डियां गला देने वाले ठंड के बीच चढ़ाई करना आसान नहीं था, लेकिन अनिता ने चुनौतियों को पार पाकर शिखर पर तिरंगा फहराकर देश का मान बढ़ाया है।
अनिता ने 3 सितंबर को चढ़ाई शुरू की थी। 17 सितंबर को बेस कैंप में पहुंची। तीन दिन बर्फीले तूफान ने रास्ता रोके रखा। ज्यादा तूफान आने के कारण दूसरे कैंप से वापस बेस कैंप में लौटना पड़ा। फिर 22 सितंबर से 17 हजार फीट पर स्थित कैंप से आगे बढ़ीं और 27 सितंबर की सुबह शिखर छू लिया। अनिता ने सेटेलाइट से अपने परिजनों को यह जानकारी दी।
हिसार के गांव फरीदपुर की अनिता ने बताया कि माइनस 40 डिग्री तापमान के कारण ठंड इतनी थी कि हड्डियों को गला दे, मगर उसने हौसला नहीं हारा। ऑक्सीजन की बेहद कमी थी। खाने को कुछ खास हमारे पास होता नहीं, जो कुछ साथ लेकर जाते हैं, उसी में काम चलाना होता है। कम ऑक्सीजन के कारण न हमें नींद आती है और न ही भूख लगती है। बर्फ पर चलना होता है। हर कदम खतरे से भरा होता था। चोटी फतेह करने निकले दल में विश्वभर के 196 पर्वतारोही शामिल थे। इनमें अनिता अकेली भारतीय पर्वतारोही रहीं।
अनिता का यह मिशन 50 दिन का था, लेकिन इसे 22 दिन में पूरा कर लिया। अनिता के सहयोगी रमेश कुमार ने बताया कि अब चोटी से वापस रवाना हो चुके हैं। नीचे आने में 5-7 दिन लग जाएंगे। अनिता के पर्वतारोहण का खर्च एसआईएस कंपनी उठा रही है, जिसके मालिक राज्यसभा सांसद आरके सिन्हा हैं।
2018 में मिशन सेवन समिट की शुरुआत की
अनीता ने 2018 में अपने मिशन सेवन समिट की शुरुआत की थी। इसमें उनका लक्ष्य सातों महाद्वीपों की सातों ऊंची चोटियों को फतह करना था। इनमें से पांच को फतह लिया है। इनमें इंडोनेशिया, अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका व अंटार्कटिका शामिल हैं। इससे पहले अनिता ने चार बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की है, जिसमें तीन बार कामयाबी हासिल की है। अनिता नेपाल और चीन दोनों ही रास्तों से माउंट एवरेस्ट को फतेह करने वाली पहली पर्वतारोही हैं।
जॉर्जिया. लॉरेंसविले के ग्विनेट कॉलेज की एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने अपनी एक छात्र के बेटे को तीन घंटे पीठ परउठाए रखा, ताकि वह लेक्चर अटेंड कर सके। इस घटना से जुड़ा एक फोटो वायरल हो रहा है। इसे प्रोफेसर की बेटी ने 20 सितंबर को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था। इसे अब तक 57 हजार से ज्यादा लाइक्स मिल चुके हैं। पोस्ट को करीब 11 हजार से ज्यादा बार रिट्वीट किया गया।
दरअसल, डॉ. रमता सिसोको सिसे ग्विनेट कॉलेज में बायोलॉजी, एनाटॉमी और फिजियोलॉजी पढ़ाती हैं। कुछ दिन पहले उनकी एक स्टूडेंट अपने बच्चे के साथ आई। उसने बताया कि आज उनके बच्चे की देखभाल के लिए कोई बेबीसिटर उपलब्ध नहींहो पाया है। ऐसे में उसे यदि अपने बच्चे के साथ क्लास में बैठने की अनुमति मिले तो वह आकर पढ़ाई कर सकती है। प्रोफेसर सिस ने बताया, वह पढ़ाई में बहुत अच्छी और मेहनती है।फिर परीक्षा भी नजदीक है।इसलिएमैंने भी मना नहीं किया।
माली में बच्चे को पीठ पर उठाकर काम करते हैं
क्लास के दौरानडॉ. सिसे को महसूस हुआ कि बच्चे के साथ मां ठीक से लिख नहीं पा रही है। प्रोफेसर ने एक मां की विवशता को समझ कर उसका बच्चा गोद ले लिया। अगले तीन घंटे तक वह उसे अपने पास रखे रही। प्रोफेसर ने इस दौरान बच्चे को पीठ पर बांध लिया।
भोपाल (मध्यप्रदेश).भोपाल में देश कापहलाई- वेस्ट क्लीनिक बनने जा रहाहै। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) और नगर निगम के बीच इस पर सहमति बन गई है। नगर निगम आयुक्त बी विजय दत्ता ने बताया कि इस क्लीनिक पर ई- वेस्ट यानीकम्प्यूटर से लेकर मोबाइल और चार्जर तक की प्रोसेसिंग की जाएगी। जिस ई- वेस्ट की प्रोसेसिंग संभव नहीं होगी उसका उपयोग ‘कबाड़ से जुगाड़’ में किया जाएगा और कलाकृति आदि बनाई जाएगी।
ई- वेस्ट क्लीनिक संचालित करने वाला भोपाल देश में पहला नगर निगम होगा। तीन महीने तक पायलट प्रोजेक्ट के तहत ट्रायल किया जाएगा। सीपीसीबी दिल्ली से आए डायरेक्टर विनोद कुमार बाबू और एडिशनल डायरेक्टर आनंद कुमार ने नगर निगम आयुक्त बी विजय दत्ता से चर्चा के बाद देश का पहलाई- वेस्ट क्लीनिक भोपाल में खोलने पर सहमति जताई। आयुक्त दत्ता ने बताया कि निगम इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने वाली कंपनियों के साथ एमओयू करेगा। इस एमओयू के तहत निगम ई- वेस्ट कलेक्ट करेगा और यह कंपनियां अपने प्रोडक्ट की प्रोसेसिंग इस क्लीनिक पर करेंगी।
दो साल पहले ‘कबाड़ से जुगाड़’ के तहत रेडियो लगाया था
क्लीनिक सेनिकलने वाला प्लास्टिक भी रीसाइकिल होगा,जो मटेरियल किसी काम का नहीं होगा उसका उपयोग सजावट आदि की सामग्री बनाने में होगा।निगम दो साल पहले ‘कबाड़ से जुगाड़’ के तहत रोशनपुरा चौराहा पर रेडियो लगा चुका है। इस रेडियो पर स्वच्छता के संदेश प्रसारित होते हैं। इस एमओयू से पहले सीपीसीबी के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने नगर निगम के ट्रांसफर स्टेशनों सहित मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी सेंटर और भानपुर स्थित प्लास्टिक रिकवरी सेंटर आदि का निरीक्षण किया।
ई वेस्ट कलेक्शन सेंटर भी खुलेंगे
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स2016 के तहत नगर निगम को ई- वेस्ट कलेक्शन सेंटर खोले जाना हैं। अब तक भोपाल में कोई कलेक्शन सेंटर नहीं है। सीपीसीबी के अफसरों ने कहा कि भविष्य की प्लानिंग को देखते हुए भोपाल में ई- वेस्ट कलेक्शन और प्रोसेसिंग सेंटर की संभावनाएं बहुत अच्छी हैं।
असर:ई- वेस्ट से कई तरह काखतरा
जब हम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों यानि कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, प्रिंटर्स, फोटोकॉपी मशीन, इन्वर्टर, यूपीएस, एलसीडी/टेलीविजन, रेडियो, ट्रांजिस्टर, डिजिटल कैमरा आदि को लम्बे समय तक उपयोग के बाद खराब हुए उपकरण को ई-वेस्ट कहा जाता है। असुरक्षित तरीके ई-कचरे को रिसाइकल करने के दौरान निकलने वाले रसायनों के संपर्क में आने से स्किन डिसीज, लंग कैंसर के साथ नर्वस सिस्टम, किडनी, हार्ट और लिवर को भी नुकसान पहुंच सकता है।
2012 में पांच स्थानों पर ई- वेस्ट कलेक्शन शुरू हुआ था
इस ई- वेस्ट को खुले में फेंकने पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। 2012 में नगर निगम ने शहर में पांच स्थानों पर ई- वेस्ट कलेक्शन सेंटर शुरू किए थे,लेकिन यह कुछ ही समय में बंद हो गए। 2015 में एनजीटी ने राज्य सरकार को निर्देश दिए थे कि ई- वेस्ट कलेक्शन सेंटर खोले जाएं। इसके बाद इंदौर में तो ऐसा सेंटर खुला, लेकिन भोपाल इससे अछूता ही था और भोपाल का ई- वेस्ट या तो दफ्तरों और घरों में पड़ा हुआ है या वह साधारण कचरे मेंपहुंच रहाहै।
हेल्थ डेस्क. नवरात्र में कई लोग व्रत रखते हैं और नौ दिन फलाहार करते हैं। अमूमन लोग इन दिनों बिना प्याज-लहसुन का भोजन करते हैं। फलाहार में सिंघाड़े की पूरी, साबूदाने की खिचड़ी आदि बनाई जाती है। इस बार कुछ नया आजमाकर देखिए। फूड ब्लॉगर मोना अग्रवाल और मंजू डालममया साझा कर रही हैं अपनी खास रेसिपीज...
सामग्री: समा के चावल- 2 कप, दही- 1 कप, सेंधा नमक- स्वादानुसार, काली मिर्च- 1 छोटा चम्मच, उबले हुए आलू- 3 मध्यम आकार के, जीरा-1 छोटा चम्मच, तेल- 2 बड़े चम्मच, हरी मिर्च- 2 बारीक कटी हुई, हरा धनिया- 1 बड़ा चम्मच कटा हुआ, अदरक का पेस्ट।
विधि: चावल को 3-4 घंटेभिगो दें। पानी निथारकर मिक्सी में दही व नमक डालकर अच्छी तरह पीस लें। अब पैन में एक चम्मच तेल गरम करके हरी मिर्च, जीरा, अदरक का पेस्ट, मसले हुए आलू, नमक और काली मिर्च और धनिया डालकर मिलाएं। इडली स्टैंड में चिकनाई लगाकर एक चम्मच चावल का मिश्रण डालकर आलू के मसाले की स्टफिंग करके ऊपर से चावल का घोल डालें। 15-20 मिनट स्टीम करें। अब पैन में तेल गर्म करके जीरा और हरी मिर्च डालकर इडली को छौंक लगाएं। चटनी के साथ परोसें।
नरगिसी कोफ्ता करी
मखमली पनीर
रॉयल रोज
पाइनएप्पल
हेल्थ डेस्क. इन दिनों वायरल फीवर के मामले बढ़ रहे हैं। शरीर में दर्द, तेज बुखार, खांसी-जुकाम के लक्षण आमतौर पर देखने को मिल रहे हैं। इसके दो बड़े कारण हैं। पहला मौसम में बदलाव यानी तापमान का घटना। यह मौसम मच्छरों, बैक्टीरिया और वायरस के बढ़ने और फैलने के लिए मुफीद माना जाता है। दूसरा, बारिश में कुदरती तौर पर शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता यानी इम्युनिटी कम हो जाना। इम्युनिटी का स्तर कम होने के कारण ये आसानी से शरीर को संक्रमित करते हैं। नतीजा तेज बुखार के रूप में सामने आता है। इसके इलाज के तौर पर आयुर्वेदिक काढ़ा लेने की सलाह दी जाती है। जिसे घर पर आसानी से तैयार किया जा सकता है। राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर के आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. हरीश भाकुनी से जानते हैं वायरल फीवर से कैसे निपटें....
आयुर्वेद में इलाज के तौर पर सबसे पहले शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाया जाता है। इसके लिए कुछ घरेलू उपाय भी किए जा सकते हैं, जैसे-
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